कोरोना : महामारी और मंदी की चौखट पर

Last Updated 21 May 2020 01:09:26 AM IST

ट्रम्प प्रशासन की आंतरिक रिपोर्ट चिंताजनक है। एक जून तक अमेरिका में दैनिक मौत का आंकड़ा 3000 पहुंच जाएगा।


कोरोना : महामारी और मंदी की चौखट पर

इसी माह के अंत तक रोज दो लाख नये मामले सामने आ सकते हैं। ऐसे में लॉकडाउन में ढील दी गई तो समूचे अमेरिकी उपमहाद्वीप में बड़ी तबाही को न्यौता देने जैसा होगा। संक्रमण की यही स्थिति रही तो अगस्त माह तक 135000 के लगभग मौतें हो सकती हैं। यूरोपीय देशों की स्थिति भी निरंतर विस्फोटक बनी हुई है। भारत में भी संक्रमितों एवं मृत्यु दर की संख्या में बढ़ोतरी जारी है।
जानकारों की मानें तो यह 19वीं सदी के प्लेग से कम खतरनाक नहीं है। रोचक तथ्य यह कि उस संक्रमण की भी भारत में शुरुआत चीन के यूहान प्रांत से हुई थी, जिसमें लगभग 6 लाख भारतीयों की जान गई थीं। हांगकांग उस समय ब्रिटिश राज्य के अधीन था और भारतीय उपमहाद्वीप में भी व्यापार का बड़ा माध्यम समुद्री जहाजों द्वारा संचालित होता था। व्यापारिक पोत द्वारा पहला संक्रमण बबंई और कराची बंदरगाह तक पहुंचा और फिर यूपी, संयुक्त पंजाब, नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर, हैदराबाद, मैसूर, मद्रास, अवध और बर्मा तक को लपेटे में ले लिया। इस संक्रमण की अवधि कई वर्ष तक रही और विश्व भर में मृतकों की संख्या भी अनगिनत हो गई। ब्रिटिश हुक्मरान अपनी व्यापारिक गतिविधियों को निरंतर संचालित करते रहे। दुर्भाग्यवश स्वास्थ्य एवं चिकित्सा का कोई संस्थागत ढांचा नहीं था। लिहाजा, ग्रामीण क्षेत्रों में जान-माल की अविसनीय क्षति हुई। उस समय की ब्रिटिश मेडिकल पत्रिका में भी इसकी पुष्टि हो चुकी है। उस समय के चिकित्सक भी ‘शारीरिक दूरी’ को इसका फैलाव रोकने का एकमात्र उपाय मानते थे। संयोग है कि पूरे 100 वर्ष के बाद आज भारत भी पुरानी पद्धति को ही अपनाने पर विवश है। आज हम प्रवासी कामगारों की घर वापसी की लंबी कतारों को देखकर आश्चर्यचकित हैं। उस समय भी गांवों से दलित एवं कमजोर वगरे के लोगों का बड़े पैमाने पर पलायन होता रहा। गांवों के सामंती एवं जातीय भेदभाव के ढांचे ने भी गरीबों को पलायन को और हवा दी। प्लेग चूंकि छुआछूत की बीमारी घोषित हो चुकी थी, इसलिए परिवार के लोगों ने ही न सिर्फ  दूरी बनाई, बल्कि रोगियों को भी कई बार एकांत में छोड़ दिया। प्लेग के फैलाव के दौर का एक वर्ष ऐसा भी था, जब 13 लाख लोगों की मृत्यु हुई।

अमेरिका भी उस संक्रमण से प्रभावित होने वाले राष्ट्रों में प्रमुख था। 1918 के आसपास अमेरिकी प्रांतों में इस प्लेग का पीक पीरियड था, जिसमें लगभग सात लाख  अमेरिकियों की जान गई। अमेरिका की हालत बदतर होती चली गई। जातीय, रंगभेद दंगे समूचे प्रांतों को हिंसा की लपेट में आने लगे। लगभग 5 लाख अमेरिकी शिकागो प्रांत की ओर पलायन कर गए। श्रमिकों का अंसतोष भी निरंतर बढ़ने लगा। अमेरिका प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद भीषण आर्थिक मंदी का शिकार हो चला था। मुद्रास्फीति चरम पर थी। खाद्य पदाथरे के दाम आसमान छू रहे थे। अर्थव्यवस्था का बुरा दौर विव्यापी था। भारत 1930 में भीषण आर्थिक मंदी का दंश झेल चुका है, जिसमें भुखमरी, बेरोजगारी, महंगाई, पलायन, वस्तुओं का अभाव प्रमुख थे।
क्या हम पुन: उसी महामारी और आर्थिक मंदी के शिकार हो चले हैं? नामी-गिरामी स्वास्थ्य विशेषज्ञ कोरोना वायरस की लंबी उम्र की भविष्यवाणी करके चिंतित कर चुके हैं। इस वायरस का शिकार समूची मानवता है। धारावी के गरीब से लेकर कैलीफोर्निया के धनाढ्य तक इसकी चपेट में हैं। अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक लगभग 180 से अधिक देशों की अर्थव्यवस्था का आकलन तैयार करते हैं। उनके अनुसार 2020 की आर्थिक मंदी की अवस्था 1930 की मंदी से भी बदतर होने के आसार हैं। उनके आकलन के मुताबिक अमेरिका और यूरोपीय मुल्क धीरे-धीरे 2008 की मंदी से निकल चुके थे। यद्यपि भारत एवं कई अन्य विकसित अर्थव्यवस्था भी इसकी लपेट में आने से बच गई थीं। विश्व के सबसे ताकतवर एवं समृद्ध बैंक ‘लैम्हन्स ब्रदर्स’ ने  16 सितम्बर, 2009 में अपने को दिवालिया घोषित कर समूचे विश्व की चिंताएं बढ़ा दी थीं। इसी महीने लगभग 12 लाख अमेरिकी भी स्वयं को डिफाल्टर घोषित कर चुके थे।
समूची दुनिया के अर्थशास्त्री, नीति विशेषज्ञ, बाजार के जानकार चिंता में हैं कि इस महामारी और आर्थिक मंदी से कैसे छुटकारा मिले। कैलेंडर वर्ष 2020 में भारत की ग्रोथ रेट शून्य रह सकती है, ऐसा भी अनुमान है। इससे लगभग 17 लाख करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान संभावित है। लॉकडाउन के निरंतर चलते लगभग 14 करोड़ से अधिक भारतीय श्रमिकों को रोजगार से हाथ धोना पड़ेगा। देश को लगभग प्रतिदिन 40 हजार करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ेगा। असंगठित क्षेत्र से लगभग 40 करोड़ लोगों की रोजी-रोटी खतरे में पड़ गई है, जिनके गरीबी की सीमा रेखा में जाने की पूरी संभावना है। भारत के विभिन्न उद्योग एवं वाणिज्य संगठनों द्वारा राहत पैकेजों की मांग निरंतर बढ़ती जा रही है। सरकार ने पहले उद्योगों को 1.7 लाख करोड़ रुपये की प्रोत्साहन राशि देकर हौसला बढ़ाया। हाल में 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा भी इस दिशा में की गई है।
भारत में आर्थिक सुधारों का फायदा सीमित लोगों तक ही पहुंच पाया है। एक वर्ष के दौरान देश की सबसे अमीर एक प्रतिशत जनसंख्या की संपत्ति में 46 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई जबकि सबसे गरीब 50 प्रतिशत जनसंख्या की संपत्ति में मात्र 3 प्रतिशत की वृद्धि रिकॉर्ड हुई है। ऊपर की दस प्रतिशत जनसंख्या के पास देश की 74.3 प्रतिशत संपत्ति है जबकि नीचे की 90 प्रतिशत जनसंख्या के पास मात्र 25 प्रतिशत। अब समय आ गया है कि सभी वगरे को समान अवसर देकर नई चुनौतियों का सामना किया जाए। आगे का समय महामारी और मंदी का है। भारत के 130 करोड़ लोगों को प्रतिबद्ध होकर इस स्थिति से लड़ना और जीतना है। किसी भी तरह का राजनैतिक जोड़तोड़ इस प्रयास को कमजोर कर सकता है। आशा है, जैसे ब्रिटिश उपनिवेशवाद के विरु द्ध समस्त भारतीय जैसे एक सूत्र में बंधे थे, उसकी पुनरावृत्ति पुन: देखने को मिलेगी।
(लेखक पूर्व सांसद हैं)

केसी त्यागी


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