सरोकार : अमीर आदमी गरीब औरत

Last Updated 26 Jan 2020 12:26:09 AM IST

दुखद खबर है कि दुनिया के 22 अमीर आदमियों की दौलत को जोड़ा जाए तो अफ्रीका की 32.5 करोड़ औरतों की दौलत से कहीं ज्यादा होगी।


सरोकार : अमीर आदमी गरीब औरत

दावोस में र्वल्ड इकोनॉमिक फोरम में जारी ऑक्सफेम रिपोर्ट कहती है कि महिलाएं रोजाना 12।5 अरब घंटे अनपेड केयर वर्क करती हैं, और विश्व अर्थव्यवस्था में लगभग 10।8 खरब डॉलर का योगदान देती हैं। लेकिन उनके केयर वर्क की कीमत नहीं लगाई जाती। इसीलिए वे गरीब बनी रहती हैं। केयर वर्क से मतलब है, घर-परिवार संभालना-खाना पकाना-बच्चों, बुजुगरे की देखभाल। रिपोर्ट का कहना है कि दुनिया भर की औरतें तीन चौथाई से अधिक अनपेड वर्क करती हैं।
ऑक्सफेम के चीफ एग्जीक्यूटिव का कहना है कि सिर्फ  22 अमीर मदरे की दौलत अफ्रीका की सभी महिलाओं से ज्यादा है तो इसका मतलब यही है कि हमारी अर्थव्यवस्था भी सेक्सिस्ट है। इसलिए रिपोर्ट में सुझाया गया है कि औरतों की जिंदगी को आसान बनाने के लिए केयर और दूसरी सार्वजनिक सेवाओं में बड़े पैमाने पर निवेश किया जाए। रिपोर्ट का कहना है कि अमीरी-गरीबी के बीच इतनी बड़ी खाई होने के बावजूद सरकारें ऐसी नीतियां बनाने में लगी हैं, जो अमीर को अमीर और गरीब को गरीब बना रही हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और ब्राजील के प्रधानमंत्री जेयर बोलसोनारो अरबपतियों को लगातार टैक्स में छूट दे रहे हैं। जैसा कि यूनिर्वसटिी ऑफ लैनकैस्टर में समाजशास्त्र की प्रोफेसर बेर्वी स्केग्स का कहना है, स्त्रीवादी दावा करते हैं कि महिलाओं ने बाकी की आधी दुनिया का बोझ उठाया हुआ है।   

कई बार यह बात भी उठती है कि केयर वर्क या अनपेड वर्क को श्रम शक्ति में शामिल किया जाए। शायद जिस घर काम को तमाम लोग अनुत्पादक मानते हैं, उनकी सोच का पहिया घूमेगा। फिर औरतों को भी अपने हक समझने का चस्का लग जाएगा। भारत में यह बड़ा काम नेशनल सैंपल सर्वे वाले करना चाहते हैं। उनकी योजना है कि अब जो सर्वे कराए जाएं, उनमें औरतों से पूछा जाए कि अपना समय कैसे बिताती हैं। मतलब खाना पकाने, साफ-सफाई में कुल कितना समय लगता है। देश के श्रम और रोजगार सर्वेक्षणों में अब तक व्यापक रूप से आदमियों के कामों को शामिल किया जाता है। चूंकि बहुत-सी औरतें नौकरियां या दूसरे रोजगार नहीं करतीं इसलिए सर्वेक्षणों में उनके विवरण नहीं मिलते। इससे होगा क्या। औरतों का समय कहां बीतता है, यह जानकर नीतियां तैयार करने में मदद मिल सकती है। जैसे ग्रामीण भारत में कुकिंग गैस देने की नीति के पीछे दावा किया गया था कि इससे औरतों का वह समय बचेगा, जो उन्हें लकड़ियां चुनने में खर्च करना पड़ता है। इस तरह अगर नीति-निर्माताओं को पता चले कि औरतों का समय किन-किन कामों में खर्च होता है तो वे अपने जन कल्याण कार्यक्रमों का लक्ष्य तय कर सकते हैं।
मशहूर चेक फेमिनिस्ट एलिना हैतलिंगर ने विमेन एंड स्टेट सोशलिज्म नाम की किताब में घरेलू श्रम और श्रम शक्ति के पुनरु त्पादन की मार्क्‍सवादी थ्योरी का विश्लेषण किया है। उसमें कहा गया है कि श्रम शक्ति अगर काम करने की क्षमता को कहा जाता है तो उसका पुरु त्पादन भी होता है। मतलब री-प्रोडक्शन। यह री-प्रोडक्शन दो तरह से होता है। पहला तो परिवार के लोगों में श्रम शक्ति बरकरार रहे, इसके लिए सारी तैयारी औरत ही करती है। दूसरा श्रमिकों की नई पीढ़ी को भी जन्म देती है। इस तरह से औरत प्रोडक्शन भी करती है, और री-प्रोडक्शन भी। इसी बात को मान्यता देने की जरूरत है।

माशा


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