स्मरण : कसक रह गई विदाई में
दादासाहेब फाल्के अवार्ड लेने दिल्ली आए राज कपूर जी को मई 1988 में दिल का दौरा पड़ा और 2 जून को वो चल बसे।
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तब ऋषि कपूर ने कहा था, पापा (राज कपूर) की चिता में सिर्फ चंदन की लकड़ी लगाना। पर कोरोना कहर के चलते ऋषि कपूर के सुपुत्र रणबीर कपूर चाह कर भी अपने मशहूर पिता को उनके कद के अनुरूप विदाई नहीं दे सके।
उन दिनों मैं इंडियन एक्सप्रेस समूह के हिंदी अखबार जनसत्ता का दिल्ली संवाददाता था। अप्रैल और मई 1988 में मैं सपरिवार अमेरिका के टूर पर था। तभी दिल्ली दफ्तर से फोन आया फौरन भारत लौट आओ। राज कपूर जी को दिल का घातक दौरा पड़ा है और वे दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती हैं, जहां हिंदी या इंग्लिश के किसी भी पत्रकार को घुसने नहीं दिया जा रहा। तुम ही उनकी खबर निकाल कर ला सकते हो। मजबूरन मुझे अमेरिका की यात्रा अधूरी छोड़कर भारत आना पड़ा। तब से एक महीने तक हर दिन मैं सुबह दस बजे से शाम सात बजे तक एम्स के प्राइवेट वार्ड के सूट नम्बर 101 में कपूर परिवार के साथ रहता और रात को दफ्तर जाकर दिन भर की रिपोर्ट लिखता। क्योंकि वहां दिन भर मिलने आने वाले वीवीआईपी और फिल्मवालों का तांता लगा रहता था, जिसके कई रोचक किस्से होते। मेरी खबरों को ही अगले दिन देश भर के बाकी अखबार अपनी-अपनी भाषा में छापते थे। दुख की घड़ी में आशा की हर किरण नई अपेक्षा जगा देती है।
उन्हीं दिनों एक दिन दोपहर को राजीव कपूर (राम तेरे गंगा मैली के नायक) और मैं वीआईपी वार्ड के उसी कमरे में एक ही पलंग पर नीचे पैर लटकाए सो रहे थे। वार्ड के पर्दे के पीछे मरीज वाले पलंग पर कृष्णा राजकपूर, बहुरानी और तारीका बबीता और नीतू इसी तरह पैर लटकाये सो रही थीं। राज साहब तो आईसीयू में थे। तभी वार्डब्याय ने सूचना दी कि रामायण की सीता जी आई हैं। हम सब हड़बड़ाकर उठ गए। दीपिका चिखलिया अपनी मां और छोटे भाई के साथ आई थीं। उन्हें देखकर बॉलीवुड का ये मशहूर कपूर खानदान ऐसे नतमस्तक हो गया मानो साक्षात सीता जी ही आशीर्वाद देने आ गई हों। उस दिन मैंने खबर लिखी ‘कपूर खानदान के लिए सीता ही थीं दीपिका चिखलिया’।
2 जून 1988 की शाम जब राज कपूर साहब ने अंतिम सांस ली तो उस कक्ष का वातावरण एकदम गमगीन हो गया। पर फिर जल्दी ही आगे की तैयारी की चर्चा होने लगी। उन दिनों मोबाइल फोन तो थे नहीं। अस्पताल के वीआईपी कमरे में जो एम.टी.एन.एल का फोन था उसमें भारत सरकार ने एस.टी.डी की सुविधा दे रखी थी। उस पर सभी कपूर भाई बहन लगातार बम्बई फोन करके अपने-अपने सचिवों को शव यात्रा की तैयारी की हिदायत दे रहे थे।
दुखी बैठी कृष्णा राजकपूर को इस सबसे परेशानी ना हो इसलिए उस फोन के तार को लंबा खींच कर बाहर बालकनी तक ले गए थे, जहां परिवार के मित्र फिल्मी सितारे राजेश खन्ना आदि कुर्सी पर बैठे लगातार सिगरेट पी रहे थे। रणधीर कपूर बहुत गमगीन खामोश खड़े थे। मैं तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य व उड्डयन मंत्री मोतीलाल वोरा जी को हर थोड़ी देर बाद फोन करके आगे की व्यवस्था पूछ रहा था। कुछ तय नहीं हो पाया था। करीब रात 9 बजे वोरा जी ने मुझे बताया कि प्रधानमंत्री राजीव गांधी जी से अनुमति मिल गई है। इंडियन एयरलाइंस का एक विशेष विमान कपूर परिवार को लेकर बम्बई जाएगा। उन्होंने मुझसे इसे गोपनीय रखने को कहा अन्यथा इतने सारे फिल्मी सितारों को देखने भारी भीड़ अस्पताल और हवाई अड्डे पर जुट जाती। तय हुआ कि रात के दो बजे पालम से विमान उड़ेगा। वोरा जी ने कहा मैं रात एक बजे अस्पताल आऊंगा। मैंने उनसे कहा कि मैं अपनी कार खुद चलाता हूं इस भागदौड़ में कैसे चला पाऊंगा? तो मैं अस्पताल से आपके साथ आपकी गाड़ी में पालम हवाई अड्डे तक विदा करने चलूंगा। उन्होंने कहा ठीक है।
कपूर परिवार की बम्बई यात्रा का ये प्लान तय होते ही कक्ष में हलचल तेज हो गई। तभी ऋषि कपूर ने अपने सचिव को फोन करके सारे काम बताना शुरू किए। जहाज जब बम्बई पहुंचेगा तो इन लोगों को क्या-क्या करना है। कल शव यात्रा के लिए सब सफेद फूल होने चाहिए। उनका एक खास वाक्य मुझे आज भी याद है कि पापा की चिता में आई वांट आल सैंडलवुड (सब चंदन की लकड़ी होनी चाहिए)। 2018 की बात है, ऋषि कपूर एक हास्य फिल्म में लीड रोल में थे। इस फिल्म की शूटिंग दिल्ली में कई हफ्तों से चल रही थी। अचानक ऋषि कपूर की तबीयत खराब हो गई और कुछ ही घंटों में उनका बेटा रणबीर कपूर मुम्बई से उन्हें लेने आ गया। सारी शूटिंग रोक दी गई। पूरी शूटिंग यूनिट मुम्बई लौट गई। फिर तो न्यूयार्क में ऋषि कपूर का कैंसर का लम्बा इलाज चला। इस तरह उनकी यह आखरी फिल्म अधूरी रह गई।
ऋषि कपूर की जिंदगी में बचपन से ही शानो-शौकत और शोहरत किस्मत में लिखी थी। उनके दादा पृथ्वीराज कपूर से लेकर आज तक दर्जनों फिल्मी सितारे इस परिवार ने बॉलीवुड को दिए हैं। पर किस्मत का खेल देखिए जब ऋषि कपूर की मां कृष्णा राजकपूर का मुंबई में देहांत हुआ तो ऋषि कपूर न्यूयार्क में थे और कैंसर के इलाज के कारण अपनी मां के अंतिम दर्शन भी नहीं कर पाए। अब तो उनकी यादें उन दर्जनों मनोरंजक फिल्मों से दुनिया भर के फिल्म प्रेमियों को गुदगुदाती रहेंगी, जैसे उनके पिता राज कपूर की फिल्में आज भी सदाबहार हैं।
अलविदा ऋषि कपूर।
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