मीडिया : मीडिया और चीन का बॉयकाट
खबर के उस दृश्य में कुछ लोग कुछ चीन का झंडा सड़क पर घसीट रहे थे, कुछ चीनी झंडे को जला रहे हैं, कुछ पुराने टीवी सेट को सडक पर फोड रहे थे और ‘भारत माता की जय’ का नारा लगा रहे थे।
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दृश्य में लगभग सौ-डेढ़ सौ लोग ही रहे होंगे। चीन के सैनिकों द्वारा गलवान घाटी में रात को घात लगाकर बीस भारतीय सैनिकों की नृशंसतापूर्वक हत्या उनके रोष का कारण थी! (और है!)
उक्त प्रदर्शन इस हमले के विरोध में था। ऐसे प्रदर्शनों की संख्या कल को बढ़ भी सकती है। इस चीनी हरकत ने पब्लिक में 1962 वाले प्रसुप्त चीन विरोध की भावना को फिर से जगा दिया है। अब तक हमारे मीडिया का ‘राष्ट्रवाद’ पाकिस्तान के बरक्स ही जगा करता था अब वह चीन के विरुद्ध जगा है। और कुछ एंकर तो इन दिनों इतने मुखर ‘देशभक्त’ और ‘राष्ट्रवादी’ हो चले हैं कि उनके आगे असली राष्ट्रवादी भी नकली लगते हैं! इन दिनों तो कई एंकर पहले अपने को ‘देशभक्त’ व ‘राष्ट्रभक्त’ घोषित करते हैं फिर ‘प्राइम टाइम’ करते हैं और एक अंग्रेजी एंकर जब तक अपने को दो-तीन बार राष्ट्रवादी न घोषित कर ले तब तक उसे चैन नहीं मिलता! यों, एंकरों का अपने का ‘राष्ट्रवादी’ कहना हमें चकित कर सकता था लेकिन पिछले दिनों, जब से ‘राष्ट्रवादी’ विचारधारा का वातावरण गरम हुआ है, तब से कुछ एंकरों का अपने को खुलकर ‘राष्ट्रवादी’ घोषित करने अब चकित नहीं करता। यूं भी, मीडिया सत्ता का चौथा पाया होता है, इस तर्क से भी सत्ता की विचारधारा का एक बटे चार हिस्सा तो उसके हिस्से आता ही है। और कभी उचित उद्दीपन पाकर चवन्नी भर का विचार भी फैलकर रुपये बराबर भी बन सकता है। इन दिनों यही हो रहा है! और ऐसे उद्दीपनों की कमी भी नहीं।
जरा देखिए: पहले चीन ने कोरोना जैसी महामारी भेजकर भारत समेत दुनिया भर के देशों को चौतरफा संकट में डाला। लाखों मरे और अब भी मर रहे हैं, जबकि चीन ने इसके लिए ‘अफसोस’ तक नहीं जताया और अब गलवान घाटी में उसने हमारे सैनिकों को मार डाला! इतने उकसावे पर भी यहां के लोगों में ‘देशभक्ति’ व ‘राष्ट्रभक्ति’ की भावनाएं न जागें तो क्या जागें? इसी कारण भारतीय जनता में चीन विरोधी भावनाएं अपने चरम पर हैं। पब्लिक के इसी मूड भापंकर कुछ खबर चैनलों ने चीनी सामान के बॉयकाट का नारा दिया और चर्चाएं कराई। लोगों ने शायद यहीं से ‘क्यू’ लिया और ‘चीन के बॉयकाट’ वाला प्रदर्शन किया, लेकिन बहुत जल्द ही साफ हो गया कि बॉयकाट कोइ बच्चों का खेल नहीं। उदाहरण के लिए, जब एक चैनल पर बॉयकाट पर कुछ लोग उत्तेजित भाव से कहे जा रहे थे कि हमें चीन की ‘पाकेट’ पर हमला करके चीन को सबक सिखाना चाहिए। इसके लिए उसके सामान का बॉयकाट करना चाहिए। जब उसके ‘मुनाफे’ पर चोट पड़ेगी तो उसे होश आएगा..लेकिन ज्यों ही एक पैनलिस्ट ने पूछा कि आप चीन की किस-किस चीज का बॉयकाट करेंगे? चीनी ब्रांड हमारे जीवन में कहां कहां नहीं घुसे हुए, तो बॉयकाटवादियों तर्क ठंडे पड़ गए। उस पेनलिस्ट ने बताया कि भारत के तिहत्तर फीसद मोबाइल फोन चीनी हैं। हमारे कंप्यूटर, लैपटाप, टीवी सेट, एसी, हीटर, डिजिटल सामान चिप्स, घड़ियां, कैमरे, जूम टिकटॉक जैसे साफ्टवेयर सब चीनी हैं। ऑनलाइन पेमेंट करने के ऐप, यहां तक कि स्नैपडील, जोमेटो, स्विगी व ओला टैक्सी सेवा तक में चीन पैसा लगा है।
यही नहीं गुजरात में लगी पटेल की सबसे उंची मूर्ति को चीनियों ने ही ढाला है। बिजली के बल्ब से लेकर स्विच, तार, बिजली के उपकरण, बच्चों के खिलौनों से लेकर हमारे देवी-देवताओं की मूर्तियां, कपड़े, जूते-चप्पल, मोजे यहा तक कि मोमबत्ती और दीवाली में काम आने वाली छोटे लट्टुओं की झालरें और न जाने कितनी चीजें तक चीन से आती हैं जो सस्ती होती हैं। हमारे जीवन का आधे से अधिक उपभोक्ता सामान चीन देता है। इनमें अपने देश का बनाया कितना है? सच यह है कि हम चीन के सस्ते सामान पर बुरी तरह से निर्भर हैं। टीवी में दिखने वाले ज्यादातर विज्ञापन अधिकांशत: चीनी ब्रांडों के होते हैं। कुछ चैनल तो अपने सारे तामझाम चीन से ही लाते हैं। ऐसे में ऐसे चैनल क्या क्या बॉयकाट करेंगे? पहली बार उसी चैनल पर बॉयकाट की पेचीदगियां सामने आई और चर्चा के अंत तक बॉयकाटवादियों का सारा जोश ठंडा हो गया! इसलिए बॉयकाट के नारा लगाने से पहले देखना चाहिए कि क्या हम बॉयकाट के लिए तैयार हैं? ऐसे में अपने मीडिया को खाली-पीली बूम मारकर बॉयकाट का प्रीमैच्येर नारा नहीं देना चाहिए! मीडिया को भावुक होने से बचना चाहिए और चीन से बदला लेने के लिए अन्य उपाय सोचे जाने चाहिए!
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