अर्थव्यवस्था : घरेलू उत्पादन क्षमता बढ़ाना जरूरी

Last Updated 21 May 2020 01:06:12 AM IST

समूची दुनिया को गिरफ्त में ले चुकी कोविड-19 महामारी के खिलाफ लड़ाई में केंद्र में सत्तारूढ़ नरेन्द्र मोदी सरकार और राज्य सरकारों ने अपने प्रयासों में कोई कसर नहीं छोड़ी है।


अर्थव्यवस्था : घरेलू उत्पादन क्षमता बढ़ाना जरूरी

लोगों की स्क्रीनिंग हो, या बीमारों को क्वारंटीन करना, या विदेश में फंसे भारतीयों को स्वदेश लाना या लॉकडाउन की घोषणा-केंद्र सरकार ने हर मामले में तत्परता दिखाई। राज्य सरकारें भी इन फैसलों में अपने तई सहयोग करने में पीछे नहीं रहीं। 
हालांकि लॉकडाउन के दौरान गरीबों को भोजन, प्रवासी मजदूरों को भोजन-ठरहने की व्यवस्था आदि तमाम बातों पर ध्यान दिया गया। लेकिन अपने घर-गांव लौटते प्रवासी मजदूरों और उनके परिजनों की दिल दहला देने वाली तस्वीरें मीडिया में आ रही हैं। बीमारी से लड़ने के उपाय के रूप में लॉकडाउन भारत ही नहीं, बल्कि तमाम देशों में लगाया गया। इसने एकदम से जनजीवन और आर्थिक गतिविधियों को ठप कर दिया। अर्थव्यवस्थाएं धराशायी हो गई। अनेक देश लॉकडाउन को यथाशीघ्र खत्म करना चाहते  हैं। भारत ने भी इसे ढीला करना शरू कर दिया है। कुछ बंदिशें हटा दी हैं। बाकी को आगे चलकर हालात के मुताबिक हटाया जाएगा। दरअसल, ज्यादा समय तक लॉकडाउन जारी रखा भी नहीं जा सकता। भारतीय अर्थव्यवस्था धीमे विकास से उभर ही रही थी कि महामारी ने उसे चपेट में ले लिया। अब अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कड़ा संघर्ष करना होगा। हालांकि कुछ सकारात्मक कारक अवश्य हैं, जिनके बल पर भारत जल्दी ही कमबैक कर सकता है। भारत की युवा जनसंख्या, बड़ा बाजार, परिश्रमी लोग और मजबूत लोकतंत्र महामारी के उपरांत हालात सामान्य करने में मददगार होंगे। बहरहाल, महामारी ने आर्थिक  अनिश्चितता और नौकरियों पर संकट पैदा कर दिया है। वित्तीय समस्याएं बढ़ा दी हैं। बाजार में मांग को खासा खत्म कर दिया है। यही सबसे बड़ी चुनौती है, जिससे पार पाया जा सका तो हालात जल्दी माकूल हो सकते हैं। यही कारण है कि लोगों के हाथ में ज्यादा से ज्यादा पैसा पहुंचाने की बात अर्थविज्ञ कह रहे हैं। छोटे उद्यमों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों का व्यवसाय तो खास तौर पर महामारी ने चौपट कर दिया है।

लेकिन भारत के लिए सुखद यह है कि अनाज भंडार पर्याप्त है। कच्चे तेल के दाम कम बने हुए हैं। मुद्रास्फीति नियंत्रण में है। ऐसे में सरकार फिस्कल रिस्पांसिबिलिटी एंड मैनेजमेंट एक्ट (एफआरबीएम) के तहत कुछ राहत दे सकती है। राज्यों के उधार लेने की सीमा शिथिल कर सकती है। इस संकट के उपरांत इतना तो तय है कि दुनिया के तमाम देश परस्पर संबंधों को पुनर्भाषित करेंगे। आत्मनिर्भर बनने के प्रयास करेंगे और उनके पारस्परिक संबंधों में आर्थिक आयाम नदारद रहेंगे यानी गैर-आर्थिक आयाम आने वाले समय में महत्त्वपूर्ण हो जाएंगे।
बेशक, वैश्विकरण से विमुखता की प्रवृत्ति, जो 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद शुरू हुई थी, बढ़ेगी लेकिन यह भी तय है कि वैश्विकरण पूरी तरह खत्म नहीं होगा। सभी देश आत्मनिर्भर बनने के प्रयास तेज तो करेंगे लेकिन मौजूदा हालात ऐसे हैं कि कोई भी देश पूर्णरूपेण आत्मनिर्भर नहीं हो सकता। हां, इतना जरूर है कि कुछ महत्त्वपूर्ण उत्पादों के मामले में आत्मनिर्भर बनने के प्रयासों  में तेजी आए। दवाओं के लिए जरूरी कच्चे माल को लेकर भारत की चीन पर अतिनिर्भरता कोविड-19 ने उजागर कर दी  है। यकीनन, भारत इस अतिनिर्भरता को  खत्म करने के पुरजोर प्रयास करेगा। इस कड़ी में आयातित सामानों पर शुल्क बढ़ाकर उन्हें घरेलू बाजार में महंगा बना देने भर से बात नहीं बनेगी। जरूरी होगा कि वैश्विक प्रतिस्पर्धा के मद्देनजर घरेलू उत्पादन क्षमता बढ़ाई जाए। अनेक देश और बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने कारोबार चीन से बाहर ले जाने का मन बना चुकी हैं, लेकिन यह मान बैठना भूल होगी कि उनके लिए भारत ही आकषर्क गंतव्य होगा। चीन से बाहर निकलने को उत्सुक बहुरराष्ट्रीय कंपनियां भारत आ सकती हैं बशत्रे यहां उन्हें मुफीद माहौल मिले। नियम-कायदों में जरूरी बदलाव लाकर ऐसा किया जा सकता है। सामाजिक समरसता का मुद्दा भी है जो बहुराष्ट्रीय कंपनियों के भारत में कारोबार लाने संबंधी फैसले को प्रभावित करेगा। देखा जाना है कि नई परिस्थितियों में हम कितने कारगर साबित होते हैं।

रणधीर तेजा चौधरी


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