यूपी के श्रमिकों का लौटना : अवसर में तब्दील हो सकती है चुनौती

Last Updated 28 May 2020 12:22:24 AM IST

कोरोना वायरस के कहर के चलते जारी लॉकडाउन ने प्रवासी मजदूरों के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा कर दिया है। हालात ऐसे हैं कि मजदूर अपने बीवी-बच्चों और अन्य परिजनों संग अपने गृह जनपदों की ओर पैदल चल पड़े।


यूपी के श्रमिकों का लौटना : अवसर में तब्दील हो सकती है चुनौती

उनके इस दर्द की दास्तान और मार्मिंक तस्वीरें मीडिया के सभी प्लैटफार्म पर दिखाई देने लगीं। नतीजतन, सियासतदानों ने राजनीतिक रोटियां भी सेंकी और एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाकर मजदूरों की सहानुभूति बटोरने की भी कोशिश की।
श्रमिकों का अपने गृह राज्य की तरफ पलायन केवल इस बात का ही प्रतीक है कि जिन राज्यों के विकास के लिए इन्होंने वर्षो से अपना खून-पसीना बहाया, कठिन समय में इनके मालिकों ने ही साथ नहीं दिया, बल्कि वहां की राज्य सरकारों ने भी इनकी जिम्मेदारी से ही अपना पल्ला झाड़ लिया। यहां यह भी बताना जरूरी है कि उत्तर प्रदेश से अपने-अपने प्रदेश जाने वालों की संख्या काफी कम रही है। मतलब साफ है कि योगी सरकार ने जाति, मजहब और क्षेत्र से ऊपर उठकर काम किया है। राजनीति से इतर लाखों की संख्या में मजदूरों का अपने गृह राज्य में लौटना उत्तर प्रदेश सरकार के लिए चुनौती भरा होना स्वाभाविक था। पर भगवाधारी मुख्यमंत्री राजधर्म को नये या कहें कि सही से परिभाषित करते नजर आए। श्रमिकों और कामगारों के लिए उन्होंने न सिर्फ बसों और रेलगाड़ी की व्यवस्था कराई, बल्कि कोरोना के समय आई इस चुनौती को अवसर में कैसे बदला जाए, उस पर भी काम करना शुरू किया। योगी सरकार द्वारा प्रवासी मजदूरों की घर वापसी के लिए की गई व्यवस्था की बात करें तो यकीनन योगी सरकार की कार्यवाही मील का पत्थर साबित होगी।

अब तक 12000 से ऊपर बसों और तकरीबन 1200 श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से कुल 26 लाख से ऊपर प्रवासी श्रमिक अपने गृह प्रांत उत्तर प्रदेश लौटे हैं। इन प्रवासी श्रमिकों के लिए भोजन-पानी की पर्याप्त व्यवस्था की गई है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की दूरदर्शिता ही कहेंगे कि वो ठीक से जानते हैं कि प्रवासी श्रमिक और कामगार अलग-अलग राज्यों में काम करते रहे हैं, इसलिए पूरी तरह से ट्रेंड हैं। इनको उत्तर प्रदेश में ही रोक लिया जाए तो ये प्रदेश के विकास के लिए बहुउपयोगी साबित होंगे। यही कारण हैं कि उन्होंने इनके बेहतर एडजस्टमेंट के लिए श्रमिक कल्याण आयोग के गठन का निर्णय लिया है। आयोग का काम होगा कि प्रवासियों के लिए उत्तर प्रदेश में बेहतर काम तलाश कर इनको यहीं रोक लिया जाए। इनका बीमा भी होगा। यूपी सरकार ने यह भी फैसला किया है कि सोशल सिक्यूरिटी की गारंटी पर अन्य राज्यों को भी आवश्यकतानुसार मैनपावर उपलब्ध कराई जाएगी।
जानकार बताते हैं कि जिस तरह का सुपरविजन अब तक योगी करते आए हैं, अगर ऐसा ही रहा तो अधिकारियों को इस योजना को अमलीजामा पहनाना ही पड़ेगा। शायद यही कारण है कि कामगार/ श्रमिक (सेवायोजन एवं रोजगार) कल्याण आयोग के गठन की युद्धस्तर पर तैयारी में योगी सरकार पूरी तरह जुट गई है। इसके तहत अब तक 14.75 लाख कामगारों व श्रमिकों की स्किल मैपिंग का काम भी पूरा कर लिया गया है। बाकी श्रमिकों और कामगारों की भी स्किल मैपिंग तेजी से जारी है। स्किल मैपिंग में सबसे बड़ी तादाद में 1,51,492 रीयल स्टेट डवलपर/वर्कर चिह्नित हुए हैं। फर्नीचर एवं फीटिंग के 26,989 टेक्निशियन चिह्नित हुए हैं। बिल्डिंग डेकोरेटर 26041, होम केयरटेकर 12633, ड्राइवर 10,000, आईटी एवं इलेक्ट्रानिक्स में 4680, होम एप्लांयस में 5884 टेक्नीशियन चिह्नित किए गए हैं। ऑटोमोबाइल टेक्नीशियन की संख्या 1558, पैरामेडिकल एवं फार्मस्यूटिकल्स 596, ड्रेस मेकर  12103, ब्यूटिशियन  1274, हैंडिक्राफ्ट एंड कारपेट्स मेकर  1294, सिक्योरिटी गार्ड्स की संख्या 3364 चिह्नित की गई है। योगी सरकार इन सभी कामगारों/श्रमिकों को प्रदेश में ही रोजगार के साथ-साथ सामाजिक सुरक्षा की गारंटी देने की तैयारी कर रही है। योगी सरकार ने यह भी फैसला किया है कि प्रदेश में एक जनपद के कामगार व श्रमिक को दूसरे जनपद में रोजगार मिलने पर सरकार इनके लिए सस्ते किराए पर आवास की भी व्यवस्था करेगी।
उत्तर प्रदेश डवलपमेंट फोरम के महामंत्री एवं मुंबई निवासी चार्टर्ड अकाउंटेंट पंकज जयसवाल की मानें तो जो प्रवासी अपने गृह राज्य लौट गए हैं, उनमें तकरीबन 20 प्रतिशत वापस नहीं लौटेंगे। पंकज का मानना है कि वही प्रवासी अब काम पर लौटेंगे जिन्होंने मुंबई जैसे शहरों में चाल खरीद ली हैं। योगी सरकार की प्रतिबद्धता इससे देखी जा सकती है कि उसने उद्योगों और विभागों से उनके मैनपावर की जरूरत के बारे में जानकारी मांगनी शुरू कर दी है। हर गांव में पाइप से पेयजल पहुंचाने की भी योजना है। उत्तर प्रदेश में 60 हजार ग्राम पंचायतें हैं यानी हर ग्राम पंचायत में कम से कम एक प्लंबर की जरूरत पड़ने वाली है। सरकार द्वारा बनाए जा रहे स्किल डाटा से प्लंबर की पहचान कर आसानी से विभागों को उपलब्ध कराया जा सकता है। कारपेंटर को सस्ती दर पर दुकान उपलब्ध कराकर उसे आसान लोन दिलाकर स्वरोजगार खड़ा कराया जा सकता है। यह अन्य राज्यों के लिए भी अनुकरणीय मॉडल हो सकता है। 
इस सबका बेहतर परिणाम उत्तर प्रदेश कि अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है। यही नहीं, अगर श्रमिकों और कामगारों का एक बड़ा हिस्सा उत्तर प्रदेश से वापस नहीं लौटा तो बहुत से व्यापारी अपना कारोबार भी उत्तर प्रदेश में स्थानांतरित कर सकते हैं। जरूरत होगी कि प्रदेश सरकार इनको ध्यान में रख कर भी कुछ योजनाएं लाए। शायद इसी उम्मीद ने इन श्रमिकों और कामगारों को आगे बढ़ते रहने का हौसला दिया है। नाजिम बरेल्वी अपनी नज्म की आखिरी पंक्तियों में कहते हैं-
..फिर भी दिल ने उम्मीद की इक शम्मा जला रखी है
गोया सीने में आग दबा रखी है
वक्त आज या कल मेरी मुट्ठी में आएगा
सब्र की शाख पर कभी तो फल आएगा!

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

राजीव श्रीवास्तव


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