मुद्दा : वनावरण का क्षय रोग

Last Updated 12 Feb 2020 12:24:22 AM IST

देश का वायु गुणवत्ता सूचकांक जितनी जोर से खतरे की घंटी बजा रहा है, उसका मुकाबला करने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसों को सोखने वाला देश का वनावरण उस गति से नहीं बढ़ पा रहा है।


मुद्दा : वनावरण का क्षय रोग

गंभीर चिंता का विषय तो यह है कि भारत के फेफड़े-पूर्वोत्तर हिमालय-में वनावरण में निरंतर हास होता जा रहा है। प्रदूषण के लिहाज से दुनिया के सबसे प्रदूषित 30 शहरों में भारत के 22 शहर चिह्नित किए गए हैं। अरबों रुपये खर्च करने पर भी आशानुरूप आंकड़े हाथ न लगने पर इस बार भी वनावरण की चिंताओं को वृ़क्षावरण के आवरण में छिपाने के लिए वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने वनावरण और वृक्षावरण की साझा वन स्थिति रिपोर्ट 2019 पेश कर दी।
 रिपोर्ट में वन और वृक्ष आच्छादित क्षेत्र का कुल दायरा 5188 वर्ग किलोमीटर बढ़ कर 24.56 प्रतिशत होना बताया गया है। इस वृ़िद्ध को वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में प्रमुखता से सबसे पहले पेश किया गया। जबकि देश का वास्तविक वनावरण अभी 21.67 ही है। इसमें भी चिंता का विषय यह है कि सरकार द्वारा संरक्षित एवं कानून के अनुसार वन घोषित क्षेत्र में 70 प्रतिशत से अधिक वृक्ष क्षेत्र वाले अति सघन वनावरण में 330 वर्ग किमी की कमी आ गई है। यही अति सघन वन कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसों को सर्वाधिक सोखते हैं। यही नहीं, दो साल के अंदर उत्तर पूर्व में अति सघन वनावरण 765 वर्ग किमी घट गया है। संभवत: इसी आंकड़ेबाजी की प्रवृत्ति को भांप कर ही वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को सलाहकार समिति ने वनावरण एवं वृक्षावरण के अलग-अलग सव्रे करने का सुझाव दिया है।

दुनिया भर में जिन जैव विविधता की दृष्टि से जो लगभग 34 क्षेत्र चिह्नित किए गए हैं, उनमें भारतीय उप महाद्वीप में म्यांमार तक पूर्वोत्तर हिमालय, पश्चिमी घाट और श्रीलंका शामिल हैं। इन तीनों में से भी सबसे अधिक जैव विविधता पूर्वोत्तर हिमालय में आंकी गई है, और वनावरण में निरंतर हृास भी इसी क्षेत्र में हो रहा है जो कि न केवल भारत बल्कि विश्व बिरादरी की भी चिंता का विषय है। नवीनतम वन स्थिति रिपोर्ट के अनुसार अरुणाचल में 276 वर्ग किमी, मणिपुर में 499 वर्ग किमी, मेघालय 27 वर्ग किमी, मिजोरम 180 वर्ग किमी, नगालैंड वर्ग किमी 3 और सिक्किम में 2 वर्ग किमी वनावरण घट गया है। अगर वर्ष 1999 की वन स्थिति रिपोर्ट से तुलना करें तो इस क्षेत्र में अब तक 1014 वर्ग किमी अति सघन वनावरण गायब हो गया है।1999 की रिपोर्ट के अनुसार अरुणाचल में 82.21 फीसद वनावरण था जो अब 79.63 फीसद रह गया।
इसी प्रकार, मिजोरम में 86.99 फीसद से 85.41 फीसद, नगालैंड में 85.43 फीसद से 75.31 फीसद और मणिपुर में वनावरण 77.86 फीसद से घटकर अब 75.46 फीसद ही रह गया है। वर्ष 2017 की वन स्थिति रिपोर्ट में पूर्वोत्तर भारत के राज्यों का वनावरण 70 प्रतिशत से अधिक बताया गया था लेकिन इस बार की सव्रेक्षण रिपोर्ट में कुल वनावरण 65.5 प्रतिशत बताया गया है। कुल मिलाकर 4.5 प्रतिात वनावरण का यह अन्तर बहुत अधिक है, जिसे रिपोर्ट में छिपा दिया गया है। सवाल यह है कि जो वनावरण और वृक्षावरण अधिसूचित क्षेत्र से बढ़ भी रहा है, वह सरकारी प्रयासों से नहीं बल्कि स्वैच्छिक संगठनों, वन प्रेमियों और वन पंचायतों के प्रयासों का नतीजा है। सरकार के अधीन संरक्षित क्षेत्र में 330 वर्ग किमी सघन वनावरण घटने के साथ ही अब तक अति सघन वन 40 से लेकर 70 प्रतिशत तक वृक्षछत्र (कैनोपी) वाले सामान्य सघन वनों में और सामान्य सघन वन 10 से लेकर 40 प्रतिशत वृक्षछत्र वाले खुले वनों में बदलते रहे हैं।
एक और चिंता का विषय यह है कि देश के 187 जनजातीय जिलों में वनावरण केवल 37.54 फीसद ही रह गया है, जबकि जनजातीय जीवन मुख्यत: वनों पर ही आश्रित होता है। वन स्थिति रिपोर्ट के अनुसार भारत के वनों की कुल कार्बन स्टॉक क्षमता 7142.6 टन है और इसमें 2017 के आकलन की तुलना में 42.4 टन की वृद्धि हुई है। भारतीय वनों की कुल वाषिर्क कार्बन स्टॉक में वृद्धि 21.3 मिलियन टन है, जो लगभग 78.1 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर है। राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत ग्रीन इंडिया मिशन, 2030 तक 10 मिलियन हेक्टेयर वृक्ष लगाने की योजना का कार्यान्वयन चल रहा है। इससे 2.5 बिलियन टन का कार्बन सिंक निर्मित करने का लक्ष्य है। लेकिन यह लक्ष्य तभी पूरा होगा जबकि कैम्पा फंड जैसे वन क्षतिपूर्ति कार्यक्रम के लिए निर्धारित धनराशि का अंयत्र दुरुपयोग नहीं होगा।

जयसिंह रावत


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