मुद्दा : मौत की सवारी हैं डग्गामार बसें

Last Updated 24 Feb 2020 04:42:39 AM IST

ऊपरी तौर पर कई हादसे किसी मानवीय भूल या फिर किसी क्षणिक घटना का नतीजा लगते हैं।


मुद्दा : मौत की सवारी हैं डग्गामार बसें

लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस पर बीते रविवार (16 फरवरी, 2020) को बिहार जा रही तेज रफ्तार बिहार राज्य सड़क परिहवन निगम की वॉल्वो बस आगरा से दिल्ली जा रही एक एसयूवी (फॉच्यरूनर) से जा भिड़ी। इससे छह कार सवारों की मौत हो गई। बताया गया कि बस के चालक को झपकी आ गई थी, जिस कारण बस डिवाइडर को तोड़ते हुए एसयूवी से जोरदार ढंग से जा टकराई थी।
इससे दो दिन पहले दिल्ली से बिहार के मोतिहारी जा रही यूपी के फिरोजाबाद में जिस डग्गामार बस से हुई दुर्घटना में 14 लोगों ने जान गंवाई थी, उसके बारे में यह तथ्य सामने आया कि महज सवा पांच महीने पुरानी इस बस का अयोध्या, मथुरा, उन्नाव, नोएडा में सात बार चालान हो चुका था। इसे ब्लैकलिस्ट किया गया था और इस पर टैक्स भी बकाया था, लेकिन यूपी, बिहार और दिल्ली के परिवहन विभाग के भ्रष्ट असफरों ने इसका परमिट रद्द करने की बजाय साठगांठ कर इसे सड़कों पर खुलेआम दौड़ने दिया। साफ है कि ये ऐसे बस हादसे हैं, जिनकी पुनरावृत्ति फिर कभी नहीं होगी-कम-से-कम यह आश्वासन राज्य सरकारें और उनके भ्रष्ट परिवहन व पुलिस विभाग नहीं दे सकते। अगर ऐसा होता तो जिस बस को गोरखपुर में ब्लैकलिस्ट किया गया था, वह सड़क पर नहीं होती और 90 सवारियों को ढोकर बिहार नहीं जा रही होती। अफसोस इसका है कि इस तरह के हर हादसे में तफ्तीश किसी मानवीय भूल के निष्कर्ष पर जाकर खत्म कर दी जाती हैं।

ऐसे में राज्य सरकारों की लापरवाही के साथ-साथ पुलिस-परिवहन विभाग और डग्गामार बस संचालकों की भ्रष्ट साठगांठ पर प्रहार किया जाना चाहिए, उस ओर से आंखें मूंद ली जाती हैं। वैसे भी सड़क पर बस ड्राइवरों की झपकी को अगर मानवीय भूल कहें, तो भी इनसे होने वाले हादसे असल में हमारी तमाम व्यवस्थाओं की पोल खोलते हैं। पता लगाना होगा कि कहीं ये हादसे किसी क्षणिक गलती या झपकी आने जैसी मानवीय भूल की बजाय प्रशासनिक लापरवाही और भ्रष्टाचार की देन तो नहीं हैं। एक उदाहरण पिछले वर्ष (जून, 2019) में यमुना एक्सप्रेस-वे पर यूपी रोडवेज की लखनऊ से दिल्ली आ रही बस दुर्घटना का है। करीब 50 पैसेंजरों से भरी इस बस को शाम के वक्त लखनऊ से चलकर सुबह दिल्ली पहुंचना था। पांच सौ किलोमीटर से ज्यादा लंबे इस सफर के लिए इस सरकारी बस के पास सिर्फ  एक ड्राइवर था, जिसे यह यात्रा बुरी तरह थका डालती है। ऐसे में यदि उसके चालक को झपकी आ गई, तो उसे मानवीय भूल कहना असली कारणों पर पर्दा डालना ही है। इसके अलावा एक सवाल यमुना या गंगा एक्सप्रेस-वे के इंतजामों का भी है। दावा तो है कि इन एक्सप्रेवे पर सीसीटीवी कैमरे हैं, हाईवे पर पुलिस गश्त की व्यवस्था है, जगह-जगह मुफ्त टेलीफोन लगे हैं और मोबाइल रडार जैसे इंतजाम हैं। लेकिन हादसे साबित करते हैं कि ये उपाय सिर्फ  दिखाऊ हैं। समस्या का एक सिरा डग्गामार प्राइवेट बसों से भी जुड़ा है। अनट्रेंड चालक, लापरवाही, ज्यादा सवारी ढोने का लालच, ओवरस्पीड-डग्गामार बसों के मामले में इन चीजों की रोकने वाला तंत्र कोई काम करता ही नहीं दिखाई देता है। पर्यटन और स्थानीय शादियों के सीजन में तो यह मर्ज कुछ ज्यादा ही बढ़ जाता है, जब ट्रेनों में रिजर्वेशन अनुपलब्ध होने के चलते लोग निजी बसों-कारों का सहारा लेते हैं। जहां तक हाईवे और एक्सप्रेस वे पर होने वाले हादसों की बात है, तो यहां एक विरोधाभास यह है कि इन सड़कों की हालत बीते कुछ वर्षो में बेहतर हुई है। लेकिन सड़कें अच्छी होने के बाद भी दुर्घटनाओं का होना सवाल पैदा करता है कि आखिर इसके लिए दोषी कौन हैं?
इसके लिए निश्चित रूप से पुलिस और परिवहन विभाग की अनदेखी एक बड़ा कारण है। ओवरलोडिंग, ओवरस्पीडिंग, शराब पीकर गाड़ी चलाना, वाहन चलाते समय तेज आवाज में संगीत सुनना और अगर बात पहाड़ी रास्तों की हो, तो ड्राइवर को पहाड़ी रास्तों पर गाड़ी चलाने का अनुभव नहीं होने से ज्यादातर हादसे होते हैं। सवाल असल में सरकार और उसके विभागों की नीयत का है। जिस तरह राज्य सरकारें गंगा-यमुना की सफाई में करोड़ों-अरबों फूंकने के बाद भी कोई ठोस नतीजा हासिल नहीं कर पाई हैं, उसी तरह सड़क यातायात के मामले में भी उनका ध्यान सिर्फ  दिखाऊ उपायों पर है। यही नहीं, अगर यूपी-बिहार की बसें दुर्घटनाग्रस्त हो रही हैं, तो दिल्ली सरकार इस मामले में अपनी जिम्मेदारी से यह कहकर पल्ला नहीं झाड़ सकती है कि यह उसके राज्य का मामला नहीं। क्योंकि इनके रास्तों से दिल्ली-एनसीआर के हजारों-लाखों लोगों का आना-जाना लगा रहता है।

अभिषेक कुमार सिंह


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