सरोकार : कई दशक पीछे चली जाएंगी महिलाएं

Last Updated 31 May 2020 02:19:32 AM IST

कोविड-19 ने औरतों को बुरी तरह प्रभावित किया है, यह हर जगह कहा जा रहा है। अब यह बात भी सामने आई है कि लैंगिक समानता पर इसका काफी असर होने वाला है।


सरोकार : कई दशक पीछे चली जाएंगी महिलाएं

बताया जा रहा है कि यह महामारी औरतों को दशकों पीछे घसीट ले जाएगी। यूके में महिला अधिकारों और लैंगिक समानता के लिए काम करने वाली फॉसेट सोसायटी का कहना है कि इसके बाद महिलाओं पर बच्चे पालने और घर के काम का जबरदस्त बोझ आने वाला है। पुरुषों के मुकाबले उनकी नौकरियां जाने का अधिक खतरा है। सरकारों में महिला प्रतिनिधित्व पर भी असर होने वाला है। कुल मिलाकर पचास साल की प्रगति का पहिया विपरीत दिशा में घूमने वाला है। लंदन के फिस्कल स्टडीज इंस्टीट्यूट ने अपने एक अध्ययन में कहा है कि बच्चों वाली औरतों के 47 फीसद नौकरी छोड़ने या उनकी नौकरी जाने का खतरा है। महिलाएं कम तनख्वाहों पर, और अनौपचारिक क्षेत्र में ज्यादा काम करती हैं और ऐसे क्षेत्रों पर छंटनी की सबसे अधिक मार होती है। महिलाएं कम तनख्वाहों पर काम करती हैं, और यह बराबर कहा जाता रहा है कि जेंडर गैप को भरने में लगभग दो सौ साल लगेंगे।
कई बार मां बनने के कारण औरतों को नौकरियों तक से हाथ धोना पड़ता है। कोविड-19 के दौर में भी यही देखा गया है। कई गर्भवती हेल्थकेयर वर्कर्स को जबरन काम करना पड़ रहा है और कइयों की नौकरियां चली गई हैं। भारत में पिछले साल मातृत्व लाभ कानून के चलते बहुत सी महिलाओं को श्रम बाजार से बाहर धकेल दिया गया था। टीमलीज सर्विसेज लिमिटेड ने एक सर्वेक्षण में कहा था कि नये कानून से छोटे बिजनेस और स्टार्टअप्स ने औरतों को नौकरी पर रखने से परहेज किया। जिसके चलते लगभग 11 से 18 लाख औरतों को नौकरियों से हाथ धोना पड़ा। संकट के दौर में नियोक्ता परंपरागत तरीक के काम को चुनता है। गर्भावस्था को बोझ माना जाता है, और बच्चों वाली महिलाओं को कम प्रतिबद्ध। इसका असर सीधा सीधा महिलाओं के रोजगार पर पड़ेगा। एक बात और है। हमारे देश में अधिकतर औरतें गृह आधारित काम करती हैं, स्वरोजगार प्राप्त हैं। कोविड-19 के दौर में इस स्थिति का प्रभाव दूरगामी है। 31.7 फीसद औरतें गैर कृषि क्षेत्र में हैं। इसके यह मायने हैं कि उनके काम पर असर होने वाला है।

स्वरोजगार प्राप्त होने की वजह से उन्हें महामारी के दौरान कोई लाभ नहीं मिलेगा, जोकि रोजगार प्राप्त लोगों को मिलने की संभावना है। 2019 के पीरिऑडिक लेबर फोर्स सर्वे के हिसाब से अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाली 54.8 फीसद औरतें हैं। उन्हें कॉन्ट्रैक्चुअल पेड लीव पॉलिसी का लाभ भी नहीं मिलने वाला, जो कामकाजी दूसरी औरतो को वर्क फ्रॉम होम के चलते मिल सकता है। डब्ल्यूएचओ ने 104 देशों काएक अध्ययन किया है। उसमें कहा गया है कि दुनिया भर में स्वास्थ्यकर्मिंयों और सामाजिक कार्यकर्ताओं यानी नर्स, मिडवाइफ या दूसरी सेवाओं में महिलाओं का हिस्सा 70 फीसद है। उसके पिछले साल के हेल्थ वर्कफोर्स के वर्किग पेपर में यह बात कही गई है। भारत में नेशनल सैंपल सर्वे के 68वें चरण की रोजगार संबंधी रिपोर्ट में कहा गया है कि दक्षता प्राप्त नर्स और मिडवाइव्स जैसे पेशों में औरतों की संख्या 88.9 फीसद है। सोचा जा सकता है कि यह महामारी औरतों को कितने दशक पीछे खींचकर पहुंचा सकती है।

माशा


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