ड्रेसिंग पर पुलिसिंग

Last Updated 09 Feb 2020 12:10:27 AM IST

औरतों के कपड़े-लत्तों पर अक्सर लोगों की खास नजर रहती है। वे क्या पहनेंगी-क्या नहीं, इसे लेकर लोग अपनी-अपनी राय रखते हैं।


ड्रेसिंग पर पुलिसिंग

पिछले दिनों ब्रिटिश सांसद ट्रेसी ब्राबिन को भी ऐसी ही आपत्तियों का सामना करना पड़ा, जब वे हाउस ऑफ कॉमन्स में ऑफ शोल्डर टॉप पहन कर पहुंच गई। ट्विटर पर लोगों ने उनकी आलोचना की और उनसे पूछा कि क्या संसद में ऐसे कपड़े पहन कर आना शोभा देता है। ब्राबिन ने साफ कहा-मैं ऐसी ही हूं- आप जो चाहे समझें।
कपड़ों से व्यक्ति के चरित्र को भांपने वाले बहुत से होते हैं। आप तथाकथित परंपरागत कपड़े पहनें तो आपको सद्चरित्र मान लिया जाता है। आधुनिक कपड़े पहनने वाले चालू किस्म के माने जाते हैं। पुरु षों के लिए ये पैमाने मायने नहीं रखते। वे जो चाहें पहन लें। उनके चरित्र को उधेड़ा नहीं जाता। दुष्चरित्र माने ही नहीं जाते। इसीलिए ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन चाहे रंगीन निकर और मोजे पहनें या खुली जैकेट, कोई ध्यान नहीं करता। ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने एक बार उन पर आर्टकिल ही किया था-बोरिस जॉनसन एंड राइज ऑफ सिली स्टाइल। पर जनता उस पर चुप्पी ही साधे रहती है। ब्रिटेन के दूसरे पुरु ष सांसदों से भी उनकी स्टाइलिंग पर कोई सवाल नहीं किए जाते। पर औरतों को सवालों के घेरे में जरूर खड़ा किया जाता है। उनके जूतों, ट्राउजर्स, हैंडबैग, यहां तक कि पैरों पर भी। उन्हें बैठते समय यह भी ध्यान रखना चाहिए कि उन्हें अपने पैर कैसे रखने हैं।

सरोकार : ड्रेसिंग पर पुलिसिंग

दो साल पहले ‘डेली मेल’ अखबार ने स्कॉटलैंड की फस्र्ट मिनिस्टक निकोला स्टरजिएन और ब्रिटिश प्रधानमंत्री थेरेसा मे की एक तस्वीर छापी थी। उसके नीचे लिखा था-किसकी टांगें ज्यादा अच्छी हैं। इसके बाद सभी ने अखबार के फ्रंट पेज की आलोचना की और कहा कि यह पितृसत्तात्मक सोच की इंतहा है। इस सिलसिले में ब्रिटिश सांसद रेशल रीव्स ने एक किताब लिखी है-विमिन् ऑफ वेस्टमिनिस्टर और बताया है कि कैसे महिला सांसदों की ड्रेसिंग पर लोग सवाल करते रहते हैं। कैसे पोलो नेक न पहनने वाली महिला सांसदों को आलोचनाओं का शिकार बनाया जाता है।

कई साल पहले बॉलिवुड एक्ट्रेस प्रियंका चोपड़ा से भी सवाल किए गए थे-बल्कि लानतें भेजी गई थीं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से बर्लिन में मिलना उन्हें अच्छा भारी पड़ गया था। वह अपनी फिल्म के प्रमोशन पर जर्मनी गई थीं। वहां प्रधानमंत्री से मिलने का मन बना, तो सफेद रंग की स्कर्ट पहन कर उनके पास पहुंच गई। वहां प्रधानमंत्री के सामने चमचमाते पैरों को क्रॉस किए प्रियंका की तस्वीर ऑनलाइन हुई तो लोगों ने बवाल कर दिया। क्यों वह भारतीय कपड़ों में प्रधानमंत्री से नहीं मिलीं। वह बुजुर्ग हैं-क्या लड़कियों को अपनी पिता के उम्र के व्यक्ति से ऐसे मिलना शोभा देता है? इसी तरह तनु वेड्स मनु रिटर्न्‍स के लिए नेशनल अवार्ड लेने दिल्ली पहुंचीं कंगना राणौत को भी कटघरे में खड़ा किया गया। राष्ट्रपति से अवार्ड लेते समय उन्होंने मोव कलर का ऑफ शोल्डर गाऊन पहना था। बहुतों को नागवार गुजरा। उन्होंने कहा कि वह साड़ी पहन कर क्यों नहीं आई? औरतों, लड़कियों के लिए यही मुश्किल है। उन्हें अपने औरतपने की लाज रखने की महती जिम्मेदारी दे दी जाती है। इस जिम्मेदारी से वे कैसे मुक्त हो सकती हैं? यह जिम्मेदारी हर औरत की है। उन्हें घर हों या बाहर, अपने कपड़े-लत्ते पर ध्यान देना चाहिए।
बेशक, परिधान अपनी पसंद के ही पहने जाने चाहिए जिसमें आप आराम महसूस करें। मुझे व्यक्तिगत रूप से कुछ भी पसंद या नापसंद हो सकता है, पर दूसरे भी उसे पसंद या नापसंद करें-यह जरूरी नहीं। औरतों के कपड़ों पर नहीं, उनकी विशेषताओं और विशिष्टताओं की ओर ध्यान दें, यह ज्यादा जरूरी है।

माशा


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