बलबीर सिंह सीनियर : हॉकी के महान सपूत थे

Last Updated 29 May 2020 05:37:18 AM IST

भारतीय हॉकी की बात करें तो पहला नाम जेहन में मेजर ध्यानचंद का आता है क्योंकि उनजैसा दूसरा कोई खिलाड़ी देश में नहीं हुआ पर ध्यानचंद के पदचिह्नों पर चलने वाले खिलाड़ियों की बात करें तो सबसे पहले बलबीर सिंह सीनियर का नाम आता है।


बलबीर सिंह सीनियर : हॉकी के महान सपूत थे

इसकी एक वजह तो यह कि वह दद्दा ध्यानचंद की तरह ही सेंटर फार्वड की पोजिशन पर खेलते थे। उनकी तरह ही गोल जमाने में भी महारत रखते थे। इस महान खिलाड़ी का पिछले दिनों चंडीगढ़ के अस्पताल में निधन हो गया। वह 96 साल के थे। आठ मई को तबियत खराब होने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया और 25 मई को उनका निधन हो गया।
बलबीर सिंह सीनियर में ध्यानचंद की झलक देखे जाने की वजह देश को ओलंपिक में हॉकी गोल्ड दिलाने में बराबरी रखना है। दद्दा ध्यानचंद ने 1928, 1932 और 1936 में हॉकी के स्वर्ण पदक दिलाए तो बलबीर सीनियर ने 1948, 1952 और 1956 में स्वर्ण पदक दिलाए। दोनों में समानता यह भी है कि उन्होंने ओलंपिक हॉकी का अपना आखिरी स्वर्ण पदक अपनी कप्तानी में जीता। बलवीर ने 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक में जब स्वर्ण पदक जीता तब उपकप्तान थे। दिलचस्प बात यह है कि 1948 के लंदन ओलंपिक के लिए उन्हें संभावितों में भी शामिल नहीं किया गया था। पर उन्हें शामिल करने की मांग उठने पर टेलीग्राम देकर उन्हें शिविर में बुला लिया गया। शिविर में शामिल होने पर पसलियों में चोट लगने से उनके भाग ले पाने को लेकर संशय का माहौल बनने लगा। पर वह आखिर में ओलंपिक में भाग लेने गए और इसे उन्होंने इसे यादगार बना दिया। इसके फाइनल में सामने इंग्लैंड की टीम थी। उसके समर्थकों से स्टेडियम खचाखच भरा था। लेकिन बलबीर सीनियर ने पहले दो गोल जमाकर मैच का रुख भारत की तरफ कर दिया था। सही मायनों में बलबीर सीनियर देश के स्वतंत्र होने के बाद देश के पहले हॉकी हीरो थे।

सभी जानते हैं कि बलबीर सीनियर के समय हॉकी घास के मैदानों पर खेली जाती थी। मैदान अक्सर असमतल उछाल वाले हुआ करते थे। इन मैदानों पर भी बलबीर सीनियर का गेंद पर नियंत्रण गजब का था। यह भी सच है कि किसी भी खिलाड़ी कद को ऊंचा उठाने में साथी खिलाड़ी ही अहम भूमिका निभाते हैं। बलबीर सीनियर की ढेरों सफलतओं में केडी सिंह बाबू और ऊधम सिंह की भूमिका अहम रही। यह जोड़ी हमले बनाकर बलबीर को सटीक पास देती थी और वह इनको गोल में बदलने में महारत रखते थे। इस कारण ही 61 अंतरराष्ट्रीय मैचों में उनके नाम 246 गोल दर्ज हैं। बलबीर सीनियर ने हेलंिसंकी ओलंपिक के फाइनल में नीदरलैंड के खिलाफ पांच गोल जमाए। यह रिकॉर्ड आज अटूट है। उन्होंने तीन ओलंपिक में आठ मैचों में 22 गोल जमाए हैं। लेकिन अफसोस कि उन्हें भारत रत्न देने के बारे में कभी नहीं सोचा गया। यह सही है कि 1957 में पद्मश्री पाने वाले वह पहले खिलाड़ी थे।
बलबीर सीनियर ने तीन ओलंपिक स्वर्ण के अलावा 1975 में भारत द्वारा जीते इकलौते विश्व खिताब में भी टीम के मैनेजर के रूप में अहम भूमिका निभाई। भारत विश्व विजेता बनकर उभरा। बलबीर सीनियर 1980 के मास्को ओलंपिक में स्वर्ण जीतने वाली टीम के सलाहकार थे। बलबीर सीनियर की उपलब्धियों को देखते हुए, हम उन्हें सम्मान देने में पीछे रह गए। सही है कि वह 1957 में पद्मश्री पाने वाले भारत के पहले खिलाड़ी बने पर शायद इस सम्मान के बाद उन्हें भुला दिया गया। बलबीर सीनियर के प्रशंसकों की हमेशा इच्छा रही कि उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा जाए। इस मुहिम में उनके नाती कबीर और  भारत के क्रिकेट कप्तान रह चुके बिशन सिंह बेदी ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया पर सफलता नहीं मिल सकी।
बलबीर सीनियर का हॉकी को सही शेप मिलने की कहानी भी दिलचस्प है। यह बात 1945 की है। पंजाब के इंसपेक्टर जनरल पुलिस जॉन बेनेट बलबीर सीनियर के जादुई खेल को देखकर इतने प्रभावित हुए कि अपने अधिकारियों से उन्हें नौकरी पर रखने को कहा। लेकिन बलबीर सीनियर इससे बचने के लिए दिल्ली चले गए। कुछ दिनों बाद उन्हें डथकड़ियां पहनाकर जालंधर लाया गया। बेनेट ने उनके सामने दो विकल्प रखे-जेल जाओ या हॉकी खेलो। उन्होंने दूसरा विकल्प अपना लिया।

मनोज चतुर्वेदी


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