ईद-उल-फितर : सेहत और सलामती की दुआ

Last Updated 25 May 2020 01:13:06 AM IST

ईद उल-फितर की मुबारकबाद देने का मौका रमजान के 30 रोजे रखने के बाद आता है। ईद अल्लाह का रोजेदारों के लिए एक नायाब तोहफा है।


ईद-उल-फितर : सेहत और सलामती की दुआ

रमजान के पूरे माह लोगों ने घरों से इबादत की है, नमाजे पढ़ी, तिलावत की और दुनिया को इस खौफनाक बीमारी से निजात पाने की दुआएं मांगी। महीने भर के रोजों के बाद माहे शव्वाल का चांद ईद की खुशियां लेकर आया है, जो बड़े-बुजुर्गों से ज्यादा बच्चों के चेहरों की मुस्कान में दिखाई देता है।
ईद की फिजा में जश्न की खुश्बू, रंग-बिरंगे कपड़ों से सजे-धजे बच्चों का चेहरा किसी खूबसूरत गुलाब से कम नहीं लगता, जब वो अपने बड़ों से दुआओं के साथ ईदी पाते हैं, खुशी से खिल उठते हैं। लेकिन इस बार की फिजा में वो रंग नहीं हर तरफ सहमी सी उदासी है। दुनिया में गम का माहौल है, मस्जिदें बन्द हैं, नमाजें घरों में पढ़ी जा रही हैं। लोग डरे सहमे हैं। कोरोना के कहर से गली-मोहल्लों में वीरानी है। पिछले एक सदी के लोगों ने ईद में ऐसी खामोशी नहीं देखी, जैसा कोविड-19 की महामारी ने फैला दी है। ईद के पर्व में भी बच्चे, बड़े-बूढ़े घरों में बंद हैं, यही इस लाइलाज महामारी का निश्चत रूप से तोड़ भी है। लेकिन ईद की खुशियां तो बांटने से बढ़ती हैं, बचपन से लेकर अब तक अपने बड़ों को रमजान में अपने से पहले, दूसरों की जरूरतों का ध्यान रखते हुए देखते आए हैं। दूसरों की मदद करने से अल्लाह खुश होता है।

यही हमारी सांस्कृतिक विरासत है। ईद मिलने-मिलाने का त्योहार है, गिले-शिकवे मिटाकर गले मिलने का त्योहार है। हमसे पहले के लोगों ने ऐसा संकट नहीं देखा, इसलिए थोड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है, मगर यह वक्त भी गुजर जाएगा। खुदा ने चुनौतियां तो दी हैं, लेकिन उन्हें अवसर में बदलने के लिए ताकत भी दी है। हजरत मोहम्मद साहब अकसर ईद की खुशियां उन गरीब, यतीम बच्चों के साथ साझा करते थे, जिनके वालिदैन इन्तेकाल कर गए होते थे, वो हर उस मासूम की चेहरे पर मुस्कान लाने की कोशिश करते थे, जो अपने अपनों के याद में गमजदा रहता था। इस बार की ईद बडी जिम्मेदारी लेकर आई है। जिम्मेदारी अपने आस-पास के गमजदा लोगों के प्रति, कुछ मुश्किल में फंसे लोगों की मदद के लिए। माना इस बार नये कपड़ों और साजो-सामान से भरी ईद ना हो, क्योंकि ज्यादातर लोगों की आर्थिक हालत खस्ता है। देश के जांबाज योद्धा हमारे पुलिसकर्मी, सेना, डॉक्टर, नर्स, मीडिया के सैनिक जो हर वक्त सबसे आगे डटे हैं; इस महामारी से लड़ने की जद्दोजहद में उनकी सलामती की दुआएं मांगने वाली है ईद। बेशक इस बार की ईद में वो रंग न दिखे, वो पहले जैसा मिलना-जुलना न हो, गले लगाकर ईद मुबारक न बोल पाएं, लेकिन इस ईद जरूरतमंदों की पहले से भी ज्यादा मदद करके, उनके चेहरों की मुस्कान लौटाकर रंगीन होगी। इस साल की ईद, जो नेकी का जरिया भी बनेगा और आखरत का इन्तेजाम भी करेगा। लोगों की मदद करना अल्लाह को राजी करने वाला होता है।
मुश्किल के इस दौर में महान उपन्यासकार मुंशी प्रेमचन्द की कहानी ‘ईदगाह’ याद आती है, जिसमें  हामिद की ईदी का समझदार खरीदारी अपनी दादी के लिए लिया चिमटे में छुपी है। आज भी कुछ ऐसी समझ की आवश्यकता है। देश में पहली बार इतना बड़ा संकट आया है। सड़कों में खस्ताहाल मजदूर, जिनके पांवों के जख्म सड़कों पर सदियों तक अपने निशान छोड़ गए हैं, हादसे में बिखरी लाशों को जगाते मासूम बच्चों की तस्वीर पूरी कायनात को गमजदा करने वाली हैं, जिसमें दुनिया पर कोरोना कहर बन कर टूटा है। कोरोना अपने साथ भूख का संकट भी लेकर आया है। मई की तपिश में मीलों भूखे-प्यासे सफर तय करना मौत को दावत देने वाला साबित हो रहा है। ऐसे में ईद एक जिम्मेदारी लेकर आई है, लोगों की मदद का, उनकी तकलीफों को कम करने का। जो मुंशी प्रेमचन्द ने बरसों पहले अपनी कहानी ‘ईदगाह’ में दर्ज कराई थी।
इस ईद चलो कुछ और बेहतर करते हैं अपनी जरूरत का एक बड़ा हिस्सा इन जरूरतमंदों तक पहुंचाते हैं, क्योंकि ईद की खुशियां तो बांटने से बढ़ती हैं। घरों से नमाज और इबादत करके अल्लाह से इस कहर से अपने प्यारे भारत के साथ-साथ पूरी कायनात की सेहत और सलामती की दुआओं का यह सिलसिला जारी रखते हैं। खुदा से सबकी सेहत और सलामती की ईदी मांगते हैं। देह से दो गज दूरी बनाकर ईद की मुबारकबाद देते हैं। ईद की खुशियां तो बांटने से बढ़ती हैं। सबको ईद मुबारक। दुआओं में याद रखना..।

डॉ. नाज परवीन


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