सामयिक : इस्लाम, कोरोना और राष्ट्र हित

Last Updated 10 Apr 2020 02:22:07 AM IST

दुनिया के सामने धर्म को लेकर बवाल मचा हुआ है। केवल इस्लाम ही नहीं, ईसाई और सिख पंथ भी इसमें शामिल हैं। लेकिन जिस तरीके से इस्लाम के तबकों में कोरोना को लेकर बवाल मचा है, वह अत्यंत ही गंभीर है।


सामयिक : इस्लाम, कोरोना और राष्ट्र हित

इसने राष्ट्र हित और मानवता को संकट में डाल दिया है। तब्लीगी जम्मात ने कोरोना का कारवां मलयेशिया से शुरू करते हुए पाकिस्तान और भारत को पूरी तरह से चपेट में ले लिया है।
दरअसल, धर्म कूपमंडूकता लाखों जीवन के लिए मुसीबत बन गई।  जब वुहान में कोरोना के फैलने की बात सिद्ध हुई तो दुनिया के मुल्लाओं ने यह कहकर इस बात को हल्का कर दिया कि यह चीन के पाप की निशानी है। चीन ने युगुर मुसलमानों के साथ जो ज्यादतियां की हैं, उन्हीं का यह प्रतिफल है। जब कोरोना ने ईरान और मलयेशिया जैसे देशों में दहशत फैलानी शुरू की तो इस्लामिक गुरु ओं ने इस पर यह कहकर प्रश्न चिह्न खड़ा कर दिया कि मस्जिद में लोगों का उपचार होता है न कि बीमारियों का विस्तार। इसलिए बड़े स्तर पर लोगों की भीड़ बनी रही, चबूतरे को चूमने का सिलसिला भी बरकरार रहा। भारत में जब तब्लीगी जमात का खुलासा हुआ तो हड़कंप मच गया। इसके पहले तक तब्लीगी जमात के मुखिया को कोई जानता तक नहीं था, लोगों ने तो तब जाना जब उनके वीडियो और ऑडियो टेप वायरल हुए जिनमें वह कह रहे हैं कि अगर मस्जिद में मृत्यु भी होती है तो इससे अच्छा और कोई स्थान नहीं हो सकता किसी भी मुस्लिम को मरने के लिए।

दर्जनों देशों से इस धार्मिंक सम्मलेन में भाग लेने के लिए लोग भारत आए थे। तकरीबन भारत के हर राज्य से भी शिरकत इसमें हुई थी। इनमें सैकड़ों विदेशी भी थे जो पहले मलयेशिया से होते हुए पाकिस्तान गए थे। फिर भारत आए। उनमें से 700 लोग कोरोना के मरीज थे। इस सम्मलेन ने भारत को पूरी तरह से अपनी चपेट में ले लिया। जब पुलिस द्वारा सख्ती की गई तो धर्म के नाम पर उलटी-सीधी बातें और अफवाह फैलाई जाने लगीं कि यह समुदाय विशेष को अपमानित करने की साजिश है। कई जगहों पर तब्लीगी जमात से निकले लोग वायरस को और फैलाने की कोशिश कर रहे हैं जैसे कि यह बीमारी किसी समुदाय विशेष को ही प्रभवित करेगी। राष्ट्र हित को तिलांजलि दी गई जब तब्लीगी समुदाय का यह मानना है कि इसका प्रयास धर्म का शुद्धिकरण है तो फिर यह नकारात्मक सोच क्यों? यह भी कि पैगम्बर साहब ने महामारी की हालत की व्याख्या कुरान में की है जो आज की क्वारांटाइन व्यवस्था से मिलती-जुलती है। लेकिन जब सऊदी अरबिया मक्का मदीना को अनिश्चित काल के लिए बंद कर सकते हैं, तो भारत में फिर ऐसी सोच क्यों पैदा हो रही है? इंडोनेशिया सहित दर्जनों इस्लामिक देशों ने मस्जिदों में ताला लगा दिया है।
यहां मध्य मार्च में देश-विदेश से आए हजारों लोगों के जरिए देश के तमाम हिस्सों में कोरोना का संक्रमण फैल गया। छब्बीस मार्च को भी मरकज में धार्मिंक कार्यक्रम हुआ जिसमें दो हजार लोगों ने हिस्सा लिया जबकि उस समय पूरे देश में लॉक-डाउन लागू था। मरकज निजामुद्दीन के 24 जमाती कोरोना पॉजिटिव पाए गए। इनमें कुछ की मौत हो चुकी है। तब्लीगी जमात के निजामुद्दीन इलाके में हुए सम्मेलन ने जिस तरह से देश के कई हिस्सों में कोविड-19 कोरोना वायरस को फैलाने का काम किया है, उसी तरह से दूसरे कई देशों में इस जमात के दूसरे सम्मेलनों ने इस महामारी को फैलाया है। पड़ोसी देश पाकिस्तान के लाहौर में दो हफ्ते पहले इस जमात के समारोह में ढाई लाख लोग शामिल हुए थे। ना सिर्फ  पाकिस्तान, बल्कि कुवैत, फिलीपींस, ट्यूनीशिया तक में कोविड-19 महामारी को फैलाया गया है। पाकिस्तान के लाहौर में 11 से 15 मार्च तक तब्लीगी जमात का बहुत बड़ा जलसा हुआ था। इसमें तकरीबन 2.5 लाख लोगों ने हिस्सा लिया था। पाकिस्तान की तरह ही मलयेशिया में भी इस जमात का एक सम्मेलन हुआ था जिसमें 16 हजार लोगों ने हिस्सा लिया था। बाद में मलयेशिया में 620 कोरोना के मरीज ऐसे मिले जिन्होंने इस सम्मेलन में हिस्सा लिया था। इस सम्मेलन में हिस्सा लेने वालों ने ब्रुनेई, थाईलैंड, इंडोनेशिया समेत छह दक्षिणी-पूर्वी देशों में कोरोना वायरस का प्रसार किया है। यही वजह है कि तब्लीगी जमात को अभी समूचे एशिया में कोरोना को फैलाने वाली सबसे बड़ी वजह बताया जाने लगा है।
जब पूरा राष्ट्र एक वैश्विक महामारी के अत्यंत ही कठिन दौर से गुजर रहा है, वैसे हालत में मुस्लिम समुदाय के चंद लोगों की बेवकूफी ने देश को खतरे में डाल दिया है। यहां पर गंभीर प्रश्न यह है कि मुस्लिम समुदाय क्यों देश की समस्या को समझने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं है? उनकी मंशा क्या है? क्या यह महामारी भी राजनीति से प्रेरित है? इन प्रश्नों का हल जानना जरूरी है। तब्लीगी की स्थापना 1927 में मेवात में हुई थी जिसके संस्थापक इलियास कांधलवी थे। इसके वर्तमान मुखिया मौलाना साद उनके पौत्र हैं। ये देवबंदी स्कूल के अनुयायी माने जाते हैं। कहने के लिए यह एक गैर-राजनीतिक संगठन है, जो इस्लामिक प्रचार और धर्म सुधार के प्रयासों से जुड़ा हुआ है, लेकिन इसकी जड़ें इस्लामिक आतंकी संगठनों से जुड़ी हुई हैं। पाकिस्तान के सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ. फरहान जाहिद ने अपने शोध आलेख में इस बात की चर्चा की है कि यह संगठन आतंकी संगठनों की जननी है। इसे गेटवे ऑफ टेरर कहा जा सकता है। पाकिस्तान के तकरीबन सभी आतंकी संगठनों में इसकी शिरकत है। बांग्लादेश में भी यह संगठन सक्रिय है। श्रीलंका में हुए आतंकी हमले भी इस संगठन की मिलीभगत थी।
अमेरकी जांच ब्यूरो ने 2002 में इस बात का खुलासा किया था कि तब्लीगी जमात की गतिविधियां आतंकवाद से जुड़ी हैं। तकरीबन पाकिस्तान के सभी बड़े-छोटे आतंकी संगठन की मिलीभगत जमात से रही है। क्या आज यह जरूरी नहीं है कि भारत के मौलाना खुलकर इस बात का विरोध करें और राष्ट्र हित में समुदाय को कायदे-कानून मानने के लिए समझाएं। भारत की सार्थक कूटनीति ने दक्षिण एशिया के देशों में इस महामारी से लड़ने के लिए सामूहिक जज्बा पैदा किया, दुनिया के सामने नई अलख जगाई। इस मुहिम में किसी समुदाय विशेष का अहित नहीं छिपा हुआ है, बल्कि राष्ट्र हित गुंथा हुआ है। मुस्लिम समुदाय के गुरु ओं को यह बात सामने रखनी होगी, नहीं तो देश के हालात और बिगड़ सकते हैं।

प्रो. सतीश कुमार


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