बेरोजगारी : बनी हुई है बड़ी चुनौती

Last Updated 14 Feb 2020 12:09:21 AM IST

सरकार द्वारा हाल ही में संसद में पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार वित्तीय वर्ष 2017-18 में बरोजगारी की दर 6.1 फीसद रही।




बेरोजगारी : बनी हुई है बड़ी चुनौती

शहरी क्षेत्रों में बरोजगारी का आंकड़ा 7.8 फीसद तो ग्रामीण क्षेत्रों में 5.9 फीसद रहा। पिछले चार दशक में यह बेरोजगारी की सबसे ऊंची दर है। इसके लिए वर्ष 2016 में किए गए विमुद्रीकरण (डिमोनेटाइजेशन) को जिम्मेदार बताया जा रहा है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अर्थव्यवस्था से काले धन को खत्म करने के लिए 8 नवम्बर 2016 को 1000 और 500 रुपये के नोट बंद करने का ऐलान किया था। इसका परिणाम यह हुआ कि काले धन के बूते पर चल रही समानांतर अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो गई और इसके जरिए जिन लोगों को रोजगार मिला हुआ थे वे बेरोजगार हो गए।
सेंटर फार मॉनिटरिंग इंडिया इकॉनोमी (सीएमआईई) के अनुसार विमुद्रीकरण के कारण वर्ष 2018 में 1.1 करोड़ लोगों का रोजगार छिन गया। फरवरी 2019 में देश में चार करोड़ बेरोजगारों की फौज थी। बेरोजगारी की सबसे ज्यादा दर 20 फीसद से भी ज्यादा दिल्ली, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर और त्रिपुरा में हैं। सबसे कम 2 फीसद से भी कम तमिलनाडु, पुडुचेरी, ओडिशा और मेघालय में है। बेरोजगारी से निपटने के उपायों पर चर्चा करने से पहले बेरोजगारी, बेरोजगारी दर और इसके कारणों के बारे में जानना जरूरी है। अर्थशास्त्र में बेरोजगार उसे माना गया है, जो व्यक्ति काम करने में समर्थ और काम करना चाहता है, लेकिन उसे काम नहीं मिल रहा है। बेरोजगारी की दर से आशय कुल श्रमशक्ति में बेरोजगारों के प्रतिशत से है। कु ल श्रमशक्ति में रोजगार प्राप्त और बेरोजगार दोनों शामिल हैं। बेरोजगारी भी दो तरीके की है-एक खुली (ओपन) है तो दूसरी है छिपी (डिस्गाइज्ड)। खुली बेरोजगारी वह है, जो प्रत्यक्ष तौर पर दिखाई देती है जबकि छिपी हुई बेरोजगारी वह है जो प्रत्यक्ष तौर पर दिखाई नहीं देती। सबसे ज्यादा छिपी हुई बेरोजगारी कृषि क्षेत्र में है। इसको ऐसे समझा जा सकता है कि खेत में काम करने के लिए मान लीजिए चार लोगों की जरूरत है लेकिन परिवार के अन्य सदस्यों के पास कोई और काम न होने के कारण सबके सब खेती में लगे हुए हैं। तो ऐसी स्थिति में चार के अलावा जितने लोग खेती में लगे हुए है, वे सब बेरोजगार हैं।

छिपी हुई बेरोजगारी का दूसरा उदाहरण संयुक्त परिवार का साझा कारोबार है। अर्थशास्त्र में एक और बेरोजगारी का उल्लेख है जिसे अर्ध बेरोजगारी कहा जाता है। यह ऐसी स्थिति होती है, जब एक ज्यादा लायक व्यक्ति अपनी योग्यता से कम का काम कर रहा हो। इनके अलावा सीजनल और टेक्नोलॉजिकल भी बेरोजगारी के प्रकार हैं। सीजनल बेरोजगारी कृषि आधारित उद्योगों व कंस्ट्रक्शन क्षेत्र में पाई जाती है। टेक्नोलॉजिकल बेरोजगारी में लोग नई तकनीक आने की वजह से बेरोजगार हो जाते हैं। विमुद्रीकरण को छोड़कर बेरोजगारी के कारण ऐसे हैं जिनसे हम परिचित हैं। इन कारणों में सबसे बड़ा कारण तेजी से बढ़ती जनसंख्या है। जनसंख्या के अनुपात में उद्योग धंधों का विकास न होने के कारण बेरोजगारों की संख्या में इजाफा होता चला जाता है। अंतरराष्ट्रीय मंदी भी अब सभी देशों की अर्थव्यवस्था पर असर डालती है। मंदी आने पर भी जहां नए रोजगारों का सृजन नहीं हो पाता है, वहीं मौजूदा रोजगारों की संख्या भी घट जाती है।
देश के चार करोड़ बेरोजगारों को कम समय में रोजगार उपलब्ध कराना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है। सरकार बेरोजगारी से निपटने के लिए हाल ही में सभी सरकारी विभागों में रिक्त पड़े सभी पदों को भरने का फरमान जारी किया है। इन पदों की संख्या छह लाख के करीब बताई जा रही है। इसके अलावा, सरकार अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए में अधिकाधिक संसाधन झोंक रही है ताकि रोजगार के ज्यादा से ज्यादा अवसर पैदा किए जा सकें। छोटे-मोटे काम-धंधे सीख और सीखा कर भी बेरोजगारी को मात दी जा सकती है। नोबेल पुरस्कार से सम्मानित बांग्लादेश के सामाजिक कार्यकर्ता, बैंकर व अर्थशास्त्री का फामरूला भी रोजगार की समस्या से निपटने में सहायक हो सकता है। उन्होंने ग्रामीण बैंक की स्थापना करके खासतौर पर महिलाओं को छोटे-मोटे काम करने के लिए सस्ती ब्याज दर छोटे-छोटे ऋण बांटे।

अशोक शर्मा


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