सरोकार : कोविड-19 की मार औरतों पर ज्यादा
हर तरफ से कोरोना वायरस से जुड़ी खबरें ही आ रही हैं। पूरी दुनिया भर में औरतें इसकी अप्रत्यक्ष रूप से शिकार हो रही हैं।
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आंकड़े कहते हैं कि कोविड-19 सबसे ज्यादा पुरु षों पर कहर बरसाता है, लेकिन असल में औरतें अलग ही तरह से प्रभावित हो रही हैं। सोशल डिस्टेंसिंग ने लोगों को वर्क फ्रॉम होम की ओर धकेला है। इसका नुकसान सबसे ज्यादा औरतों पर हो रहा है। आम तौर पर उनसे उम्मीद की जाती है कि उन्हें काम के समय ऐसे बर्ताव करना चाहिए जैसे उनके बच्चे हैं ही नहीं। बच्चों को पालने के दौरान ऐसा बर्ताव करना चाहिए जैसे वे काम करती ही नहीं। इन दिनों भी यही विरोधाभास देखा जा रहा है। दफ्तरों के जूम कॉल्स के दौरान उनके बच्चे कहीं पीछे दिख जाते हैं तो यह बिल्कुल अनप्रोफेशनल माना जाता है। हां, आदमियों के ऑफिस कॉल्स के दौरान बच्चे आगे-पीछे दिख जाते हैं तो आदमियों को समझदार और घरेलू किस्म का माना जाता है। हम कहते हैं, वह अपने घर परिवार का कितना ध्यान रखता है। अधिकतर के लिए वर्क फ्रॉम होम की अवधारणा अव्यवस्था ही पैदा करती है।
इस महामारी ने विभिन्न तबकों के बीच कायम असमानताओं को अधिक दृश्य किया है। खास तौर से घरेलू स्तर पर। महिलाएं घरों में ज्यादा काम करती हैं। बच्चों की देखभाल ज्यादा करती हैं। उन्हें पढ़ाई कराती हैं। साफ-सफाई करती हैं। खाना पकाती हैं। कामकाजी होने के बावजूद। इन दिनों यह और भी साफ दिख रहा है। वे पहले से ज्यादा वर्क लाइफ बैलेंस बना रही हैं। अब काम वर्चुअल है। ईमेल, व्हॉट्सएप, जूम मीटिंग्स..यानी वर्कर्स हर समय उपलब्ध हैं। अब पहले की तरह उसे काम करने के लिए डेस्क या महंगा ऑफिस स्पेस नहीं। उसके लिए कोई यूनियन की जरूरत नहीं। कहीं जाने की भी जरूरत नहीं। कई कंपनियां तो अब इसी तरह से काम करने के बारे में सोचने लगी हैं। पर इसका असर सीधा-सीधा औरतों पर पड़ने वाला है।
यूएन की सीनियर जेंडर एडवाइजर नेहला वल्जी का भी यही कहना है कि ऐसा कोई समाज नहीं जहां पुरु षों और स्त्रियों के बीच मानता है। इस महामारी ने मौजूदा असमानताओं को बढ़ाया ही है। कोविड-19 ने सेवा क्षेत्र को बुरी तरह प्रभावित किया है, जिसमें बड़ी संख्या में औरतें काम करती हैं। चूंकि इस बीमारी से लड़ने का सबसे अच्छा तरीका सोशल डिस्टेंसिंग हैं, इसलिए हॉस्पिटैलिटी, रिटेल और पर्यटन उद्योगों पर सबसे ज्यादा मार पड़ी है। औरतों को इसी से नौकरियों से भी हाथ धोना पड़ा है। तिस पर उन्हें घरों में अनपेड वर्क का बोझ ढोना पड़ता है। इसलिए वे तब तक बाहर निकल कर काम की तलाश नहीं कर सकतीं, जब तक बच्चे दोबारा स्कूलों में पढ़ने नहीं चले जाते, या परिवार के बीमार लोग दुरु स्त नहीं हो जाते। कुछ दिन पहले एक कार्टून में इस बात पर चुटीला व्यंग्य किया गया था। कार्टून में बीवी खाना पका रही है। पति सोफे पर बैठा टीवी देख रहा है। बीवी फोन पर बता रही है, सारा दिन करते कुछ नहीं। बस हर एक घंटे में मेरे लिए पांच मिनट के लिए तालियां बजा देते हैं। इसी कार्टून के बीच किसी ने इंस्टाग्राम पर पोस्ट किया-अब सभी को समझना चाहिए कि #sharetheload कितना जरूरी है, खासकर मदरे को। हां, यह घर काम को बांटने का सही वक्त है-और अनस्किल्ड कामों के महत्त्व समझने का भी। वर्क फ्रॉम होम के दौरान दफ्तर का काम भी करना है, घर का भी काम जो घरेलू कामगार करती हैं। कोविड 19 की यह अपनी तरह की मार है। ऐसी मार, जो इससे पहले लोगों ने देखी नहीं थी।
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