ऑनलाइन खरीद : नई ई-कामर्स नीति की जरूरत
यकीनन कोविड-19 ने ऑनलाइन खरीदारी को तेजी दी है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि कल तक देश के जो छोटे उद्यमी और छोटे कारोबारी ऑनलाइन कारोबार से दूर रहते थे, अब वे ऑनलाइन कारोबार की वास्तविकता को समझते ऑनलाइन कारोबार का प्रशिक्षण लेते हुए दिखाई दे रहे हैं।
ऑनलाइन खरीद : नई ई-कामर्स नीति की जरूरत |
हाल ही में देश के सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योग यानी एमएसएमई सेक्टर के 400000 उद्यमियों के द्वारा एक साथ ऑनलाइन कारोबार संबंधी प्रशिक्षण लिए जाने पर इसे अब तक का सबसे बड़ा ऑनलाइन कारोबार प्रशिक्षण माना गया।
गौरतलब है कि देश के छोटे उद्योग कारोबार ने भी कोविड-19 के संकट के बीच ऑनलाइन कारोबार की अहमियत को समझ लिया है। इन दिनों कोविड-19 की चुनौतियों के बीच पूरे देशभर में ऑनलाइन खरीदारी के बढ़ते हुए दौर में ई-कॉमर्स कंपनियां जहां तेजी से कारोबार बढ़ाते हुए दिखाई दे रही हैं, वहीं ई-कॉमर्स कंपनियां रोजगार देने के लिए तेजी से नई नियुक्तियां करते हुए भी दिखाई दे रही हैं। हाल ही में विश्व प्रसिद्ध ग्लोबल डेटा एजेंसी ‘स्टेटिस्टा’ के द्वारा लॉकडाउन और कोविड-19 के बाद जिंदगी में आने वाले बदलाव के बारे में जारी दी गई। वैश्विक अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक 46 प्रतिशत लोगों का मानना है कि वे अब भीड़-भाड़ में नहीं जाएंगे। ऐसे में भारत में भी उपभोक्ताओं की आदत और व्यवहार में भारी बदलाव के मद्देनजर ऑनलाइन खरीदारी छलांगे लगाकर बढ़ते हुए दिखाई दे रही है। स्थिति यह है कि कोविड-19 के बीच भारत में खुदरा कारोबार (रिटेल ट्रेड) के ई-कॉमर्स बाजार की चमकीली संभावनाओं को मुट्ठियों में करने के लिए दुनियाभर की बड़ी-बड़ी ऑनलाइन कंपनियों के साथ-साथ भारत के व्यापारिक संगठनों के द्वारा भी स्थानीय किराना दुकानों व कारोबारियों को ऑनलाइन जोड़ने के प्रयास की नई रणनीति बनाई जा रही है। रिलायंस जियो और फेसबुक में डील जगजाहिर है।
अब रिलायंस का जियोमार्ट और फेसबुक का व्हाट्सएप प्लेटफॉर्म मिलकर भारत के करीब 3 करोड़ खुदरा कारोबारियों और किराना दुकानदारों को पड़ोस के ग्राहकों के साथ जोड़ने का काम करेंगे। निश्चित रूप से कोविड-19 ने भारत में ई-कॉमर्स बाजार की डगर को चमकीला बना दिया है। ‘डेलॉय इंडिया’ और ‘रिटेल एसोसिएशन ऑफ इंडिया’ की रिपोर्ट 2019 में बताया गया था कि भारत का ई-कॉमर्स बाजार वर्ष 2021 तक 84 अरब डॉलर का हो जाएगा, जोकि 2017 में महज 24 अरब डॉलर था। लेकिन अब कोविड-19 के बाद जिस तरह ई-कॉमर्स बढ़ने की संभावना दिखाई दे रही है; उससे अनुमान किया गया है कि वर्ष 2027 तक यह कारोबार 200 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। कोविड-19 के बीच भी भारतीय अर्थव्यवस्था को ढहने से बचाने और दुनिया की सर्वाधिक करीब 1.9 प्रतिशत विकास दर के स्तर की संभावना के पीछे भी एक कारण भारत का ई-कॉमर्स बाजार भी है। कोविड-19 के बाद आगामी वित्त वर्ष 2021-22 में भारतीय अर्थव्यवस्था के पटरी पर आने की जो संभावना वैश्विक संगठनों ने बताई है, उसके पीछे भी ई-कॉमर्स की भूमिका महत्त्वपूर्ण होगी। यह बात अहम है कि देश में खुदरा कारोबार में जैसे-जैसे विदेशी निवेश बढ़ा वैसे-वैसे ई-कॉमर्स की रफ्तार बढ़ती गई। अब कोविड-19 के परिदृश्य में इस समय देश में ई-कॉमर्स नीति में बदलाव की जोरदार जरूरत अनुभव की जा रही है। केंद्र सरकार पिछले एक वर्ष से वर्तमान ई-कॉमर्स नीति को बदलने की डगर पर आगे बढ़ते हुए दिखाई भी दी है।
नई ई-कॉमर्स नीति का मसौदा विभिन्न पक्षों को विचार-मंथन के लिए जारी किया जा चुका है। निश्चित रूप से अब कोविड-19 के मद्देनजर नई ई-कॉमर्स नीति के तहत सरकार के द्वारा भारत के बढ़ते हुए ई-कॉमर्स बाजार में उपभोक्ताओं के हितों और उत्पादों की गुणवत्ता संबंधी शिकायतों के संतोषजनक समाधान के लिए नियामक भी सुनिश्चित किया जाना होगा। सरकार के द्वारा नई ई-कॉमर्स नीति के तहत देश में ऐसी बहुराष्ट्रीय ई-कॉमर्स कंपनियों पर उपयुक्त नियंत्रण करना होगा, जिन्होंने भारत को अपने उत्पादों का डंपिंग ग्राउंड बना दिया है। यह पाया गया है कि कई बड़ी विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियां टैक्स की चोरी करते हुए देश में अपने उत्पाद बड़े पैमाने पर भेज रही हैं। ये कंपनियां इन उत्पादों पर गिफ्ट या सैंपल का लेबल लगाकर भारत में भेज देती हैं। हम उम्मीद करें कि सरकार कोविड-19 की वजह से भारत में छलांगे लगाकर बढ़ने वाले ई-कॉमर्स की चमकीली संभावनाओं के बीच ई-कॉमर्स कंपनियों तथा देश के उद्योग-कारोबार से संबंधित विभिन्न पक्षों के हितों के बीच उपयुक्त तालमेल के साथ अर्थव्यवस्था को लाभान्वित करने वाली नई ई-कॉमर्स नीति को अंतिम रूप देने की डगर पर तेजी से आगे बढ़ेगी।
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