कश्मीर : सख्त फैसले का सही वक्त
जम्मू कश्मीर के हंदवाड़ा में लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में पांच जवानों के बलिदान ने एक बार फिर प्रदेश में आतंकवाद की स्थिति की ओर ध्यान खींचा है।
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देश के लिए संतोष की बात बस इतनी है कि मुठभेड़ के दौरान सेना ने जिन दो आतंकवादियों को मार गिराया उनमें एक लश्कर-ए-तैयबा का उच्च कमांडर हैदर था, जिसकी तलाश लंबे समय से थी। किंतु इसकी इतनी बड़ी कीमत कि कमांडिंग ऑफिसर तक जान गंवा दे; सामान्य स्थिति का परिचायक नहीं है। कहा जा सकता है कि अगर आतंकवादियों ने एक घर में छिपकर लोगों को बंधक नहीं बनाया होता तो सुरक्षा बलों को इतनी बड़ी क्षति नहीं होती। बंधकों तो छुड़ा लिए गए लेकिन राष्ट्रीय रायफल्स के एक कर्नल, एक मेजर, पुलिस एक उप निरीक्षक तथा एक लांस नायक एवं एक रायफलमैन शहीद हो गए।
निश्चय ही यह सवाल उठ रहा है कि आखिर ऐसा क्या हुआ, जिसमें इतने जवानों को बलिदान देना पड़ा? वस्तुत: 1 मई को चार आतंकवादियों के छिपे होने की सूचना मिलने पर राष्ट्रीय राइफल ने पुलिस के साथ मिलकर संयुक्त ऑपरेशन शुरू किया। जैसी सामान्य प्रक्रिया है; अलग-अलग टीम आतंकवादियों को ढूंढ रही थी। दूसरे दिन दोपहर जब 21 राष्ट्रीय राइफल के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल आशुतोष शर्मा के नेतृत्व में उनकी टीम तलाश कर रही टीमों को कॉर्डिनेट कर रही थी तो उन्हें एक घर में आतंकवादियों के होने तथा कुछ लोगों को बंधक बनाने की जानकारी मिली।
कहा जा रहा है इन लोगों ने बंधकों को बाहर निकाल लिया, लेकिन छिपे हुए आतंकवादियों की ताबड़तोड़ गोलीबारी का शिकार हो गए। इनका संपर्क डिवाइस क्षतिग्रस्त हो गया था, इसलिए संपर्क करना कठिन था लेकिन जिस दूसरी टीम ने घर को घेर रखा था, उसे कर्नल के मोबाइल पर फोन करने पर ट्रेजडी का अंदाजा हो गया था क्योंकि दो बार उस फोन से ‘सलाम वालेकुम’ की आवाज आई। अंदर जो भी हुआ हो, यह साफ है कि उन पांचों वीरों ने अपनी जान देकर बंधकों को मुक्त भी कराया और बारिश एवं अंधेरे के बावजूद उन्होंने ऐसी स्थिति निर्मिंत की कि दो आतंकवादी किसी सूरत में भाग नहीं सके और मारे गए। साफ है कि गोली लगने के बावजूद उनमें जिसके अंदर भी जान बाकी थी उनने अंतिम सांस तक बहादुरी दिखाई। लेकिन समूचे देश के लिए इस दुखद घटना ने कई बातों पर विचार करने को विवश किया है। कर्नल आशुतोष करीब ढाई साल से 21 राष्ट्रीय राइफल्स के कमांडिंग ऑफिसर थे। कमांडिंग ऑफिसर रहते ही उन्हें पिछले साल इस जांबाजी के लिए सेना मेडल से सम्मानित किया गया था। इससे पहले भी उन्हें एक बार और सेना मेडल दिया जा चुका है। राष्ट्रीय राइफल्स सेना का वह हिस्सा है, जो कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियानों की अगुआई करती है। कमांडिग ऑफिसर को खोना विरल घटनाओं में शामिल होतीं हैं।
आज आतंकवादियों और उनके आकाओं के बीच जश्न का माहौल होगा। ध्यान रखिए, 21 राष्ट्रीय राइफल्स का मुख्यालय हंदवाड़ा में ही है, जो कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में पड़ता है। यह आतंकवादियों के जश्न का दूसरा कारण होगा। क्या इस क्षति को रोका जा सकता था? इसका उत्तर है, हां। इस घटना को लेकर कायम संभ्रम की स्थिति चिंता पैदा करती है। पहले खबर आई थी कि कुपवाड़ा जिले में शनिवार को चलाए गए आतंकवाद विरोधी अभियान के दौरान दो अधिकारियों सहित सुरक्षाबल के पांच जवान लापता हो गए। अब जब कश्मीर को पूरी तरह आतंकवाद मुक्त करने के लक्ष्य से अंतिम लड़ाई की बात हो रही है इस तरह का संभ्रम आम आदमी के विास को थोड़ा हिलाता है। इस घटना का गहराई से विश्लेषण जरूरी है। ऐसा माना जा रहा है कि आतंकवादी पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से घुसपैठ करने वाले एक समूह को लेने के लिए हंदवाड़ा पहुंचे थे। ऑपरेशन कुपवाड़ा जिले के राजवार जंगल क्षत्र में हुआ। यह घुसपैठ कर आने वाले आतंकवादियों का ‘रिसेप्शन क्षेत्र’ भी है। यानी जब आतंकवादी नियंत्रण रेखा से घुसपैठ कर आते हैं तो इस क्षेत्र में उन्हें अंदर मौजूद आतंकवादी रिसीव करते हैं। अप्रैल-मई में पाकिस्तान सबसे ज्यादा घुसपैठ कराने की कोशिशें करता है, क्योंकि इस मौसम में एंटी इन्फिल्ट्रेशन ऑब्स्टकल सिस्टम यानी घुसपैठ रोधी बाधा पण्राली को ढंकने वाली बर्फ पिघलने लगती है और बर्फ के नीचे दबी बाड़ों में टूट फूट हो चुकी होती है। इसके लिए पाकिस्तान युद्धविराम का उल्लंघन कर गोलीबारी की आड़ देता है, जिसके कारण आतंकवादी घुसपैठ करने में सफल होते हैं।
साफ है कि दुनिया भले कोरोना प्रकोप से बाहर आने के लिए संघर्ष कर रही हो, पाकिस्तान भी इसमें फंसा हुआ है, लेकिन वह कश्मीर में आतंकवाद को निर्यात करने से बाज नहीं आ रहा। हालांकि इस वर्ष आतंकवादियों के खिलाफ संघर्ष में सफलताएं काफी हैं। जनवरी से अब तक मुठभेड़ में 62 से ज्यादा आतंकवादी मारे गए हैं। 1 अप्रैल से अब तक 30 आतंकी मारे गए हैं। करीब 35 आतंकवादी 25 मार्च को लॉक-डाउन की घोषणा के बाद मारे गए। खुफिया रिपोर्ट को मानें तो आतंकवादियों के नेटवर्क की भारी तबाही हुई है और उनके मददगार ओवर ग्राउंड वर्करों पर दबाव है। लेकिन यह स्वीकारने में आपत्ति नहीं है कि 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 हटाने के पूर्व और बाद में उठाए गए ऐतिहासिक सुरक्षा कदमों के कारण आतंकवादी घटनाएं जिस तरह रु कीं थीं, शांति आ रही थी; उसमें गिरावट आई है। पाकिस्तान के रवैये से साफ था कि वह कश्मीर को जलाने की जितनी कोशिश कर सकता है करेगा। इसलिए जम्मू कश्मीर विशेषकर कश्मीर घाटी में लगाई बंदिशों को और कुछ समय जारी रखना आवश्यक था।
जो लोग मोबाइल, नेट आदि बंद होने के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय गए थे वे यह अपील नहीं करने जाएंगे कि आतंकवादियों की घुसपैठ बढ़ रहीं हैं, इसलिए बंदिशें फिर से लागू करने का आदेश दिया जाए। वास्तव में भारत के पास इससे बड़ा अवसर घाटी में शांति स्थापना का नहीं हो सकता। इसलिए बिना भावुकता में आए तथा दबावों से अप्रभावित रहते हुए सरकार को आवश्यक बंदिशें लागू करनी चाहिए। सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक जैसे सीमा पार आतंकवाद विरोधी लड़ाई में इतिहास का अध्याय लिखने की दो बड़ी कार्रवाई हम कर चुके हैं। कोरोना संघर्ष में हमारी संलग्नता का इस तरह का दुष्टतापूर्ण लाभ उठाने की अनुमति नहीं दी जा सकती। किंतु इसके लिए आंतरिक स्थिति को संभालना बहुत जरूरी है।
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