चौ. चरण सिंह : असली भारत के नायक

Last Updated 29 May 2020 05:39:17 AM IST

कांग्रेस को ग्रामोन्मुखी एवं किसान हितैषी बनाने का श्रेय तीन प्रमुख नेताओं को जाता है-स्वामी सहजानंद सरस्वती, सरदार पटेल और चौधरी चरण सिंह।


चौ. चरण सिंह : असली भारत के नायक

स्वामी जी किसान सभा के जरिए  बिहार-यूपी के किसान मजदूरों के बीच नई चेतना पैदा कर रहे थे। उसी समय पटेल के नेतृत्व में खेड़ा और बारदोली के किसान संघर्ष ने उनका कद इतना ऊंचा कर दिया कि स्वयं  गांधी जी ने उन्हें सरदार की उपाधि दी। चौ. कांग्रेस में चरण सिंह के कद-काठी का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि जब उत्तर प्रदेश में पं. गोविन्द बल्लभ पंत पहले मुख्यमंत्री बने तो उनके तीन संसदीय सचिव बनाए गए-लाल बहादुर शास्त्री, सी. बी. गुप्ता और चरण सिंह। वैचारिक तौर पर वह किसी विचारधारा के सूत्र में नहीं बंधे थे। न दक्षिणपंथी थे और न ही वामपंथी। उत्तर प्रदेश देश का पहला राज्य बना जहां भूमि सुधारों में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए। कहने की आवश्यकता नहीं कि उस समय कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व का बड़ा हिस्सा सामंती एवं समृद्ध किसान परिवार से आता था। राजस्व मंत्री होते हुए भूमि सुधार अधिनियम के तहत असरदार जमींदारी उन्मूलन उन्हीं के नाम लिखा गया। यह बताना भी आवश्यक है कि जमींदार और सामंत न सिर्फ बड़े भू क्षेत्र के मालिक थे, बल्कि गांव की सड़क, रास्ते, नदी, तालाब, जंगल आदि भी उन्हीं के अधिकार क्षेत्र में थे। ऐसी विषम परिस्थितियों में पिछड़े, अति पिछड़े एवं दलित बेसहारा लोगों को भूमि पर कब्जा दिलाना आसान काम नहीं था।

आज जब जगह-जगह भूमि संघर्ष को लेकर भूमिहीन सशस्त्र संघर्ष में लगे हुए हैं, यूपी उसका अपवाद है। चौ. चरण सिंह पं. नेहरू को अपना नेता मानते हुए वैचारिक प्रश्नों पर अपनी अलग राय रखते थे। 1959 में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में नेहरू ने भारत में सहकारी खेती लागू करने का प्रस्ताव पेश किया। नेहरू का कद इतना बड़ा था कि किसी कांग्रेस नेता के लिए उनका विरोध करना संभव नहीं था। चौ. चरण सिंह ने इसे अव्यावहारिक करार देते हुए तर्कपूर्वक आंकड़ों के साथ बात रखते हुए कहा कि कैसे सहकारी खेती में किसान की व्यक्तिगत रूचि के अभाव में उत्पादन नहीं बढ़ेगा। चौ. साहब के प्रस्ताव पर करतल घ्वनि से सभागार ने स्वागत किया और नेहरू को यह विचार ठंडे बस्ते में रखना पड़ा। उत्तर प्रदेश के सबसे लोकप्रिय नेताओं में चौधरी साहब की गिनती होने लगी। लेकिन उनकी स्पष्टवादिता और नीतिगत टकराव ने उन्हें निरंतर नेतृत्व से दूर रखा।
आखिरकार, 1967 का दौर आया जब डॉ. लोहिया अपने गैर-कांग्रेसवाद के अनूठे प्रयोग में लगे हुए थे। डॉ. लोहिया के रणकौशल का ही कमाल था कि उन्होंने 9 राज्यों में गैर- कांग्रेसी सरकारें स्थापित करने में महारत हासिल की। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के नेता पद के चुनाव में चौ. चरण सिंह को दरकिनार कर पुन: सी. बी. गुप्ता का मुख्यमंत्री के लिए चयन कर लिया गया। कांग्रेस पार्टी का बहुमत बड़ा क्षीण था। चरण सिंह ने कांग्रेस से बगावत कर अलग गुट बनाया जो बाद में भारतीय क्रांति दल के नाम से अस्तित्व में आया। चौ. साहब संयुक्त विधायक दल के नेता चुन लिए गए जिसमें जनसंघ से लेकर कम्युनिस्ट पार्टी के नेता भी मंत्रीमंडल के सदस्य बने। यह प्रयोग आपसी सामंजस्य के अभाव, वैचारिक टकराव और अहम मुद्दों के बोझ तले दब गया और गैर-कांग्रेसी सरकारें ताश के पत्ते की तरह बिखर गई। चौधरी साहब ने लखनऊ छोड़ दिल्ली की तरफ झांकना शुरू किया। 9 अगस्त 1974 को उनकी अध्यक्षता में भारतीय लोक दल की स्थापना हुई। इस पार्टी में जहां प्रखर समाजवादी राजनारायण, राम सेवक यादव, कपरूरी ठाकुर, मुलायम सिंह यादव, मामा बालेवर दयाल, रबि राय, मनी राम बागड़ी जैसे लोग थे तो दूसरी ओर उड़ीसा के पूर्व मुख्यमंत्री एवं उत्कल कांग्रेस के नेता बीजू पटनायक इसके उपाध्यक्ष बने। राजाजी राजगोपालाचारी के नेतृत्व वाली स्वतंत्र पार्टी का भी विलय लोकदल में कर दिया गया जिसके बड़े नेताओं में पीलू मोदी, एच.एम. पटेल, गायत्री देवी, आर. के. अमीन आदि शामिल थे। श्री पीलू मोदी पार्टी के महामंत्री बने। हरियाणा के बड़े नेता चौ. देवीलाल एवं चौ. चांदराम समेत दर्जनों बड़े नेताओं ने भी लोकदल का दामन थाम लिया। राजस्थान में किसान आंदोलन के शीषर्स्थ नेता चौ. कुम्भाराम आर्य, दौलतराम सारण आदि भी इसी दल का हिस्सा बने। यूपी, बिहार, आंध्रप्रदेश, उड़ीसा, हरियाणा, राजस्थान में लोकदल मुख्य विपक्षी दल का दर्जा प्राप्त करने में कामयाब हो गया। चौ. चरण सिंह के नेतृत्व में विपक्षी एकता का कारवां बड़ी सभाओं में तब्दील हो गया।
राष्ट्रीय राजनीति में इसी बीच जय प्रकाश नारायण की सक्रियता ने सारे समीकरण बदल दिए। पहले गुजरात और फिर बिहार आंदोलन के चलते पुन: गैर-कांग्रेसी दलों का जमावड़ा एकत्रित होने लगा। 12 जून 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक ऐतिहासिक फैसले ने देश की राजनीति को और गरमा दिया जब राजनारायण की याचिका पर इंदिरा गांधी को चुनाव में भ्रष्ट तरीके अख्तियार करने के आरोप में अयोग्य तथा 6 वर्षो तक चुनाव लड़ने पर भी रोक लगा दी। समूचे विपक्ष ने इंदिरा गांधी से पीएम पद से इस्तीफे की मांग की। 25 जून को रामलीला मैदान में एक जनसभा में जेपी ने श्रीमति गांधी से इस्तीफे की मांग की और सरकार द्वारा लिए गये निर्णय को गैर-वाजिव करार दे दिया। श्रीमती गांधी ने इसी रात्रि को अपातकाल की घोषणा कर चौ. चरण सिंह, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी समेत सभी नेताओं को मीसा के तहत गिरफतार कर जेल भेज दिया। जेल से बाहर आकर पुन: चौ. साहब सभी दलों की एकता के प्रयासों में जुट गए। जेपी और चरण सिंह के संयुक्त प्रयासों का नतीजा था कि जनता पार्टी अस्तित्व में आई और इंदिरा गांधी को पराजित कर पाई। दिल्ली के सत्ता संघर्ष के षडयंत्रों में चौ. चरण सिंह पुन: पराजित हुए जब 100 से अधिक सांसदों का समर्थन होते हुए मोरारजी भाई प्रधानमंत्री चुने गए और यहीं से पार्टी का विघटन की दुखद शुरुआत हो गई। 1979 में कांग्रेस पार्टी की मदद से चरण सिंह प्रधानमंत्री बने जिसकी मियाद कम थी क्योंकि चरण सिंह ने कांग्रेस की शतरे  के सामने झुकने से इनकार कर दिया।
आज चौधरी चरण सिंह को नमन और स्मरण करने का दिन है। गांव उजड़े हुए हैं, किसान उदास हैं, कामगार रोटी-रोजगार की तलाश में दर-बदर हैं। गरीबों के चेहरे की मुस्कान गायब है। गरीब-अमीर के बीच की दूरी पहले से ज्यादा लंबी हो गई है। सपना है कि फिर शायद कोई चरण सिंह जैसा नेता अवतरित हो। (लेखक जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं)

केसी त्यागी


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