गार्गी कॉलेज : महफूज क्यों नहीं लड़कियां?
आम तौर पर छात्र-छात्राओं के सर्वागीण विकास के लिए विश्वविद्यालय और महाविद्यालय परिसर ही सबसे महफूज स्थल होते हैं।
गार्गी कॉलेज : महफूज क्यों नहीं लड़कियां? |
इन संस्थानों से जुड़े प्रामाणिक सदस्यों का ही इनमें आवागमन मान्य होता है अन्यथा सार्वजनिक तौर पर परिसर को वर्जित क्षेत्र माना जाता है। परिसर गेट पर निजी सुरक्षाकर्मिंयों को तैनात कर प्रवेश-निकास को नियंत्रित किया जाता है। दिल्ली पुलिस की जिप्सी भी ‘शांति, सेवा और न्याय’ के संदेश के साथ शिक्षण संस्थानों के परिसरों के आसपास गश्त लगाती दिखती हैं। इस प्रकार, शिक्षण संस्थाएं अपने विद्यार्थियों के लिए भयमुक्त परिसर उपलब्ध कराने की कोशिश करती हैं, जहां शैक्षणिक क्रियाकलाप के साथ-साथ अन्य कार्यक्रमों का भी आयोजन होता है।
ऐसे बौद्धिक केंद्रों में नामांकन पाना सफलता की प्रथम सीढ़ी मानी जाती है, जहां पर नामांकन मात्र से ही माता-पिता संतुष्ट महसूस करते हैं, और विद्यार्थी भी उत्साहित होकर अपने भविष्य के निर्माण में लग जाते हैं। लेकिन इस वर्ष में घटित कुछ घटनाएं ऐसी रहीं जो इस आस्था को तोड़ती दिख रही हैं। मिसाल के तौर पर 5 जनवरी, 2020 की घटना को ही लें। उस रोज नकाबपोश गुंडे जेएनयू परिसर में घुस आए। उन्होंने विद्यार्थियों और शिक्षकों की बेरहमी से पिटाई की और दिल्ली पुलिस एवं जेएनयू प्रशासन द्वारा कार्रवाई में बरती गई कोताही बड़ी खबर बनी। उसी कड़ी में ठीक एक महीने बाद छह फरवरी, 2020 को गार्गी महिला कॉलेज की घटना घटी जिसने यौन हिंसा का विचित्र नमूना पेश कर दिया है। इस घिनौनी हरकत को मर्द मानसिकता से पीड़ित भीड़ ने अंजाम दिया था, जिसमें गेट को तोड़ कर परिसर में चल रहे वार्षिक महोत्सव में शिरकत करतीं छात्राओं के साथ यौन उत्पीड़न और बदसलूकी की गई। परिसर में इस घटना के दौरान कोहराम मच गया था। पीड़ित छात्राओं ने सोशल मीडिया पर जो आपबीती दर्ज की है, वह एक भयावह पाठ था। प्रत्यक्षदर्शी छात्राओं का कहना है कि भीड़ में अधिकतर प्रौढ़ मर्द थे जो परिसर के भीतर सिगरेट, शराब पीते दिखे और नशे में धुत हालत में इन उत्पाती लोगों ने महिला दर्शकों पर हल्ला सा बोल दिया था। वे महिला दर्शकों के बीच घुस गए और उन्हें छूने, दबोचने जैसी अश्लील और घिनौनी हरकत कर रहे थे। आतंकित छात्राओं में चीख-पुकार मच गई थी।
कहना होगा कि यह मात्र सुरक्षा में चूक का प्रश्न नहीं है। सुरक्षा तो महत्त्वपूर्ण है ही लेकिन सतर्कता और त्वरित कार्रवाई से जुड़े मसले भी हैं, जिनकी अनदेखी नहीं की जा सकती। इस घटना ने इस जरूरत को साबित कर दिया है। सबसे दुखद तो यह है कि जब छात्राओं ने अपनी प्रिंसिपल से छेड़छाड़ की शिकायत की तो उन्होंने तुरंत कारवाई नहीं की। इसके उलट छात्राओं को ही नसीहत दे दी। कहने लगीं कि महोत्सव में आने की जरूरत ही क्या थी। कहना न होगा कि ऐसे बड़े आयोजनों के लिए सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम करना कॉलेज प्रशासन का प्राथमिक जिम्मेदारी होती है। साथ ही, ऐसे आयोजन की जानकारी स्थानीय पुलिस को देना भी अनिवार्य होता है। गेट टूटने की स्थिति में कॉलेज सुरक्षाकर्मी और माशर्लों ने पुलिस की मदद क्यों नहीं ली? विधि व्यवस्था के इन प्रारूपों के बावजूद सैकड़ों की उत्पाती भीड़ का परिसर में दाखिल होना कॉलेज प्रशासन और पुलिस की भूमिका पर बड़ा सवाल खड़ा करता है।
राजधानी दिल्ली की कानून व्यवस्था का नियंत्रण केंद्रीय गृह मंत्रालय के अंतर्गत आता है, और वह इस जिम्मेदारी से नहीं बच सकता। दिल्ली सरकार भी ऐसी घटनाओं पर एक सधा बयान देकर अपना पाला नहीं झाड़ सकती। सतर्कता और कार्रवाई के मामले में दिल्ली पुलिस ने आम लोगों का भरोसा कमतर किया है। जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के कुलपति की अनुमति बगैर परिसर में घुसकर पुस्कालय में अध्ययनरत विद्यार्थियों को बेरहमी पिटने से लेकर जेएनयू के छात्र-छात्राओं को नकाबपोश गुंडों द्वारा पीटे जाते वक्त कुलपति की अनुमति के इंतजार के बहाने मूकदर्शक बने रहना पुलिस की कर्त्तव्य निष्ठा पर उंगली उठाने को बाध्य करता है। दोनों घटनाओं में छात्राएं भी बुरी तरह घायल हुई। गार्गी कॉलेज में छात्राओं पर भीड़ के आतंक की घटना समाज को कलंकित करने की दिशा में अंतिम कील की तरह दिखती है। देश की राजधानी में भविष्य निर्माण में लगी युवा पीढ़ी को महफूज महसूस कराने में गृह मंत्रालय फेल होता दिखलाई पड़ रहा है। भारत युवा आबादी की बहुसंख्या वाला देश है, और युवा ही भारत के भविष्य हैं। खतरनाक पक्ष यह है कि भय के साये में युवा ऊर्जा भी दिशाहीन हो सकती है, जिसकी क्रिया और प्रतिक्रिया, दोनों ही चिंता का विषय हैं।
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