महाराष्ट्र : शिवसेना को ’धोखा‘ देना माना

Last Updated 03 Apr 2020 12:40:16 AM IST

भाजपा ने 2014 के लोक सभा चुनाव में कांग्रेसमुक्त भारत का सपना देखा था। लोक सभा चुनाव में तो वह पूरा हो गया। मगर विधानसभा चुनाव में मुंगेरीलाल का हसीन सपना साबित हुआ।


महाराष्ट्र : शिवसेना को ’धोखा‘ देना माना

कई राज्यों में तो उल्टी गंगा बही। जहां वर्षो से भाजपा की सरकार थी वहां भाजपा हार गई और कांग्रेस की सरकार बनी।

इन राज्यों में छत्तीसगढ, मध्य प्रदेश और राजस्थान प्रमुख थे। मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस की जीत चुनावी संयोग ज्यादा थी। इसलिए भाजपा की केंद्र में दोबारा जीत के बाद माना जा रहा था कि भाजपा कांग्रेस की फूट का लाभ उठा कर या दलबदल करके इन राज्यों में फिर सरकार बनाने की कोशिश करेगी। मध्य प्रदेश में कांग्रेस की गुटबाजी ने मौका दे भी दिया। मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार को गिराने में बीजेपी ने नरेंद्र सिंह तोमर, नरोत्तम मिश्रा, विश्वास सारंग, संजय पाठक, अरविंद भदौरिया और सबसे बड़ी भूमिका निभाने वाले जफर इस्लाम को लगाया था। जफर के बारे में बताया जा रहा है कि उन्होंने ज्योतिरादित्य सिंधिया को बीजेपी में लाने में बड़ी भूमिका निभाई थी। मगर भाजपा सबसे ज्यादा दुखी है महाराष्ट्र में जीती बाजी हार जाने से। महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना के दो दशक पुराने केसरिया गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिला था, मगर मुख्यमंत्री पद को लेकर दोनों का गठबंधन टूट गया।

शिवसेना ने केसरिया गठधबंधन को अलविदा कहकर  कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के सेक्युलर गठबंधन के साथ सरकार बना ली। उससे उद्धव ठाकरे की मुख्यमंत्री बनने की इच्छा पूरी हो गई। मगर चुनाव में बुरी तरह हारी कांग्रेस और राकांपा की फिर वापसी हो गई। भाजपा के लिए महाराष्ट्र इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि मुंबई देश की आर्थिक राजधानी है। इसके अलावा, उत्तर प्रदेश के बाद सबसे ज्यादा लोक सभा सदस्य महाराष्ट्र से ही आते हैं। पहले भाजपा को लगता था कि राज्य की नई सरकार लंबे समय तक नहीं चल पाएगी। जल्दी ही वैचारिक अंतर्विरोधों की शिकार हो जाएगी। मगर ऐसा नहीं हुआ।

महाराष्ट्र में चार महीने से सरकार चल रही है। तब भाजपा को लगा कि सत्ता के मोह में उसने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली। हाल ही में भाजपा नेता एवं विधायक सुधीर मुगंतिवार ने एक चौंकाने वाला बयान दिया है कि उनकी पार्टी ने एक समय की अपनी सहयोगी पार्टी रही शिवसेना को ‘धोखा’ दिया है। साथ ही कहा कि यह ‘गलती’ थी जिसे एक दिन ठीक कर लिया जाएगा। महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री ने यह बात महाराष्ट्र विधानसभा में बजट पर भाषण में कही। मुगंतिवार ने भाजपा और शिवसेना के पुराने संबंधों को रेखांकित करते हुए सत्ता पक्ष की सीटों की तरफ देखते हुए कहा,‘मुख्यमंत्री तीन महीनों से आपके मित्र हैं, लेकिन हमारे संबंध 30 साल पुराने हैं’, जिस पर सत्ता पक्ष से कुछ सदस्यों ने कहा,‘फिर भी आपने उन्हें धोखा दिया’।

इस पर मुगंतिवार ने कहा, ‘हां, हमने शिवसेना को धोखा दिया लेकिन आप हमारी गलती का फायदा उठाने की कोशिश नहीं करें। एक दिन हम इसे सुधार लेंगे’। भाजपा नेता ने कांग्रेस और राकांपा के विधायकों से कहा कि मध्य प्रदेश की तरह महाराष्ट्र में भी एक ज्योतिरादित्य सिंधिया होंगे। मुगंतिवार के भाषण के वक्त विपक्ष के नेता देवेन्द्र फडणवीस सदन में मौजूद नहीं थे। वे हमेशा कहते रहे हैं कि शिवसेना को मुख्यमंत्री पद देने का वादा नहीं किया गया था। मनगुंटीवार का बयान संकेत करता है कि भाजपा में शिवसेना को लेकर मंथन चल रहा है। नई नीति बन रही है।

मगर भाजपा की राह आसान नहीं है। औपचारिक रूप से इस सरकार के नेता भले ही शिवसेना नेता उद्धव हों मगर उसके असली संरक्षक महाराष्ट्र की राजनीति के चाणक्य शरद पवार हैं। वे शिवसेना और कांग्रेस जैसे विरोधियों को साधने में सफल रहे हैं। कांग्रेस के नेताओं की तरह जीती हुई बाजी अपने हाथ से निकलने नहीं देंगे। जिस तरह  ठाकरे सरकार ने चार माह पूरे किए हैं, उससे भाजपा की उम्मीदों पर पानी फिर गया है। भाजपा को उम्मीद थी कि शिवसेना के विधायकों का एक वर्ग बगावत कर सकता है। मगर सत्ता पाकर शिवसैनिक खुश हैं। शिवसेना भी अपने किए पर पछता रही हो ऐसा नजर नहीं आता। दूसरी तरफ कांग्रेस ने भी स्वीकार कर लिया है कि वह भाजपा को सत्ता से दूर रखना चाहती है तो उसे भी कुछ बलिदान करना पड़ेगा। सत्ता की कीमत चुकानी पड़ती है।

इसका सबसे बड़ा उदाहरण है उद्धव की अयोध्या यात्रा। सरकार के सौ दिन पूरे होने पर उद्धव शिवसेना के मंत्रियों के साथ अयोध्या गए। उनके साथ कांग्रेस के मंत्री सुनील केदार भी गए थे। उन्होंने कहा कि वे आस्था के कारण अयोध्या जा रहे हैं। इसी तरह गठबंधन में विवाद का मुद्दा था मुस्लिम आरक्षण। उसे उद्धव की अपील पर फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। सीएए के मुद्दे पर शिवसेना गोलमोल रुख अपना रही है। उसे भी समझ आ रहा है कि मुख्यमंत्री पद पाने के लिए कुछ समझौते करने ही पड़ेंगे। इसलिए शिवसेना के पास अलग होने का कोई मुद्दा नहीं है। दूसरी तरफ भाजपा को अपने कई मुद्दे सुलझाने हैं। सबसे बड़ा मुद्दा है कि राज्य में  कौन होगा उसका नेता। फडणवीस को केंद्र सरकार में भेजने और उनकी जगह मराठा जाति के चंद्रकांत पाटिल को नेता बनाने की बात उठती रही है। मगर फडणवीस केंद्र में जाने को राजी नहीं हैं। भाजपा को यह पेंच सुलझाना पड़ेगा। फडणवीस ब्राह्मण समुदाय से हैं, जो राज्य में केवल तीन प्रतिशत है। दूसरी तरफ, कांग्रेस और राकांपा का मुख्य जनाधार मराठा हैं, जो 35 प्रतिशत हैं। भाजपा भी मराठा समुदाय को साथ लेना चाहती है।

शिवसेना-राकांपा-कांग्रेस गठबंधन में सब कुछ ठीक चल रहा है, मगर शिवसेना  के सामने समस्या तब खड़ी होगी जब विधानसभा या लोक सभा चुनाव आएगा। तब गठबंधन में सीटें तीन दलों के बीच बंटेंगी जबकि केसरिया गठबंधन में दो दलों के बीच सीटें बंटती थीं। तब शिवसेना के हिस्से केसरिया गठबंधन की तुलना में काफी कम सीटें आएंगी। शिवसेना का स्ट्राइकिंग रेट कम होने के कारण वह कम सीटें ही जीत पाएगी। तब उसकी मुख्यमंत्री पद की दावेदारी और भी कम हो जाएगी। लोक सभा चुनाव में भी कम सीटें लड़ पाएगी। जीत तो और भी कम पाएगी। दूसरी तरफ, भाजपा मृत पड़ी मनसे को जिंदा करके फिर शिवसेना के समानांतर खड़ा करने की कोशिश कर सकती है, जो भविष्य में शिवसेना को भारी पड़ेगी। अभी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी या महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के सामने सबसे बड़ी चुनौती है कोरोना से निपटना। देश में सबसे ज्यादा कोरोना के मरीज महाराष्ट्र में ही हैं। इसलिए मोदी हों या ठाकरे, दोनों का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि वे कोरोना का मुकाबला कैसे करते हैं।

सतीश पेडणेकर


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