बतंगड़ बेतुक : ठेका खुलवाए तेरा शुकराना सरकार

Last Updated 10 May 2020 03:50:35 AM IST

ठेका खुलने की खबर तपन में फुहार की तरह आयी और झल्लन के सूखते हुए होंठों पर प्यास उतर आयी।


बतंगड़ बेतुक : ठेका खुलवाए तेरा शुकराना सरकार

कौन तो कोरोना से कांपता और कौन सोशल डिस्टेंसिंग नापता, झल्लन अलस्सुबह जगा और पहले से ही जुटी भीड़ में ठेके से दो किमी. दूर लाइन में जा लगा। सुबह से शाम हुई सो हुई मगर झल्लन की किस्मत काम आ गयी और काउंटर से निकल कर एक पूरी बोतल हाथ आ गयी। फिर सड़क से हटकर गलियों में चलते-चलाते, पुलिस से बचते-बचाते वह अपने पिट्ठू पार्क के मुहाने पर आ लगा और किसी हमजोली मयकश की तलाश में नजर घुमाने लगा।

पाकड़ के पेड़ तले जिस बेंच पर वह सुखनवरों के साथ दीन-दुनिया पर तबसरा किया करता था, अपना मशवरा दिया करता था, औरों से लिया करता था वहां उसे कोई पहचाना चेहरा तो नजर नहीं आया और जो नजर आया वह इंसान होते हुए भी इंसान सा नजर नहीं आया। एक शख्स मुड़ा-तुड़ा सा बेंच पर पड़ा हुआ था और मास्क की जगह उसके मुंह पर अंगोछा पड़ा हुआ था। झल्लन उत्सुकतावश उसके पास चला आया तो उस शख्स ने भी अपना चेहरा ऊपर उठाया। झल्लन बोला, ‘कौन हो भाई, कहां से आये हो, कोरोना में घर पर रहने की हिदायत है और तुम बाहर निकल आये हो? कुछ दुखी भी लग रहे हो, लगता है कई रात से जग रहे हो।’ उस इंसान की निगाह झल्लन पर नहीं, झल्लन के हाथ में दबी बोतल पर चिपक रही थी और उसकी जबान उसके होंठों पर फिर रही थी। वह बोला:
ठेके का खुलना, लाइन में लगना, लौटना खाली हाथ
बोतल वाले तू क्या समझे मेरा दर्द मेरे जज्बात।
सुनकर झल्लन मुस्कुराया, उसने अपना हाथ आगे बढ़ाया और उस दुखी जीव का हाथ पकड़कर उसे बेंच पर सीधा बिठाया और बोला:
मायूस न हो ए दोस्त, आ बैठ कुछ जिंदगी जी ली जाये
इस कुरूना से क्या डरना इसी के नाम पे पी ली जाये
उस शख्स को जैसे मनचाहा मिल गया और चेहरा बताशे की तरह खिल गया। वह बोला:
जो किसी गैर को महफिल में बिठा लेता है
अपनी बोतल में से दो घूंट पिला देता है,
मंदिर या किसी मस्जिद को यकीं हो या न हो
पर अल्लाह उसे जन्नत का सिला देता है।
झल्लन ने दो घूंट चढ़ाकर बोतल उसकी ओर बढ़ा दी और उसने भी लपक कर मुंह से लगा ली। उधर शाम धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी, इधर दोनों को रफ्ता-रफ्ता चढ़ रही थी। झल्लन बोला, ‘भाई, एक बात समझ नहीं आयी। सरकार ने लॉक-डाउन के नियम बनवाए थे वे खुद ही तुड़वा दिये, ठेके नहीं खुलने थे पर खुद ही खुलवा दिये।’ पियक्कड़ बोला, ‘यार सुन, न कोई पी रहा था, न कोई झूम रहा था, देख के सरकार का सर घूम रहा था।’ झल्लन बोला, ‘न पैसा न कमाई, खर्च अर्श को चूम रहा था, सोच-सोच के सरकार का सर घूम रहा था।’ पियक्कड़ बोला, ‘बहुत खूब मियां, सरकार ने चाहे जिसके लिए किया पर जो किया वो खूब किया।’ झल्लन बोला, ‘तब तो सरकार के नाम एक बधाई बनती है, कुछ बधाई पे हो जाये।’ पियक्कड़ बोला, ‘हो जाये और वह गाने लगा:
भला किया ठेके खुलवाए तेरा शुकराना सरकार
क्या खूब मिजाज जनता का तूने पहचाना सरकार
तुझे जरूरत जिस सुरूर की वह तो बोतल ही देगी
पीने वालों का तुझे मुबारक ये नजराना सरकार।
झल्लन ने जोड़ा:
भटक रहे हैं अभी बहुत से इक चुल्लु की आस लिए
उनके घर भी अद्धा-पउवा कुछ तो पहुंचाना सरकार।
पियक्कड़ बोला:
वे नमाज-पूजा वाले जो ठेके तक आ नहीं सके
उनके हरम दैर जाकर कुछ ठेके खुलवाना सरकार।
दोनों हंसने लगे, थोड़ा बहकने लगे, तो थोड़ा चहकने लगे। झल्लन अपने हमबोतल के कंधे पर हाथ मारकर बोला, ‘कोरोना ने वाकई बुरा हाल कर दिया है, लोगों का जीना मुहाल कर दिया है। समझ में नहीं आता कि कब कोरोना किसका हमसफर हो जाये और कब किसे जमीं से उठा दे और उसकी रूह को उस पार ले जाये। मंदिर-मस्जिद भी बंद हो गये हैं नहीं तो उधर चले जाते, खुदा के दर पे कोई दुआ ही कर आते।’
पियक्कड़ ने झल्लन को देखा और उंगलियों की ताल पर गाना शुरू कर दिया:
कौन जिएगा, कौन मरेगा, इसे राम या रब जाने
कोरोना ने उलट दिये सब दीन-धरम के पैमाने
गर जवाब इसका है कोई तो क्या खुदा बताएगा
मंदिर-मस्जिद वीरान हुए आबाद हुए क्यों मयखाने।
झल्लन बोला, ‘देखो मियां, न खुदा ने कभी कुछ बताया है न खुदा कभी कुछ बताएगा, मुसीबत इंसान पर आयी है इसे इंसान ही मिटाएगा। और सुनो, इससे पहले कि पुलिस आ जाये, डंडे चलाए और मारकर भगाए, यहां से उठ लिया जाये और सही-सलामत घर पहुंच लिया जाये। कल फिर कहीं से बोतल कबाड़ के लाएंगे, कल फिर यहीं महफिल जमाएंगे।

विभांशु दिव्याल


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