मुद्दा : घोषणापत्रों में हो जनभागीदारी

Last Updated 22 Jan 2020 02:54:58 AM IST

लोकतांत्रिक पिरामिड को सही कोण पर खड़ा करने के पांच सूत्र हैं: लोक-उम्मीदवार, लोक-घोषणापत्र, लोक-अंकेक्षण, लोक-निगरानी और लोक-अनुशासन।


मुद्दा : घोषणापत्रों में हो जनभागीदारी

लोक-घोषणापत्र का सही मतलब है, लोगों  की नीतिगत तथा कार्य संबंधी जरूरत व सपने की पूर्ति के लिए स्वयं लोगों द्वारा तैयार किया गया दस्तावेज। प्रत्येक ग्रामसभा व नगरीय वार्ड सभाओं को चाहिए कि मौजूद संसाधन, सरकारी-गैर-सरकारी सहयोग, आवंटित राशि तथा जन-जरूरत के मुताबिक अपने इलाके के लिए अगले पांच साल के सपने का नियोजन करे। 
इसे लोकसभावार, विधानसभावार, मोहल्लावार व मुद्देवार तैयार करने का विकल्प खुला रखना चाहिए। इसमें हर वर्ष सुधार करने का विकल्प भी खोलकर रखना अच्छा होगा। इस लोक एजेंडे या लोक नियोजन दस्तावेज को लोक-घोषणापत्र का नाम दिया जा सकता है। इस लोक-घोषणापत्र को किसी बैनर या फलेक्स पर छपवा कर अथवा सार्वजनिक मीटिंग स्थलों की दीवार पर लिखकर चुनाव प्रचार के लिए आने वाले चुनावी उम्मीदवारों के समक्ष पेश किया जा सकता है। उनसे उसकी पूर्ति के लिए संकल्प पत्र/शपथ पत्र लिया जा सकता है। इससे उम्मीदवार के चयन में सुविधा होगी और पालन करने के लिए उम्मीदवार के सामने अगले पांच साल एक दिशा-निर्देश भी होगा। जल घोषणा पत्र, पर्यावरण घोषणा पत्र, उत्तराखण्ड जन घोषणा पत्र-नागरिक संगठन स्तर पर ऐसे प्रयास होते रहे हैं किंतु आदर्श स्थिति हासिल करने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।

फिलहाल, चर्चा करें कि दिल्ली के इस चुनाव में पार्टी घोषणा पत्र बनाने में एक बार फिर से जनता की राय मांगी जा रही है। हमें इस रायशुमारी को सुअवसर मानना चाहिए; पार्टी घोषणा पत्र से लोक घोषणा पत्र की ओर बढ़ने की एक छोटी-सी खिड़की मान स्वागत करना चाहिए। इसमें खुद पहल कर पार्टियों और अपने विधानसभा क्षेत्र के उम्मीदवार तक अपनी राय पहुंचानी चाहिए। मेरी राय है कि विधानसभा का चुनाव है; अत: विधायी कार्य संबंधी ‘दिल्ली नीति घोषणा पत्र’ बने। यह पूरी दिल्ली के स्तर पर बने। 70 विधानसभाओं की विकास संबंधी इलाकाई जरूरतें और परिस्थितियां विविध हैं। जाहिर है कि प्रत्येक विधानसभा का विकास संबंधी रोडमैप भी अलग-अलग ही होना चाहिए। अत: उम्मीदवारों को चाहिए कि वे मोहल्ला निवासी समितियों का आह्वान करें; अपने प्रचार का पहला सप्ताह विधानसभा स्तरीय घोषणा पत्र बनवाने और उसके प्रति अपना संकल्प बताने में लगाएं। इन घोषणा पत्रों को जमीन पर उतारने के लिए नीतिगत आवश्यकता होगी कि दिल्ली नियोजन क्रियान्वयन एवं निगरानी समिति का गठन हो। इसके तहत केंद्र, राज्य, स्थानीय नगर व गांव अर्थात चार स्तरीय उपसमितियां हों। चार स्तरीय समितियों में आपसी तालमेल व पारदर्शिता की सर्वश्रेष्ठ व्यवस्था बने। चुनाव बाद के पांच साल के दौरान विकास संबंधी घोषणापत्र को पूरा करने में लोग सहयोगी भी बने और विधायक द्वारा असहयोग करने पर बाध्य करने वाले भी; इसके लिए जन-निगरानी प्रणाली विकसित की जाए। लोक-प्रतिनिधियों के बजट से क्रियान्वित होने वाले कार्यों का लोक अंकेक्षण यानी ‘पब्लिक-ऑडिट’ अनिवार्य हो। ऑडिट सिर्फ  वित्तीय नहीं, कैग के नये विविध सूचकांकों के आधार पर हो।
ऐसे प्रावधानों को विधिसम्मत बनाने के लिए पार्टियां, इन्हें विधान का हिस्सा बनाने की घोषणा करें। लाभ यह होगा कि पांच साल पूरे होने पर लोक-अंकेक्षण समूह की रिपोर्ट खुद-ब-खुद इस बात का आइना होगी कि निवर्तमान प्रत्याशी उसमें अपना चेहरा देख सके; जान सके कि अगली बार वह चुनाव लङ़ने लायक है, या नहीं। इस आधार पर पार्टियां अपना उम्मीदवार तय कर सकेंगी और लोग भी कि उस प्रतिनिधि को अगली बार चुना जाए या दरकिनार कर दिया जाए। पांच सालों का लेखा-जोखा, अगले पंचवर्षीय कार्यों का नियोजन व तद्नुसार लोक-घोषणा पत्र निर्माण में भी बराबर का मददगार सिद्ध होगा। इसी दिशा में एक अन्य महत्त्वपूर्ण नीतिगत तथ्य है कि भारत के सभी राज्यों में गांवों में संवैधानिक स्तर पर गठित ग्राम सभा, ग्राम पंचायत और न्याय पंचायत है; विधानसभा के साथ केंद्र शासित क्षेत्र वाली दिल्ली की तर्ज में नवगठित राज्य जम्मू-कश्मीर में भी। दिल्ली के गांवों के पास क्या है? नये राजस्व रिकॉर्ड के मुताबिक, दिल्ली में 357 गांव हैं। क्या स्वराज का सपना दिखाने वालों को दिल्ली में ग्राम स्वराज का सर्वश्रेष्ठ ढांचा बनाने की पहल नहीं करनी चाहिए?

अरुण तिवारी


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