क्वारंटाइन : धार्मिक स्थलों का हो इस्तेमाल

Last Updated 06 Apr 2020 06:00:15 AM IST

किसी भी मुहिम या किसी भी लड़ाई की सफलता के लिए यह जरूरी होता है कि प्रत्येक धरातल पर उसको समर्थन मिले। समर्थन किस प्रकार का हो, यह उस मुहिम की प्रकृति पर निर्भर करता है।


क्वारंटाइन : धार्मिक स्थलों का हो इस्तेमाल

कोरोना वायरस को मात देने की मुहिम को भी कई तरह के समर्थन की दरकार है। लेकिन, देशभर में अफवाहों का बाजार गर्म होने से इस मुहिम की राह में कई अड़चनें आ रही हैं। अफवाहों का ही नतीजा है कि लोग या तो इस बीमारी को छुपाने की कोशिश कर रहे हैं, या फिर क्वारंटाइन में रखे गए लोग वहां से भागने की कोशिश कर रहे हैं। कई ऐसी खबरें आई हैं, जब जांच के लिए हॉस्पिटल लाए गए संदिग्ध भाग खड़े हुए हैं। 
रांची के रिम्स से 29 संदिग्धों के भाग जाने की खबर आई थी। इसी तरह, इंदौर के एक इलाके में कोरोना की जांच के लिए गए स्वास्थ्यकर्मिंयों पर लोगों ने पत्थर बरसा दिए। ऐसे में सरकार के माथे पर चिंता की लकीरें खिंचनी तय हैं। लेकिन, सवाल यह है कि लोग अपनी ही जान के दुश्मन क्यों बन रहे हैं? दरअसल, सोशल मीडिया और स्थानीय स्तर पर फैली अफवाह की घटनाओं की मुख्य वजहें हैं। सोशल मीडिया पर एक पोस्ट वायरल हो रहा है, जिसमें क्वारंटाइन के नाम पर लोगों के दिल में खौफ पैदा किया जा रहा है।
संदिग्धों को दो हफ्ते अलग-थलग रखे जाने पर जान का खतरा बताया जा रहा है। लिहाजा, वे क्वारंटाइन को इलाज की प्रक्रिया का हिस्सा न समझ कर खुद के किसी हिरासत में चले जाने जैसा समझ रहे हैं। ऐसे में जरूरी है कि सरकार कुछ ऐसी कवायद करे जिससे न सिर्फ  लोगों में भय का माहौल खत्म हो, बल्कि अफवाह फैलाने वालों की भी कमर टूट जाए।
दरअसल, अस्पतालों में जगह की कमी के कारण लोगों को दूसरे सरकारी या निजी भवनों में क्वारंटाइन किया जा रहा है। चूंकि ये कोई अस्पताल नहीं हैं, इसलिए कुछ लोग ऐसे भवनों में रखे जाने को सुरक्षित नहीं समझ रहे हैं। यही कारण है कि वे इन अफवाहों के चंगुल में फंस रहे हैं। ऐसे में किसी अन्य जगह के बरक्स धार्मिंक स्थलों में संदिग्धों को क्वारंटाइन किया जाना एक बेहतर उपाय हो सकता है। इस व्यवस्था के तहत जो संदिग्ध जिस समुदाय से ताल्लुक रखते हों, उनको उसी समुदाय के भवनों, मसलन-मस्जिद, धर्मशाला, गुरु द्वारा आदि में क्वारंटाइन किया जा सकता है।

इसके दो फायदे सीधे तौर पर दिख रहे हैं। पहला, इससे लोगों के मन में व्याप्त भय खत्म होगा। यह व्यवस्था सुनिश्चित करने में कारगर होगी कि उनके साथ कुछ भी गलत नहीं होगा। दूसरा, इस व्यवस्था से क्वारंटाइन से जुड़ी अफवाहों को रोकना आसान हो जाएगा। इसमें धर्म को आधार बना कर अफवाह फैलाने वालों पर भी लगाम लगेगी। इसके और भी फायदे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो, क्वारंटाइन में रखे जाने वाले लोगों में मानसिक बीमारी के बढ़ने का भी खतरा है। अलग-थलग रखे जाने से लोग साइकोलॉजिकल फोबिया या मानसिक भय का शिकार हो सकते हैं। इससे लोगों में डिप्रेशन के लक्षण भी आ सकतेंहैं। ऐसा न हो, इसके लिए जरूरी है कि क्वारंटाइन में रखे गए लोगों का ध्यान बंटा रहे। जाहिर है, जब वे अपने धर्म-स्थलों में रहेंगे तो खाली समय में पूजा-पाठ भी करेंगे। ऐसे में न केवल उनका मन लगा रहेगा, बल्कि उनमें एक प्रकार का विास भी जगेगा। क्वारंटाइन के प्रति भय खत्म होने से एक फायदा यह भी होगा कि वे लोग भी आसानी से सामने आने की हिम्मत करेंगे जो अब तक छुपते रहे हैं।
समझना होगा कि किसी एक समस्या का भी सुलझ जाना कई राहें खोल देता है। संदिग्धों का सामने आना इतना महत्त्वपूर्ण है कि इससे कोरोना के खिलाफ मुहिम की भावी रणनीतियां तैयार की जा सकती हैं। सरकार और एजेंसियों को सही तस्वीर का पता न होना, मुहिम को कमजोर कर देने जैसा है। जब तक सरकारों से मामले छुपाए जाएंगे, न दशा का पता चलेगा और न दिशा ही हम तय कर पाएंगे। मामले छुपाने की प्रवृत्ति खत्म होगी तो कोरोना पीड़ितों का एक डेटाबेस तैयार हो सकेगा। इस खतरनाक वायरस से पीड़ित हो रहे लोगों के उन तरीकों का पता चलेगा जिनसे वे प्रभावित हुए होंगे। फिर, उन पीड़ितों की प्रकृति और दूसरे आयामों का भी पता चलेगा। इन कवायदों का फायदा यह भी है कि पीड़ितों को उनके नजदीक के धार्मिंक स्थलों में क्वारंटाइन करने से सरकारी खर्च में कमी आएगी। इससे कोरोना के खिलाफ सरकार की मुहिम को बल मिलेगा। वक्त की मांग है कि ऐसे समय में सरकारी मुहिम को चारों दिशाओं से मजबूती मिले।

रिजवान अंसारी


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