आम बजट : किसानों को सब्जबाग

Last Updated 06 Feb 2020 03:21:14 AM IST

मोदी टू सरकार का दूसरा बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ‘हमारा लक्ष्य देश और लोगों की सेवा तथा देश की अर्थव्यवस्था को तेजी से आगे बढाने के साथ जनता की जिंदगी बेहतर बनाने’ की कटिबद्धता से शुरू किया था।


आम बजट : किसानों को सब्जबाग

आम जन में देश के 65% खेतिहरों की जिंदगी भी महत्त्वपूर्ण है जो देश का अन्नदाता है। देश के गिरती विकास-दर के परिप्रेक्ष्य में अर्थशास्त्री, कृषि विशेषज्ञ, कॉरपोरेट सेक्टर सभी उम्मीद कर रहे थे कि कृषि सेक्टर की क्रयशक्ति बढ़ाने के लिए सरकार बड़े कदम उठाएगी क्योंकि औद्योगिक तथा सेवा क्षेत्र की 46% मांग ग्रामीण क्षेत्र से ही होती है।
वित्त मंत्री ने बजट की शुरुआत भी किसानों के 16 सूत्री विकास मॉडल पेश कर की। आय दुगुनी करने की पुरानी प्रतिबद्धता को दुहराते हुए किसानों के लिए जीरो बजट तथा जैविक खेती को बढ़ावा देने, वेयरहाउस खोले जाने, अन्नदाता को ऊर्जादाता बनाने जैसे पुराने एजेंडा  सहित 100 सूखा पीड़ित  जिलों में  जल संचयन, भूजल स्तर बढ़ाने तथा सिंचाई की व्यवस्था, बीज से जुड़ी धन लक्ष्मी योजना से महिलाओं को जोड़ना, कृषि उपज विपणन तथा ठेके पर खेती में उन राज्य सरकारों को प्रोत्साहन जो आधुनिक कानूनों को बढ़ावा देगा, पीपीपी मोड में कोल्ड स्टोरेज, रेल तथा कृषि उड़ान योजना से फल-सब्जियोें की ढुलाई के लिए ट्रेनों के अंदर कोल्डचेन स्टोरेज  की  व्यवस्था की जाएगी। बागवानी तथा एक विशेष फसल योजना से प्रत्येक जिला जोड़ा जाएगा।

बंजर भूमि पर सोलर पंप लगाने तथा सौ  ऊर्जा प्लांट से 20 लाख किसानों को जोड़ने, दुग्ध प्रसंस्करण क्षमता 53 लाख मीट्रिक टन से बढ़ाकर 108 लाख मीट्रिक टन किया जाएगा। नीली क्रांति के तहत समुद्री मत्स्य संसाधनों के प्रबंधन  के लिए एक ढांचा स्थापित कर मछुआरों  की सुरक्षा और समुद्री मत्स्य पर फोकस कर 2023 तक 200 लाख टन तक मछली उत्पादन बढ़ाने के साथ 3477 सागर मित्रों एवं 500 मतस्य उत्पादक संगठनों को जोड़ने की योजना है। बजट में कृषि सिंचाई तथा ग्रामीण विकास  पंचायती राज  का आवंटन 2,83,000 करोड़ रखा गया है, जो पिछले वर्ष के2,68,000 करोड़  रुपये से महज 15 हजार करोड़ रुपये ज्यादा  यानी 5.6% ज्यादा है। यदि महंगाई दर को देखें तो यह वृद्धि पिछले बजट आवंटन से ज्यादा नहीं है। बजट में खाद्य सब्सिडी पर 115569.68 करोड़ रखा गया है, जो पिछले बजट में 1,84,220 करोड़ रुपये था। खाद्य सब्सिडी में भी भारी कमी की गई है। किसान सम्मान योजना में पिछले वर्ष 75 हजार करोड़ का आवंटन था,  जिसमें 54,370 करोड़  रुपये व्यय हुए। इस बार भी पिछले बजट के समान राशि आवंटित की गई है जबकि सभी तबकों ने किसानों की नकद आमदनी में वृद्धि  के लिए पीएम किसान सम्मान निधि की राशि में वृद्धि  की उम्मीद रखी थी। इसी प्रकार बजट में उर्वरक सब्सिडी विगत वर्ष के 1,84,220 करोड़ से घटकर 10,8,688  यानी 11% की  कमी हो गई है, जिससे कृषि इनपुट बढ़ने की उम्मीद है। इसी प्रकार, मनरेगा का आवंटन विगत बजट के संशोधित 71001 करोड़ रुपये से 9500 करोड़ रुपये घटा कर 61,500 करोड़ कर दिया गया है जबकि राज्यों सेअधिक मांग थी।
इस तरह देखें तो किसानों, खेतिहर-मजदूरों की क्रयशक्ति बढ़ाने वाले क्षेत्रों पर आवंटन घटा है। इसी प्रकार बजट में किसानों के बढ़ती उत्पादन लागत के कारण घाटे की खेती से निजात, कृषि पैदावार की सीटू फार्मूले पर ड्योढ़ा कीमत तय किए जाने तथा किसानों को एमएसपी से 5 सौ-6सौ रुपये क्विंटल कम कीमत मिलने, दुग्ध  किसानों का घाटा, तीन वर्षो से गन्ना  मूल्य नहीं बढ़ने तथा 20 हजार करोड़ से अधिक गन्ना मूल्य के बकाये के भुगतान तथा तय एमएसपी पर भी करीब 6% किसानों के कृषि उत्पादों की ही सरकारी खरीद होने जैसी बड़ी चिंता के मुद्दे बजट के विषय नहीं बन सके हैं। किसानों में यह भी चिंता हो रही है कि खाद्यान्न सब्सिडी घटाने तथा एमएसपी पर कृषि उत्पादों की खरीद पर बजट में ठोस नीति नहीं बनने तथा निजी क्षेत्रों में  मंडी को प्रोत्साहित करने से सरकार की नीयत पर संदेह हो रहा है कि क्या सरकार कृषि उत्पादों के खरीद से पल्ला झाड़ना चाह रही है? इधर खेती की लागत 5 वर्षो में 33 से 100% बढ़ने और जीवनयापन खर्च  दोगुना बढ़ने से किसान  चिंतित हैं। बजट कृषि को तकनीकी तौर पर उन्नत बनाने पर जोर देता जरूर दिखता है परंतु  हमें 86% लघु एवं सीमांत किसानों को केंद्र में रखकर विचार करना होगा कि क्या ये तकनीक उन तक पहुंच बना सकेंगी या निजी क्षेत्र, कॉरपोरेट तथा कुछ बड़े किसान ही उसका लाभ प्राप्त करेंगे। फसल बीमा का लाभ किसानों तक कैसे पहुंचे, इस पर बजट चुप है।
किसान लगातार मांग करता रहा है कि फसल बीमा का प्रीमियम किसान देता है जबकि इसका लाभ करीब 15 कॉरपोरेट उठा रहे हैं। फसल बीमा सीधा सरकारी नियंत्रण में होने की किसानों की मांग को भी नजरअंदाज किया गया है। बजट में  कहा गया है कि जो राज्य केंद्र सरकार के तीन मॉडल एग्रीकल्चर लैंड लीजिंग एक्ट, 2016, मॉडल एग्रीकल्चर प्रोड्यूस एंड लाइव स्टॉक एंड मार्केटिंग एक्ट, 2017 तथा मॉडल एग्रीकल्चर प्रोड्यूस एंड लाइवस्टॉक कॉन्ट्रेक्ट फॉरमिंग एंड सर्विसेज प्रमोशन एंड फैशिलिटेशन एक्ट, 2018 अपनाएंगे, उन्हें  केंद्र सरकार  सहयोग करेगी जबकि यह एक्ट भूमि को लीज तथा ठेके पर देने से संबंधित है, जिससे कृषि उत्पादन, पशुपालन, फसल की बिक्री, खाद्यान्न  प्रसंस्करण, भंडारण, परिवहन पर निजी तथा कॉरपोरेट का दखल बढ़ेगा। घाटे तथा ऋण बोझ से दबे किसान लीज तथा ठेके पर खेत देकर अपने ही खेत से विलग होंगे।
आर्गेनिक खेती तथा जीरो बजट खेती के प्रसार पर सरकार पहले से ही योजना बना रही है। उसकी भी समीक्षा करनी चाहिए कि हम उस पर कितने कदम बढ़े हैं, उसके मार्केटिंग का नेटवर्क बना है क्या? अन्यथा उर्वरक सब्सिडी घटाकर तथा उसके कम उपयोग की बात कर हम खाद्यान्न पर आत्मनिर्भरता को प्रभावित तो नहीं करेंगे? जलवायु परिवर्तन से खेती लगातार प्रभावित रहती है। कहीं सूखा, कहीं बाढ़, कहीं-कहीं दोनों। सौ जिलों के लिए सिंचाई तथा जल संचयन के साथ जहां नदी जल स्रोत हैं, वहां जल प्रबंधन तथा मरती नदियों को बचाने, सिंचाई सुविधा के विकास के साथ बाढ़ से मुक्ति तथा भू-जल स्तर बढ़ाने को भी बजट में स्थान मिलना चाहिए। इस प्रकार बजट किसानों की मूल समस्याओं के हल करने के बजाय सपने जरूर दिखाता है। अत: सरकार को बजट घोषणाओं को समय पर पूरा कराने के साथ ही मूल समस्याओं के समाधान के लिए भी विशेष प्रावधान करने चाहिए।

डॉ. आनन्द किशोर


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