मीडिया : ट्विटर पर गदर

Last Updated 31 May 2020 02:28:53 AM IST

ट्रंप ने जैसे ही सोशल मीडिया ‘ट्विटर’ की ‘कानूनी इम्यूनिटी’ को खत्म किया है; तभी से ट्विटर पर गदर मचा है। इससे पहले ट्विटर अमेरिका के कानूनी दायरे से एकदम मुक्त था और अपने को ‘ईश्वर’ समझता था जो किसी भी सत्ता को हिला सकता है।


मीडिया : ट्विटर पर गदर

ट्विटर के पर कतरने का ट्रंप का ‘इक्जीक्यूटिव आदेश’ तब आया, जब पिछले दिनों ट्रंप ने जो ट्वीट किए उन पर ट्विटर ने उनको संदिग्ध मानकर ट्रंप से ‘प्रमाण’ मांगे! ट्रंप को यह बेहद नागवार गुजरा और उन्होंने उसकी ‘परम आजादी’ के पर कतर दिए। ट्रंप के पक्षधारों का आरोप है कि ‘ट्विटर’ बेहद पक्षपाती है। वह दक्षिणपंथियों को सेंसर करता रहता है, जबकि वामपथियों को नहीं करता। इसीलिए उस पर आरोप है कि वह वामपंथियों का अड्डा बन गया है।
सभी जानते हैं कि अमेरिकी मीडिया का एक हिस्सा शुरू से ट्रंप के पीछे पड़ा है और वे भी मीडिया से दो-दो हाथ करने में कम नहीं हैं। मीडिया उनको ठोकता रहता है, वे मीडिया को ठोकते रहते हैं। कई प्रेस कान्फ्रेंसों में कई ताकतवर रिपोटर्स को ‘शट अप’ भी कर चुके हैं, लेकिन ट्रंप कितने भी नापसंद हों या  विवादास्पद हों और उनकी राजनीति दक्षिणपंथी क्यों न हो, ट्विटर को लेकर ट्रंप के इस ऐतराज में दम है। आखिर उसने उनके ट्वीटों को ही ट्विटर ने सेंसर करने की कोशिश क्यों की? अन्यों के ट्वीट क्यों सेंसर नहीं किए? अगर ट्विटर सबके संदेशों के साथ एक ‘समान बर्ताव’ करता तो समझ में आपत्ति न होती, लेकिन वह ‘समान बर्ताव’ नहीं करता। यों भी, ट्विटर ने जिस भाषा को अपने यहां की आदर्श भाषा बनने दिया है, उसमें ‘तू तू मैं मैं’ की शैली चल सकती है। वह ‘शिष्ट भाषा’ के लिए नहीं बना है। इतना ही नहीं, सभी जानते हैं कि ट्विटर या फेसबुक जैसे सोशल मीडिया शासकों व उनकी सत्ताओं को बनाने-बिगाड़ने की राजनीति भी करते हैं। वे पक्ष या विपक्ष में कैंपेन चलवा सकते हैं, चुनाव में ‘वोटरों’ को इधर-उधर झुका सकते हैं और ‘डाटा’ को ‘मैनीपुलेट’ व ‘सेल’ कर सकते हैं और अपनी राजनीतिक गोटी लाल कर सकते हैं।

ट्विटर किस तरह से वामपंथ का पक्ष लेता है और दक्षिणपंथ को दुरदुराता है, इसका प्रमाण पिछले दिनों ट्विटर के मुखिया जेक डोरसी के उन वक्तव्यों से मिला, जिनमें उन्होंने ‘हिंदुत्व’ को तो अपना निशाना बनाया, लेकिन बाकी धर्म तत्ववादियों के खिलाफ कुछ न कहा! फिर, एक मीडियम के रूप में ट्विटर का ‘फारमेट’ अपने आप में ‘छेड़छाड़वादी’ बनाया गया है। वह आपको ‘280 अक्षरों’ में ‘अधिकतम’ कहने को प्रोत्साहित करता है। लेकिन ‘280 अक्षर’ में की जाती बातचीत ‘तू-तू मैं-मैं वादी’ या ‘छेड़छाड़वादी’ होकर ही ध्यान खींच सकती है। इस तरह, जो किसी को जितना गरिया सकता है, किसी के ईगो को जितनी चोट पहुंचा सकता है, जितना नीचा दिखा सकता है, जितना नंगा कर सकता है, ट्विटर पर वही ‘हीरो’ होता है।
 ट्विटर अपने फारमेट से ही, लिखने-बोलने वाले को ‘फूहड़’ और ‘लंपट’ बनाना शुरू कर देता है। जो जितना कीचड़ उछाल सकता है, किसी को चोट पहुंचा सकता है, नीचा दिखा सकता है, कड़वा बोल सकता है, किसी का अपमान कर सकता है, वह उतना ही महान ‘ट्विटराती’ कहलाता है। इस तरह हर ‘ट्विटराती’ अंतत: लफंगा, ‘हेटवादी’(घृणावादी) व ‘साडिस्ट’(दूसरे को दु:खी कर आंनद लेने वाला) बनता जाता है। ‘राइट टू इंसल्ट’ यहां सबका जन्मसिद्ध अधिकार है। यहां हर बंदा तीसमार खां होता है। ट्विटर का सगोत्रीय ‘फेसबुक’ भी कुछ-कुछ ऐसा ही है। यों, अपवाद कहीं भी हो सकते हैं, लेकिन सच यही है कि सीरियस तत्वों के मुकाबले सोशल मीडिया पर अधिकांशत: सतही और लटपट तत्वों का बोलबाला रहता है। इस तरह,‘सोशल मीडिया’ नाम का ‘सोशल’ है, लेकिन स्वभाव से ‘एंटीसोशल’!
माना जा सकता है कि सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया या टीवी आदि से अधिक जनतांत्रिक और सबके लिए खुला है। यहां सब अपनी अपनी मनचाही पतंगें उड़ा सकते हैं। इस मानी में सोशल मीडिया परम जनतांत्रिक है। कोई भी अपनी बात कह सकता है ले सकता है, लेकिन कोई भी मीडिया चाहे कितना भी ‘खुला’ हो, वो ‘स्टेट से ऊपर’ नहीं हो सकता। उसका भी पता-ठिकाना होता है और उसकी एक सामाजिक जिम्मेदारी होती है। यही हुआ, ज्यों ही ट्विटर ने अपने को ‘समांतर स्टेट’ मानकर ‘खुदा’ माना, त्यों ही असली स्टेट ने उसकी औकात बता दी कि बेटा तुम स्टेट के एक ‘पैर’ हो, सचमुच की ‘स्टेट’ नहीं! इन दिनों ट्विटर, अपनी ‘आजादी’ के लिए नहीं रो रहा बल्कि ‘परम आजादी’ के लिए रो रहा है, जबकि ‘परम आजादी’ नाम की कोई चीज कहीं नहीं होती।

सुधीश पचौरी


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