सामयिक : देनहार कोई और है..

Last Updated 01 Jun 2020 01:09:47 AM IST

कोरोना के संकट के दौर में अब्दुल रहीम खानखाना की इन पंक्तियों को सिद्ध करने वाले छोटे बड़े कई लोगों का जिक्र आपने देश के हर इलाके में सुना जरूर होगा।


सामयिक : देनहार कोई और है..

जिन्होंने इन दो महीनों में ये सिद्ध कर दिया है कि आम जनता का जितना खयाल स्वयंसेवी संस्थाएं, सामाजिक संगठन और निजी स्तर पर व्यक्ति करते हैं, उसका मुकाबला कोई केंद्र या राज्य सरकार नहीं कर सकती।
इन महीनों में किसी भी दल के नेता, मंत्री, सांसद और विधायक जनता के बीच उत्साह से सेवा करते दिखाई नहीं दिए क्यों? कारण स्पष्ट है कि हमारी प्रशासनिक व्यवस्था आज तक भ्रष्टाचार के कैंसर से मुक्त नहीं हुई है। प्रशासनिक अधिकारी हमेशा से भीषण आपदा में भी मोटी कमाई के रास्ते निकाल ही लेते हैं। फिर चाहे जनता बाढ़, भूकम्प, चक्रवात या महामारी किसी की भी मार झेले, उन्हें तो अपनी कमाई से मतलब होता है, जनसेवा से नहीं। इसके अपवाद भी होते हैं। पर उनका प्रतिशत बहुत कम होता है। इसीलिए सरकार को दान देने के बजाए लोग स्वयं धर्मार्थ कार्य करना बेहतर समझते हैं। सेवा को अपना कर्तव्य मान कर करने वाले ये लोग, नेताओं और अफसरों की तरह दान देने से ज्यादा अपनी फोटो प्रकाशित करने में रुचि नहीं लेते। मध्ययुगीन संत रहीम जी दिन भर दान देते थे, पर अपना मुंह और आंखें झुका कर। उनकी यह ख्याति सुनकर गोस्वामी तुलसीदास जी ने उन्हें पत्र भेज कर पूछा कि आप दान देते वक्त ऐसा क्यों करते हैं? तब रहीम जी ने उत्तर में लिखा,

‘देनहार कोई और है,
भेजत जो दिन रैन।
लोग भरम हम पर करें,
तास्सो नीचे नयन ।।’
पुणो के अटो चालक अक्षय कोठावले की मिसाल लें। प्रवासी मजदूरों की सहायता के लिए अक्षय कोठावले ने अपनी शादी के लिए जोड़े गए 2 लाख रुपये को खर्च करने में जरा भी संकोच नहीं किया। गौरतलब है कि इसी 25 मई को अक्षय की शादी होनी थी, लेकिन लॉकडाउन के चलते उसे स्थगित करना पड़ा। जब अक्षय ने सड़कों पर बदहाल और भूखे लोगों को देखा तो उसने अपने मित्रों के साथ मिलकर इन सभी के लिए कुछ करने की ठानी और शादी के लिए बचाई रकम मजदूरों को भोजन कराने में खर्च कर दी। आज अक्षय की चहुं ओर सराहना हो रही है। बॉलीवुड में सोनू सूद भले ही आजतक खलनायक की भूमिका निभाते रहे हों, लेकिन असल जिंदगी में उन्होंने प्रवासी मजदूरों के लिए जो किया है, उससे पूरे भारत में उनकी जय-जयकार हो रही है। सोनू सूद ने सैकड़ों बसों का इंतजाम किया और 12 हजार से अधिक लोगों को उनके घर पहुंचाया। इतना ही नहीं सोनू ने 177 लोगों को एक विशेष विमान द्वारा भी उनके घर तक पहुंचाया। ये सब तब हुआ जब केंद्र और राज्य सरकारें इसी विवाद में उलझी रहीं कि ट्रेन का कितना किराया केंद्र सरकार देगी और कितना राज्य सरकार। या फिर मजदूरों को उनके शहर तक पहुंचाने वाली बसें पूरी तरह से फिट हैं या नहीं। सोनू सूद से कहीं ज्यादा धनी और मशहूर फिल्मी सितारे मुंबई में रहते हैं, जो न सिर्फ फिल्मों से कमाते हैं बल्कि हर निजी या सरकारी विज्ञापनों से भी करोड़ों रुपया हर महीने कमाते हैं। पर उनका दिल ऐसे नहीं पसीजा।
दूसरी ओर दक्षिण भारतीय फिल्मों के खलनायक प्रकाश राज ने न सिर्फ मजदूरों को खाना देने और घर पहुंचाने में मदद की। बल्कि उन्होंने अपने फार्महाउस पर दर्जनों लोगों के रहने का इंतजाम भी किया। लॉकडाउन के इस मुश्किल वक्त में प्रकाश राज की ये दरियादिली लोगों को पसंद आई। सोशल मीडिया पर जहां एक समय पर प्रकाश राज के कुछ बयानों को लेकर काफी हमले हो रहे थे और उन्हें रियल लाइफ का खलनायक भी कहा जा रहा था, उनकी इस सेवा से अब हर कोई उनकी तारीफ कर रहा है। किसी विचारधारा या दल से सहमत होना या न होना आपका निजी फैसला हो सकता है, लेकिन संकट में फंसे लोगों की मदद करना यह बताता है कि आपके अंदर एक अच्छा इंसान बसता है। जिन मजदूरों को राहत मिल रही है वो राहत देने वाले से यह थोड़े ही पूछ रहे हैं कि आप कौन से दल के समर्थक हैं, उन्हें तो राहत से मतलब है। सेवा के इस काम में देश भर से अनेक ऐसे उदाहरण सामने आए हैं, जिन्हें सुन कर हर सक्षम व्यक्ति को शर्मिदा होना चाहिए। कुछ ऐसा ही जज्बा मुंबई की 99 वर्षीय महिला में भी देखा गया।
सोशल मीडिया में जाहिद इब्राहिम ने एक वीडियो डाला है, जिसमें ये बुजुर्ग महिला प्रवासी मजदूरों के लिए खाने के पैकेट तैयार करती नजर आ रही हैं। मास्क बनाने से लेकर खाना बनाने तक के काम में पूरे देश में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की महिलाओं ने भी बढ़-चढ़ कर योगदान किया है। गुरुद्वारों की तो बात ही क्या की जाए? देश में जब कभी, जहां कहीं, आपदा आती है, सिख समुदाय बड़ी उदारता से सेवा में जुट जाता है। वैसे भी गुरुद्वारों में लंगर सबके लिए खुले होते हैं। जहां अमीर गरीब का कभी कोई भेद दिखाई नहीं देता। इसी तरह देश के कुछ उद्योगपतियों ने भी निजी स्तर पर या अपनी कंपनियों के माध्यम से कोरोना के कहर में जनता की बड़ी मदद की है। जैसे रतन टाटा व अन्य होटल मालिकों ने देश भर में अपने होटलों को मेडिकल स्टाफ या क्वारंटीन के लिए उपलब्ध कराया। उधर बजाज ऑटो के प्रबंध निदेशक राजीव बजाज ने बड़ी मात्रा में होम्योपैथी की दवा बांट कर पुणो के पुलिसकर्मियों और लोगों को कोरोना की मार से बचाया।
सुना है कि होम्योपैथी में अटूट विश्वास रखने वाले राजीव बजाज का भारत सरकार को प्रस्ताव है कि वे पूरे देश के नागरिकों को कोरोना से बचने के लिए होम्योपैथी की दवा मुफ्त बांटने को तैयार हैं, जिसकी लागत करीब 700 करोड़ आएगी। अगर यह बात सही है तो सरकार को उनका प्रस्ताव स्वीकारने में देर नहीं करनी चाहिए। ‘हरि अनंत हरि कथा अनंता। कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता।’ हर काल और हर समाज में परोपकार करने वालों की कभी कमी नहीं होती। सरकार का कर्तव्य है कि वह सत्ता को अफसरशाही के हाथों में केंद्रित करने की बजाय जनता के इन प्रयासों को प्रोत्साहित और सम्मानित करे, ताकि पूरे समाज में पारस्परिक सहयोग और सद्भावना की भावना पनपे, न कि सरकार पर परजीवी होने की प्रवृत्ति।

विनीत नारायण


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