मुद्दा : निर्माण मजदूरों की सुनवाई जरूरी

Last Updated 26 Feb 2020 05:40:43 AM IST

रोजगार सृजन की दृष्टि से भारत में निर्माण उद्योग का विशेष महत्त्व रहा है।


मुद्दा : निर्माण मजदूरों की सुनवाई जरूरी

हमें बताया गया है  कि कृषि के बाद सबसे अधिक रोजगार हमारे देश में निर्माण क्षेत्र में है। यह हमें देखने को भी मिलता है। कृषि संकट की स्थिति में बहुत से किसानों और खेत-मजदूरों को भी निर्माण क्षेत्र में ही अतिरिक्त मजदूरी मिलती है। जाहिर है कि निर्माण मजदूरों का अर्थव्यवस्था में बेहद महत्त्वपूर्ण स्थान है। उनके इसी महत्त्व को देखते हुए निर्माण श्रमिकों की भलाई के लिए दो कानून वर्ष 1996 में बनाए गए थे। इन कानूनों के अनुसार निर्माण कार्यों पर उपकर या सेस लगाया गया और निर्माण मजदूरों के लिए हर राज्य में बोर्ड बनाया गया जिसने इस उपकर से प्राप्त धनराशि का उपयोग निर्माण मजदूरों की भलाई के अनेक कार्यों के लिए किया।

इस तरह जून, 2018 तक 37483 करोड़ रुपये निर्माण मजदूरों की मलाई के लिए एकत्र हुए जिस पर बहुत सा ब्याज भी एकत्र हुआ। इसके तहत 2.87 करोड़ मजदूरों का पंजीकरण हुआ। एक करोड़ से अधिक मजदूरों को पेंशन, बच्चों की शिक्षा, मातृत्व लाभ, दुर्घटना सहायता आदि के लिए 9492 करोड़ रुपये दिए गए। अभी एकत्रित राशि और उसके ब्याज के एक बड़े भाग का उपयोग होना है। वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने इन दोनों कानूनों के बेहतर क्रियान्वयन के लिए निर्देश दिए थे। उसके  बाद उम्मीद बनी थी कि निर्माण मजदूरों की स्थिति बेहतर हो सकेगी। लेकिन सारे किए-धरे पर नये लेबर कोड ने पानी फेर दिया। रही-सही कसर कुछ अन्य कारणों के चलते पैदा हुई अनिश्चय की स्थिति ने पूरी कर दी। विशेषकर दिल्ली में बहुत से मजदूरों की पेंशन, बच्चों की छात्रवृत्ति आदि लाभ रुक गए हैं।

दिल्ली की एक मजदूर बस्ती (बवाना जे जे कालोनी, पार्ट 1 और 2) में पूछने पर पता चला कि केवल एक बस्ती में 100 से अधिक बुजुर्ग निर्माण मजदूरों की पेंशन पांच महीनों से रुकी पड़ी है और 22 मजदूरों की पेंशन 15 महीनों से नहीं मिली है। भ्रष्टाचार के कारण मजदूर हकदारी में अधिक मेहनत और ईमानदारी से लगे मजदूर संगठनों के सात ही अधिक अन्याय हो रहा है। पहले भ्रष्टाचार के कारण ही उन्हें वंचित किया गया। फिर शिकायत करने पर कहा गया कि अभी तो भ्रष्टाचार की जांच चल रही है। अत: कोई लाभ देने पर रोक जारी है। इस तरह के बहानों से मजदूरों की भलाई के लिए एकत्र पैसे को उन तक पहुंचने से रोका जा रहा है जो कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन है।
निर्माण मजदूरों की राष्ट्रीय अभियान समिति ने 12 फरवरी को जारी किए गए एक बयान में कहा है कि 30 अक्टूबर, 2018 को केंद्रीय श्रम सचिव ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को सुप्रीम कोर्ट के आदेशों पर आधारित कार्य याोजना और आदर्श कल्याण योजना भेजते हुए इसे गम्भीरता से लागू करने के लिए लिखा था। लेकिन 16 नवम्बर, 2018 को ही केंद्र सरकार ने सामाजिक सुरक्षा पर लेबर कोड का तीसरा स्वरूप घोषित कर दिया जिसमें 1996 के निर्माण मजदूरों के कानूनों का भविष्य अनिश्चित करने की तैयारी भी शामिल है। जब केंद्र सरकार निर्माण मजदूरों के कानून को उसके मूल रूप में समाप्त करने की बात भी करेगी तब निर्माण मजदूरों के कानून को ठीक से लागू करने को राज्य सरकारें कैसे गम्भीरता से ले सकती है? इस स्थिति में निर्माण मजदूरों के राष्ट्रीय कानून के क्रियान्वयन की राष्ट्रीय अभियान समिति ने कहा है कि जिन मजदूरों की पेंशन और अन्य लाभ रोके गए हैं, उन्हें तुरंत जारी किया जाए और उनकी बकाया राशि भी तत्काल दी जानी चाहिए। 
ऐसे अनेक मजदूरों के लिए पेंशन रुक जाने के कारण भूख, तनाव और दवाभाव के कारण मौत की संभावना भी उपस्थित हो गई है। अत: इस संदर्भ में बहुत शीघ्र ही असरदार कार्यवाही करके मजदूरों को जल्द से जल्द न्याय दिया जाना चाहिए। इसके साथ ही ऐसे जरूरी कदम भी उठाने चाहिए जिनसे निर्माण मजदूरों की भलाई के लिए जो कानून 1996 से चले आ रहे हैं, वे बने रहें तथा सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशानुसार इन कानूनों के बेहतर क्रियान्वयन के लिए सभी जरूरी कदम भी शीघ्र से शीघ्र उठाने चाहिए। यदि ऐसा होगा तो लगभग 30,000 करोड़ रुपये का लाभ शीघ्र ही देशभर के निर्माण मजदूरों को निकट भविष्य में मिल सकेगा। यह वह धनराशि है,  जो पहले ही एकत्र हो चुकी है। यह न्याय की मांग है कि मजदूरों की भलाई के लिए एकत्र धन उन तक पंहुचे और इसका कोई अन्यत्र उपयोग या दुरुपयोग न हो।

भारत डोगरा


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