वैश्विकी : धमकी संक्रमित अमेरिका

Last Updated 12 Apr 2020 12:24:34 AM IST

कोरोना महामारी ने दुनिया के सभी देशों विशेषकर अपने आप को महाशक्ति मानने वाले देशों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया है।


वैश्विकी : धमकी संक्रमित अमेरिका

यह संकट अपने चरम बिंदु पर नहीं पहुंचा है, और यह कहना मुश्किल है कि स्वास्थ्य के मोच्रे पर इस जंग को जीतने में कितना समय लगेगा। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद का यह सबसे बड़ा संकट माना जा रहा है। यह विडंबना है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जहां दुनिया के विभिन्न देशों ने पुराने पूर्वाग्रहों और रंजिश से ऊपर उठते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ और अन्य विश्व संस्थाओं का निर्माण किया था वहीं कोरोना संकट के बावजूद आज के विश्व नेता अपने संकीर्ण मानसिकता का परित्याग करने के लिए तैयार नहीं हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप विश्व स्वास्थ्य संगठन को निशाना बना रहे हैं। स्वास्थ्य के मोच्रे पर अपनी असफलता को स्वीकार करने और सुधार के उपाय करने की बजाय ट्रंप चीन पर दोष मढ़ने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे सम य जब विश्व स्वास्थ्य संगठन को और मजबूत एवं साधन संपन्न बनाने की आवश्यकता है, ट्रंप इस विश्व संस्था की फंडिंग रोकने की धमकी दे रहे हैं।

आज के परस्पर जुड़े हुए विश्व समुदाय की स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं के बारे में नजर रखने और आवश्यक कार्रवाई करने में इस विश्व संस्था की केंद्रीय भूमिका हो सकती थी। दुर्भाग्य से आज इस संस्था के पास पर्याप्त आर्थिक संसाधन नहीं है। पहले विभिन्न देशों के लिए यह अनिवार्य था कि वेैअपनी आर्थिक स्थिति के अनुपात में इस संस्था को धन मुहैया कराएं। बाद में इस अंशदान को स्वैच्छिक बना दिया। विभिन्न देशों ने धीरे-धीरे अपना अंशदान कम कर दिया। इसके कारण इस संस्था में चिकित्सा विशेषज्ञों, चिकित्सा कर्मियों और कर्मचारियों की संख्या में कमी आती गई। अमीर देशों ने अपना अंशदान कम करके कुछ लाख डॉलर की धनराशि भले ही बचा ली हो, लेकिन कोरोना संकट ने अरबों-खरबों की धनराशि पर पानी फेर दिया। आज विश्व अर्थव्यवस्था जितना आर्थिक नुकसान पहुंचा है उसका एक छोटा सा हिस्सा भी विश्व स्वास्थ्य संगठन को उपलब्ध कराया गया होता तो कोरोना संकट से बेहतर तरीके से निपटा जा सकता था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विगत वर्षो में विभिन्न विश्व मंचों से मानवता के समक्ष उपस्थित साझा खतरों के प्रति विश्व समुदाय को आगाह किया था। उनकी बातों को उपदेश जैसा निर्थक मानते हुए ध्यान नहीं दिया गया। आतंकवाद, वैश्विक महामारी और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं को विश्व समुदाय ने गंभीरता से नहीं लिया। यही कारण है कि इन खतरों का सामना करने के लिए कोई अंतरराष्ट्रीय रणनीति नहीं बन पाई।
भारत में कोरोना संकट का सामना करने के लिए विश्व समुदाय के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का बहुत ईमानदारी से निर्वहन किया है। कोरोना से निपटने के लिए उपयोगी मानी जाने वाली ‘हाइड्रोक्सिल क्लोरोरीन’ जैसी दवा भारत ने दुनिया के विभिन्न देशों को भेजी। इस संबंध में भी अमेरिकी राष्ट्रपति ने धमकी भरा रवैया अपनाया, जबकि ब्राजील, इस्रइल और पड़ोसी देशों के नेताओं ने मोदी की खुलकर प्रशंसा की। ब्राजील के राष्ट्रपति ने तो मोदी की तुलना हनुमान से की जो संजीवनी बूटी लेकर आए थे। भारत ही नहीं कोरोना से अपेक्षाकृत छुटकारा पाने वाला चीन अब अन्य देशों की मदद के लिए आगे आ रहा है। ट्रंप भले ही चीन को कोस रहे हों, लेकिन अमेरिका के महामारी से सबसे प्रभावित राज्य न्यूयार्क को चीन ने हजारों की संख्या में कृत्रिम श्वांस उपकरण (वेंटिलेटर) भेजे हैं। यूरोपीय देशों को भी चीन बड़ी मात्रा में स्वास्थ्य सामग्री भेज रहा है। भारत और चीन का यह रवैया दुनिया के लिए अनुकरणीय है। कोरोना महामारी से यही सबक लिया जा सकता है कि दुनिया में एक ऐसा पुख्ता सांगठनिक ढांचा तैयार किया जाए जो ऐसे खतरों का मुकाबला कर सके।
इसके लिए विश्व मंचों और विश्व संस्थाओं को मजबूत करने की जरूरत है। आगामी महीनों में जब कोरोना पर काबू पा लिया जाएगा तब विश्व अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की बड़ी चुनौती होगी। व्यापार युद्ध अथवा आयात-निर्यात संबंधी प्रतिबंधों को अलविदा कहना होगा। विव्यापी सहयोग के नये युग की शुरुआत मानवता को सुरक्षित रखने की आवश्यक शर्त है। महामारी का यह संदेश विश्व नेता जितनी जल्दी समझकर आत्मसात करेंगे, उतना ही सबके हित में होगा।
 

डॉ. दिलीप चौबे


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment