नमस्ते ट्रंप कार्यक्रम : संबंधों को भावनात्मक आधार
निस्संदेह, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के जीवन का यह अभूतपूर्व दिन होगा। इसके पूर्व किसी भी राष्ट्राध्यक्ष के विदेशी दौरों में इतना बड़ा जनसमूह कभी नहीं उमड़ा।
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ना ही एक साथ इतने रंगारंग कार्यक्रम कभी देखे-सुने गए। निश्चय ही ट्रंप इससे अभिभूत हुए होंगे। जितनी बार उन्होंने अहमदाबाद हवाई अड्डे पर उतरने से लेकर मोटेरा स्टेडियम में अपना भाषण आरंभ करने, भाषण के पश्चात और वहां से प्रस्थान तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को गले लगाया वह इस बात का सबूत था कि कार्यक्रम उनकी अपेक्षाओं से कहीं ज्यादा बेहतर रहा।
जब अमेरिकी राष्ट्रपति अपना भाषण दे रहे थे तो उन्हें पता था कि केवल भारत के लोगों को ही संबोधित नहीं कर रहे। उनका देश अमेरिका, पड़ोसी देश पाकिस्तान और चीन तथा साथ ही दुनिया के अनेक प्रमुख देशों के लोग और राजनेता उन्हें सुन रहे हैं। इसलिए उनके भाषण का मुख्य फोकस भारत और अमेरिका पर तो था, लेकिन उसका आयाम विस्तृत था। जैसा मोदी की कूटनीति है, वह किसी अवसर को प्रभावी और यादगार इवेंट में परिणत कर उसका अधिकतम उपयोग करते हैं। पिछले वर्ष 22 सितम्बर को ह्युस्टन में हाउडी मोदी कार्यक्रम में 50 हजार से ज्यादा उत्साही समूह को एकत्रित कर उनके रणनीतिकारों ने अमेरिकी नेताओं और मीडिया को चौंकाया था तो अहमदाबाद में दुनिया के सबसे बड़े क्रिकेट स्टेडियम में निश्चय ही ट्रंप का जन स्वागत एवं भाषण करा कर अमेरिकियों को अपनी विशिष्ट कूटनीति का आभास कराया है। सामान्यतया माना जाता है कि ऐसे कार्यक्रमों में नेता जो कुछ बोलते हैं, उसका मुख्य उद्देश्य एक दूसरे को प्रसन्न करना तथा परस्पर देशों की जनता को आकर्षित करना होता है।
ट्रंप ने जो कहा उसमें बहुत कुछ ऐसा है, जिससे भारत-अमेरिकी द्विपक्षीय संबंधों के साथ विश्व पटल पर दोनों की भूमिका के बारे में स्पष्ट आकलन किया जा सकता है। ट्रंप के भाषण से साफ है कि अमेरिका की दूरगामी नीति में भारत की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। अंतरराष्ट्रीय सामरिक-आर्थिक नीति निर्धारित करते समय अमेरिका भारत का विचार अवश्य करता है। इसमें भारत की दुनिया की दूसरी बड़ी आबादी, लोकतंत्र, आर्थिक, वैज्ञानिक एवं रक्षा क्षेत्र में उन्नति, स्वयं अमेरिका में भारतीय मूल के 40 लाख निवासियों की गतिविधियां तथा भारत के राजनीतिक नेतृत्व की भूमिका का योगदान है। ट्रंप ने स्वीकार भी किया कि भारत जिस गति से आर्थिक-वैज्ञानिक क्षेत्र में प्रगति कर रहा है, अंतरिक्ष विज्ञान एवं सूचना तकनीक के क्षेत्र में उसने जैसी छलांग लगाई है, वो अभूतपूर्व है। भारत केवल अपनी किताबों में लिखी गई बातों के कारण नहीं, बल्कि अपने व्यवहार के कारण भी दुनिया में सम्मान पाता है। भारत विविधतापूर्ण संस्कृति तथा विभिन्न धर्मो को समायोजित करने वाला देश है जो दुनिया के लिए उदाहरण है। जाहिर है, भारत के लोग उनसे ये सब बातें सुनना चाहते थे। इसके साथ भारतीयों और दुनिया का ध्यान इस पर भी था कि सीमा पार आतंकवाद एवं पाकिस्तान के बारे में वे क्या बोलते हैं।
इस संदर्भ में उन्होंने कहा कि आतंकवाद के मामले में भारत और अमेरिका साथ हैं। लेकिन उनका कहना कि पाकिस्तान के साथ हम सकारात्मक तरीके से काम कर रहे हैं ताकि वह आतंकवाद के विरु द्ध कार्रवाई करे, भारत के लोगों को अच्छा नहीं लगा होगा। उन्होंने यह भी कह दिया कि पाकिस्तान के साथ हमारे बहुत अच्छे संबंध हैं। इसका अर्थ क्या है? ट्रंप भारत आए और भारत से ही अमेरिका लौट रहे हैं, जिससे पाकिस्तान खुश नहीं होगा। तो क्या उसको खुश करने के लिए उन्होंने ऐसा कहा? इस समय अमेरिका तालिबान से पाकिस्तान के माध्यम से बातचीत कर एक समझौते पर पहुंचने वाला है। इससे शायद पाकिस्तान को खुश करने वाली कुछ पंक्तियां बोलना उन्हें आवश्यक लगा हो। भारत के जो लोग उनसे सीमा पार आतंकवाद के संदर्भ में थोड़ा कड़े वक्तव्य की उम्मीद कर रहे थे उन्हें निराशा अवश्य हुई है। लेकिन हमें नहीं भूलना चाहिए कि चाहे मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने का मामला हो या हाफिज सईद के खिलाफ कार्रवाई का.. अमेरिका ने भारत का पूरा साथ दिया।
पुलवामा हमले के बाद जब भारत ने सीमा पार करके हवाई बमबारी की थी, तो उसका भी अमेरिका ने यह कहते हुए समर्थन किया था कि आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष में भारत का यह अधिकार बनता है, तो इन पंक्तियों से हमें चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने कश्मीर पर एक शब्द नहीं बोला। वैसे भी अमेरिका पाकिस्तान के साथ इस मामले में खड़ा होगा, ऐसा कोई संकेत न उन्होंने पहले दिया है, न मोटेरा स्टेडियम से दिया। नमस्ते ट्रंप कार्यक्रम के पीछे भारत का मुख्य उद्देश्य उनके एवं अमेरिकी रणनीतिकारों के मनोमस्तिष्क पर ऐसी छाप छोड़ना था, जिसे वे कभी भूल ना सकें। साथ ही, अमेरिकी जनता को भी संदेश जाए कि भारत उनका केवल औपचारिक साथी नहीं है, बल्कि उसके मन में अमेरिकी नेतृत्व और अमेरिका के प्रति व्यापक सम्मान है, अपनत्व का भाव है। वास्तव में कूटनीति में ऐसे कार्यक्रमों के महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता। भारतीय संस्कृति की विविधता और प्राचीन कला-कौशल के विरासत की झांकियां अहमदाबाद में दिखीं। उनका लाइव प्रसारण हुआ। यह मानने में कोई समस्या नहीं है कि नमस्ते ट्रंप कार्यक्रम से भारत ने अपनी सांस्कृतिक समृद्धि को प्रभावी ढंग से दुनिया के सामने फिर से प्रस्तुत किया है।
यह मानने में कोई हर्ज नहीं है कि अमेरिका के लिए यह चुनावी वर्ष है। ट्रंप ने चुनाव को ध्यान में रखते हुए भी अपने संबोधन में बहुत सारी बातें कही हैं। वापस लौटने पर भी वे इनका राजनीतिक उपयोग करेंगे। लेकिन इसमें हमारे लिए कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। किसी अमेरिकी राष्ट्रपति का किसी देश के स्टेडियम में बैठकर कभी करीब सवा लाख लोगों और रास्ते में इससे भी ज्यादा लोगों ने न स्वागत किया, ना उनका भाषण सुना था। इसका वे अपने अनुसार उपयोग कर सकते हैं। हमारे लिए इसका महत्त्व इस मायने में है कि अमेरिकी नीति-निर्माताओं पर इसका मनोवैज्ञानिक असर होगा। जो भी गतिरोध और बाधाएं मुक्त व्यापार समझौता को लेकर हैं, उनमें कभी तनावपूर्ण अवस्था पैदा नहीं होगी। इस तरह नमस्ते ट्रंप कार्यक्रम वास्तव में बेहतरीन माहौल तैयार करने की सफल आधार भूमि कही जा सकती है। लंबे समय तक इस कार्यक्रम की अनुगूंज भारत-अमेरिकी संबंधों में सुनाई देती रहेगी।
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