मीडिया : मोदी का तीसरा वीडियो
कोरोना की महामारी से बचने-बचाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने टीवी के जरिए जनता से तीन बार कुछ जरूरी ‘प्रार्थनाएं’ की हैं और हम सभी जानते हैं कि इन प्रार्थना रूपी आग्रहों और सुझावों को देश की जनता ने किसी अनौपचारिक आदेश की तरह लिया है।
![]() मीडिया : मोदी का तीसरा वीडियो |
पीएम मोदी ने सबसे पहले बाईस मार्च के संबोधन में जनता से घरों में बंद रहकर शाम के पांच बजे एक साथ थाली या ताली बजाने को कहा और लोगों ने वैसा ही किया। विपक्षियों ने इसका मजाक उड़ाया या ‘डिक्टेटरशिप’ का ‘पूर्वाभ्यास’ बताया।
‘जनता-कर्फ्यू’ की सफलता के बाद मोदी ने फिर टीवी के जरिए जनता से लगातार इक्कीस दिन तक ‘लॉक-डाउन’ रखने की प्रार्थना की। लोग ‘लॉक-डाउन’ में रहने लगे। लोगों ने समझा कि अपने जैसे बड़ी जनसंख्या वाले देश में कोरोना जैसी महामारी को लिमिट में रखना है तो ‘लॉक-डाउन’, ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ और ‘आइसोलेशन’ जरूरी है। चौबीस मार्च की आधी रात से देशभर में ‘लॉक-डाउन’ हो गया। बाजार बंद, फैक्टरी बंद, आवागमन बंद यानी हर चीज बंद। बंद से हुए लाखों बेरोजगार अपने घरों को पैदल चल पड़े। उनकी कष्टों की कहानियां भी मीडिया ने बताई। लेकिन ‘लॉक-डाउन’ का अर्थ सिर्फ ‘लॉक-डाउन’ नहीं है। वह मन का भी ‘लॉक-डाउन’ है। हमारे ‘उपभोग’ और ‘इच्छाओं’ का भी ‘लॉक-डाउन’ है। यह ‘डबल लॉक-डाउन’ है।
बाहर कोरोना का डर और मजबूर होकर घर के अंदर लगातार बंद रहने के कारण बढ़ती निष्क्रियता, घुटन, अकेलापन, तनाव, डिप्रेसन और रोजमर्रा की चीजों के उपलब्ध होने-न-होने के डर और बाहर के संक्रमण से लगातार बचने के लिए बरती सावधानियों के बावजूद चिंता में रहना कि कही थोड़ी-सी चूक के कारण हम संक्रमण की चपेट में तो नहीं आ जाएं? लोगों में चिढ़चिढ़ापन और कलह बढ़ी है-मीडिया रिपार्टे बताती हैं। इसी वजह से खबर चैनल लोगों को मनोचित्सिकों व बाबाओं से सलाह-मशविरे दिलाते रहते हैं कि प्राणायाम करें, ध्यान करें, रुचिकर बातें करें, संयम से काम लें, धैर्य धारण करें और आशावादी, आस्थावादी व भविष्यवादी बने रहें। मोदी ने भी तो कहा था : ‘संयम’और ‘संकल्प’।
चार मार्च शनिवार ‘लॉक-डाउन’ का दसवां दिन होगा। उसे अभी ग्यारह दिन तक और बने रहना है। उसके बाद क्या होगा? क्या ‘लॉक-डाउन’ की अवधि बढ़ेगी या वह चौदह अप्रैल को खत्म हो जाएगा? ये सवाल मामूली सवाल नहीं हैं। कोरोना की महामारी के कारण भयग्रस्त हुए जीवन के अपने सवाल हैं। और जिन दिनों विदेशी मीडिया में सक्रिय निहित स्वार्थ व सोशल मीडिया के ‘निराशावादी’ आम जनता में निराशा-हताशा फैलाकर अराजकता फैलाने के चक्कर में हों, जहां ‘तबलीगी जमात’ जैसे कट्टर इस्लामी समूह देश भर में कोरोना का संक्रमण फैलाने वाली हरकतें करके कोरोना के संक्रमण को ‘कम्युनिटी संक्रमण’ में बदलने पर तुले हों और उनके पक्षधर उनको समझाने की जगह उनको ही ‘विक्टिम’ बताकर कोरोना के इन ‘सुपर स्प्रेडरों’ के हौसले बढ़ाते हों, उन दिनों जरा-सी भी गैर-जिम्मेदारी वाली हरकत सारे देश को निराशा में झोंक सकती है।
इसीलिए जरूरी है जनता के मन में आशा और आस्था का संचार। तीन अप्रैल की शाम को खबर चैनलों में प्रसारित मोदी का तीसरा वीडियो यही करता है। वे अपनी बातचीत के जरिए जनता की आत्मशक्ति व इच्छाशक्ति को जगाकर उसका मनोबल बढ़ाए रखना चाहते हैं। इसी उद्देश्य से उन्होंने पांच अप्रैल यानी रविवार की रात नौ बजे घर की बिजली बंद कर,अपने दरवाजे या खिड़की पर खड़े होकर नौ मिनट तक दीया या मोमबत्ती या मोबाइल की फ्लैश लाइट जलाने को कहा है और इस तरह ‘अंधेरे से उजाले की ओेर’ आने को कहा है। ‘छांदोग्योपनिषद’ का मंत्र वाक्य कि ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ भी ऐसा ही कहता है। इक्कीस दिन के ‘लॉक-डाउन’ से परेशान जनता को निराश-हताश करके भड़काना आसान है लेकिन उसमें आशा, आस्था और आत्मविश्वास का संचार करना कठिन है। लेकिन यही तो जरूरी है। एक ही समय दीया-मोमबत्ती का जलाना ऐसा ही एक सरल-सा प्रतीकात्मक सांस्कृतिक कर्म है, जो लोगों में एकजुटता के भाव को बढ़ाने वाला है। यों हम सब जानते हैं कि दीया-मोमबत्ती से कोरोना भागने वाला नहीं है लेकिन भारत की एक सौ तीस करोड़ ‘जनता-जर्नादन’ की सामूहिक शक्ति, रूपकालंकार की भाषा में, किसी ‘ईश्वरीय शक्ति’ से कम नहीं। इसी से मन का डर दूर होता है। यही मोदी ने किया है।
इसीलिए विपक्ष से निवेदन है कि पहले कोरोना से लड़ लो! मोदी से बाद में लड़ लेना!!
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