बतंगड़ बेतुक : जब झल्लन ने पाया परम ज्ञान

Last Updated 31 May 2020 02:22:55 AM IST

जब भी झल्लन का मन उमगता, हुमकता, उलझता या कुछ कहने को मचलता अथवा किसी बात पर कसकता या उसे कुछ खटकता तो वह हमारे पास चला आता था, हमसे बतियाता था। हमारी बात से संतुष्ट हो गया तो ठीक, नहीं तो कुछ आयं-बायं बोलकर उठ जाता था।


बतंगड़ बेतुक : जब झल्लन ने पाया परम ज्ञान

लेकिन इस बार झल्लन हमारे पास आया तो न कुछ बोला न मुस्कुराया और न अपनी कोई जिज्ञासा सामने रखी न कोई सवाल उठाया। उसने नेत्र मूंद लिये और पद्मासन की मुद्रा धारण कर ली फिर एक लंबी सांस छोड़ी और एक लंबी सांस भर ली। हम हैरत से उसकी इस हरकत को निरख रहे थे, आखिर वह क्या कर रहा है इसे परख रहे थे।
जब उसने मुंह नहीं खोला और वह कुछ नहीं बोला तो हमने ही पूछ लिया, ‘क्या बात है झल्लन, न दुआ न सलाम, न जुहार न राम-राम। बस ध्यान लगाकर बैठ गया है, लगता है जैसे तेरे दिमाग का कोई पेंच ऐंठ गया है।’ जब उसने हमारी बात का कोई जवाब नहीं दिया तो हमने फिर मजाक किया, ‘जब तुझे कुछ बोलना-बतियाना नहीं था तो यहां क्या समाधि लगाने आया है और अपनी समाधि हमें दिखाने आया है? लगता है जैसे कोई बगुला मछली के ध्यान में तप रहा हो मगर दिखाए ऐसे जैसे राम नाम जप रहा हो।’ उसने मुंह खोला और बोला, ‘अभी कुछ न उचारें, शांति धारें। हम अभी-अभी पीपल के नीचे बैठकर ज्ञान पाये हैं और जो ज्ञान पायें हैं वही आपको बताने आये हैं।’

हम हंसना नहीं चाहते थे मगर फिर भी हंसी आ गई और झल्लन को हमारी यह हंसी सुई चुभा गई। वह बोला, ‘ददाजू, आप तो कुछ ज्ञान पाये नहीं और जो थोड़ा बहुत ज्ञान पाये भी उसे काम में लाये नहीं। इधर कोरोना ने हमें जो ज्ञान दिया है वही हम आपको बताने आ रहे हैं मगर आप हैं कि मुस्काये जा रहे हैं।’ हमने कहा, ‘चल, नहीं मुस्काते हैं, तेरे कहने पर गंभीर हो जाते हैं। तो बता, तू कोरोना काल में ऐसा क्या ज्ञान लाया है जो इंसान के पास अभी तक नहीं आया है?’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, हम सोचे थे कि संकट काल में संकट से लड़ने के लिए सब एकजुट हो जाएंगे, अपनी सारी ओछी गुटबंदियां खत्म कर देंगे, सब निगरुट हो जाएंगे, संकट से निपटने के लिए एक-दूसरे का हाथ थामेंगे एक-दूसरे के काम आएंगे, अपनी रंजिशों को थोड़ा परे कर देंगे और कम-से-कम इस वक्त दुश्मनी नहीं निभाएंगे, अगर किसी से गलती हो रही हो तो उसे काटने नहीं दौड़ेंगे उसे प्यार से समझाएंगे और जो अगला कह रहा है उसे समझने की कोशिश करेंगे और अपनी बात भी प्यार से समझाएंगे, संकट को पराजित करने को प्राथमिकता पर रखेंगे, इंसानों को कैसे बचाया जाये पूरा ध्यान इस पर लगाएंगे।’
हमने कहा, ‘तो तू जो सोच रहा था वैसा नहीं हुआ। न लोगों ने अपनी क्षुद्रताएं छोड़ीं न दुश्मनी से किनारा किया और जो पहले से करते आ रहे थे संकट काल में भी वही किया। न उनके कर्म बदले न उनकी जुबान बदली, न उनकी चालें बदलीं न उनके स्वार्थ बदले। जो उनके चेहरे पहले थे संकट काल में भी वही निकले?’ झल्लन बोला, ‘वही तो ददाजू, कोरोना काल में हम यही तो ज्ञान पाये हैं जो आपके साथ बांटने चले आए हैं। इंसान मूलत: स्वार्थी, क्रूर, कपटी और कमीना होता है, उसके ऊपर सद्भाव, सदाशयता, उदारता का सिर्फ मुलम्मा होता है। जब भी कोई असली संकट आता है तो उसका मुलम्मा उतर जाता है और उसका असली चेहरा शिद्दत से उभर आता है। दूसरा मरे तो मर जाये वह इसकी चिंता नहीं करता है, संकट के दौर में वह सिर्फ अपना और अपना बचाव करता है।’ हमने कहा, ‘तो यह ज्ञान तूने सरकार के कामकाज से पाया है या यह तेरे पास विपक्ष की हरकतों से आया है या जगह-जगह लोग जिस तरह का संकट समर्थक व्यवहार कर रहे हैं उसमें से आया है?’
झल्लन बोला, ‘हर कोई अपनी असफलता को ढकने की कोशिश कर रहा है, जो भी डरावना हो रहा है उसका इल्जाम दूसरे पर धर रहा है, सहयोग तो छोड़िए हर कोई अपनी गोटियां अपनी दुश्मनी निभाने के लिए चल रहा है।’ हमने कहा, ‘तो तेरे मन में ज्ञान का इतना ही उतार हुआ है या इसका और भी विस्तार हुआ है?’ झल्लन बोला, ‘सरकारें सिर्फ शांति काल में सरकार होती हैं, संकट काल में बहुत बेबस, बहुत लाचार होती हैं। और सबसे बड़ी बात यह कि दुनिया के सभी धर्म-मजहब झूठ के विराट पुलिंदे हैं, जो इंसान को सीखना चाहिए वह कभी नहीं बताते हैं और जो नहीं सीखना चाहिए सिर्फ वही सिखाते हैं। अब देखिए, इस दौर में न कोई देवता काम आ रहा है, न कोई धर्मग्रंथ काम आ रहा है और अगर आज इंसान मार खा रहा है तो इन्हीं की वजह से मार खा रहा है।’ हमने कहा, ‘बस यही परम ज्ञान पाया है या इससे आगे भी कुछ समझ पाया है?’
झल्लन बोला, ‘अब हम किसी वट वृक्ष के नीचे फिर नयी समाधि लगाएंगे और वहां से जो ज्ञान प्राप्त करके लाएंगे वह आपको आगे बताएंगे।’

विभांशु दिव्याल


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