राज्य सभा : बहुमत से दूर ही रहेगी भाजपा
लोकसभा में पूर्ण बहुमत के साथ भाजपा जब से सत्ता में आई है तभी से वह उच्च सदन राज्य सभा में बहुमत का आंकड़ा पार करने को बेताब है।
राज्य सभा : बहुमत से दूर ही रहेगी भाजपा |
लेकिन लगातार छह साल की हुकूमत के बावजूद उसकी यह आकांक्षा नये साल 2020 में भी पूरी होती नहीं दिख रही है। राज्य विधानसभाओं का अंकगणित भाजपा के खिलाफ जा रहा है। साल 2018 और 2019 में भाजपा को कुछ राज्यों में हार का सामना करना पड़ा है, जिसका सीधा असर राज्य सभा के चुनाव परिणाम पर पड़ेगा। आंकड़ों से साफ है कि भाजपा अपने सदस्यों की संख्या में इजाफा नहीं कर पाएगी, जिससे राज्य सभा में वह बहुमत से दूर ही रहेगी, जबकि कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों की सदस्य संख्या बढ़ेगी।
इस साल 2020 में राज्य सभा की 73 सीटें खाली होने जा रही है। साल के अंत तक राज्य सभा के 69 सदस्यों का कार्यकाल खत्म हो जाएगा। जिन लोगों का कार्यकाल इस साल खत्म हो रहा है, उसमें 18 भाजपा के और 17 कांग्रेस के सदस्य शामिल हैं। इसके अलावा चार सीटें पहले से ही रिक्त पड़ी हैं। ऐसे में इस साल राज्य सभा की 73 सीटों के लिए चुनाव कराए जाएंगे। सीटवार व राज्यवार आंकलन करें तो इस साल अकेले यूपी से 10 सीटें खाली हो रही हैं।
राज्य में भाजपा की सरकार है, इसलिए यहां ज्यादातर सीटें भाजपा के खाते में जाएंगी, जबकि सबसे ज्यादा नुकसान यहां समाजवादी पार्टी को होगा। वहीं छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखंड और महाराष्ट्र की सत्ता में आने के बाद कांग्रेस को राज्य सभा में अपनी कुछ सीटें बढ़ाने का मौका मिलेगा। इसी साल अप्रैल में रिक्त हो रही 52 सीटों में सर्वाधिक सात महाराष्ट्र से, छह तमिलनाडु, पांच-पांच सीटें पश्चिम बंगाल और बिहार से, चार-चार सीटें गुजरात और आंध्र प्रदेश से तथा तीन-तीन सीटें राजस्थान, ओडिशा और मध्य प्रदेश से शामिल हैं।
इन राज्यों की विधानसभा में दलीय स्थिति को देखते हुए भाजपा, जदयू एवं बीजद को राज्य सभा में अपनी सीटें बरकरार रखने का भरोसा है। इसके इतर हरियाणा से खाली हो रही दोनों सीटों पर भी भाजपा की नजर है। विधानसभा में बहुमत को देखते हुए भाजपा, कांग्रेस की कुमारी सैलजा की रिक्त हो रही सीट अपनी झोली में लेने की कोशिश करेगी। इसी तरह पश्चिम बंगाल विधानसभा में तृणमूल कांग्रेस का बहुमत होने के कारण पार्टी को राज्य सभा में रिक्त हो रही अपनी चारों सीटें बरकरार रखने का भरोसा है। जबकि भाजपा, निर्दलीय सदस्य रीताब्रता बनर्जी की सीट वामदलों के पास जाने से रोकने की कोशिश करेगी। तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक को खाली हो रही अपनी चार और द्रमुक को एक सीट पर कब्जा बरकरार रखने का भरोसा है। दोनों दलों की नजर माकपा की रिक्त हो रही एक सीट पर टिकी होगी।
भाजपा को महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद राज्य की सत्ता से बाहर रहने के कारण राज्य सभा के चुनाव में झटका झेलना पड़ेगा। महाराष्ट्र की इस साल रिक्त हो रही सात सीटों में राजग के घटक दल आरपीआई के रामदास अठावले और अब विरोधी खेमे में शामिल शिवसेना की एक सीट (राजकुमार धूत) शामिल है। भाजपा की नजर राकांपा की रिक्त हो रही दो सीट (शरद पवार और माजिद मेमन) तथा कांग्रेस की एक सीट (हुसैन दलवई) पर थी लेकिन अब इन सीटों को अपने पाले में करने की राजग को उम्मीद नहीं है। इस बीच बिहार से खाली हो रही पांचों सीट जद (यू)-भाजपा (हरिवंश, कहकशां परवीन, रामनाथ ठाकुर और सीपी ठाकुर एवं आर के सिन्हा) के पास ही रहने की उम्मीद है। जबकि झारखंड चुनाव हारने के बाद भाजपा को राज्य से सदस्य राजद के प्रेमचंद गुप्ता और निर्दलीय परिमल नाथवानी की सीट अपने पाले में करने की उम्मीद खत्म हो गई है। वहीं आंध्र प्रदेश में भी कांग्रेस को अपनी रिक्त हो रही दो सीट (सुब्बीरामी रेड्डी और मोहम्मद अली खान) तथा तेदेपा को एक सीट बचाने का संकट होगा।
पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में वाईएसआर कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिलने के बाद इन सीटों पर सत्तारूढ़ दल का स्वाभाविक दावा होगा। तेदेपा के छह में से चार सदस्यों ने लोक सभा चुनाव के बाद ही भाजपा का दामन थाम लिया था। उच्च सदन में बहुमत की ओर बढ़ने के क्रम में भाजपा हिमाचल प्रदेश, मेघालय और मिजोरम की रिक्त हो रही एक एक सीट पर भी नजर रखे हुए है। इस समय भाजपा के राज्य सभा में 83, और कांग्रेस के 46 सदस्य हैं। समीकरण के हिसाब से राज्य सभा में भाजपा की संख्या 83 के आसपास बनी रहेगी और सदन में बहुमत की उसकी आस फिलहाल पूरी नहीं हो पाएगी। बहुमत के लिए 123 सीटें चाहिए जो अपने सहयोगी दलों के सहयोग के बावजूद पूरी होती नहीं दिख रही है।
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