टिड्डी हमला : पर्यावरणीय हालात बड़ा कारण

Last Updated 25 Feb 2020 04:41:03 AM IST

हाल के दिनों में किसानों को न केवल मौसम की मार ने चोट पहुंचाई है वरन एक और बला ने उन्हें परेशान कर रखा है।


टिड्डी हमला : पर्यावरणीय हालात बड़ा कारण

यह है टिड्डी दल, जिसका एक ही लक्ष्य होता है, रास्ते में कहीं भी हरियाली दिखे तो उसे चट कर जाओ। और टिड्डी दल ऐसा ही कर रहे हैं। पिछले वर्ष टिड्डियों ने गुजरात और राजस्थान की 3,92,093 हेक्टेयर जमीन की हरियाली को चट कर दिया। पाकिस्तान के भी कई इलाकों पर इनने हमला किया और खड़ी फसल बर्बाद कर दी। चिंता करने वाली बात यह है कि टिड्डी से बचने का कोई कारगर तरीका किसान और सरकार के पास नहीं दिखता। लाजिम है कि टिड्डियों से निपटने को व्यापक रणनीति हो वरना खाद्यान्न संकट और गहरा सकता है।
उपज पर हमला तो सोचनीय मसला है ही, मगर उससे भी संजीदा बात यह है कि ट्ििड्डयों के ताजा हमले और उनकी आक्रामकता को जलवायु परिवर्तन से जोड़ कर देखा जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की हाल में जारी रिपोर्ट में मौसम की चरम और असामान्य गतिविधियों को टिड्डियों के पनपने की वजह बताया गया है। रिपोर्ट में मौसम की चरम गतिविधियों के लिए हिंद महासागर क्षेत्र में चक्रवात की असामान्य गतिविधियां भी प्रमुख वजह मानी जा रही हैं। रिपोर्ट में मौसम विज्ञानियों के हवाले से आगाह किया गया है कि अगर कार्बन उत्सर्जन में वैिक स्तर पर कमी नहीं आई तो भविष्य में इस तरह के खतरे बढ़ेंगे। वैज्ञानिकों का मानना है कि टिड्डियों का पनपना पूरी तरह से प्रकृति से जुड़ी घटना है। रोचक पहलू यह है कि इनकी संख्या और प्रकोप का क्षेत्र, मौसम और पर्यावरणीय परिस्थितियों पर निर्भर करता है। अफ्रीकी देशों, खाड़ी देशों में बारिश की वजह से टिड्यिों की संख्या बढ़ी है। थार रेगिस्तान में जलवायु परिवर्तन की वजह से टिड्डियों का प्रजनन तेजी से हो रहा है।

जलवायु परिवर्तन की वजह से बेमौसम बारिश हो रही है, जिससे टिड्डियों की संख्या काफी बढ़ गई है। खास बात यह है कि इस बार टिड्डी हवा के विपरीत दिशा में उड़ते देखी गई हैं। दरअसल, जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर खेती और किसान पर पड़ रहा है। ग्रीन हाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन ने जहां पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाया है वहीं खेती और किसान के सामने चुनौतियां खड़ी हो गई हैं। जलवायु परिवर्तन से जीव-जंतुओं का व्यवहार बदल रहा है। पश्चिमी राजस्थान में सर्दियों में भी टिड्डियों के प्रकोप को जलवायु परिवर्तन का ही कारण माना जा रहा है। जलवायु परिवर्तन के चलते टिड्डियों का व्यवहार बदल रहा है। आम तौर पर अक्टूबर-नवम्बर के बाद टिड्डी नहीं आती थीं, लेकिन अब कड़ाके की ठंड में भी टिड्डी आ रही हैं। यह वाकई हर किसी के लिए भी चिंता का सबब है। हाल में रोम में आयोजित इंटरनेशनल फंड फॉर एग्रीकल्चरल डवलपमेंट की गवर्निग काउंसिल की 43वीं  बैठक में कृषि क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को संदíभत किया गया। रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण 2030 तक लगभग 100 मिलियन लोग गरीबी से प्रभावित हो सकते हैं, जिनमें से लगभग आधे लोग कृषि क्षेत्र से संबंधित होंगे। साफ तौर पर मसले के केंद्र में जलवायु परिवर्तन है। लिहाजा, पर्यावरण को लेकर हमारी प्रतिबद्धता दृढ़ता के साथ सामने आनी चाहिए क्योंकि यह टिड्डियों का ही जोखिम नहीं है, बल्कि जलवायु का भी जोखिम है। पर्यावरण को समुचित सम्मान देने की हमारी जो परंपरा कहीं गुम हो गई है, उसे वापस लाने की जरूरत है।
हाल के महीनों में करीब सभी मुल्कों ने पर्यावरण से खिलवाड़ का नतीजा देखा और भोगा है। सो, ज्यादा सजग और समझदारी से हमें प्रकृति से सामंजस्य बिठाने की आदत बनानी होगी। आधुनिक बनने के चक्कर में अगर हम खुद ही विनाश के जाल बुनेंगे तो आने वाली पीढ़ी हमें कभी माफ नहीं करेगी। तात्कालिक तौर पर सरकार को भी जागरूक रहने की दरकार है। जब भी टिड्डी दल के हमले की खबर आए तो सरकार को तुरंत इसका सर्वे कर क्षति का आकलन और टिड्डी के प्रकार पर शोध करना चाहिए। किसानों के मन में डर न फैले, इसको लेकर भी जागरूक रहने की जरूरत है क्योंकि जब टिड्डी दल का हमला होता है तब फसल बर्बाद होने की वजह से गांव के गांव खाली हो जाते हैं। साथ ही, टिड्डियों पर नियंत्रण के लिए सरकार को रासायनिक दवाई, भारी मात्रा में पानी, जरूरी दवाएं और छिड़काव का इंतजाम रखना होगा। साथ ही, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के साथ समन्वय का काम भी करना होगा। कृषि क्षेत्र में व्याप्त संकट का सामना करने के लिए ग्रामीण विकास में अधिक निवेश भी संकट से उबरने में हमारा मददगार हो सकता है।

राजीव मंडल


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