कमिश्नर-प्रणाली : चौकस होगी विधि-व्यवस्था

Last Updated 21 Jan 2020 12:43:14 AM IST

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ व आर्थिक राजधानी नोएडा (गौतमबुद्धनगर) में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू कर दी गई है।


कमिश्नर-प्रणाली : चौकस होगी विधि-व्यवस्था

यह उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के कुशल नेतृत्व में जनहित में उठाया गया उपयुक्त  कदम है, जिसकी आवश्यकता प्रदेश को दशकों से थी। कई बार इसकी घोषणा हुई, यहां तक की कानपुर के लिए पुलिस कमिश्नर का चयन भी सत्तर के दशक में कर लिया गया मगर एक सशक्त लॉबी के दबाव में प्रदेश सरकार ने हर बार कदम पीछे खींच लिये। हालांकि योगी सरकार के इस निर्णय की हर जगह प्रशंसा हो रही है। दरअसल, यह कानून-व्यवस्था के क्षेत्र में उठाया गया एक साहसिक कदम है।

1861 के पुलिस एक्ट के दायरे से बाहर निकलकर स्मार्ट पुलिसिंग की दिशा में एक बेहतरीन कदम है। यह प्रणाली देश के 71 महानगरों में पहले से ही सफलतापूर्वक कार्य कर रही है। उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यपाल राम नाइक ने भी इसकी अनुशंसा कई बार की क्योंकि उन्होंने मुंबई में भी इसकी सफलता को नजदीक से देखा था। मुंबई में किस तरह वहां अंडर्वल्ड की कमर पुलिस आयुक्त प्रणाली के तहत तोड़ी गई, वह सर्वविदित है। विभिन्न पुलिस आयोगों ने बारहां कहा है कि जहां भी शहरीकरण हो रहा हो व शहर की आबादी 10 लाख से ऊपर हो, वहां पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू की जाए।

साल 1977 में ‘धर्मवीर कमीशन’ ने आपातकाल के बाद जनता पार्टी की सरकार में अपनी रिपोर्ट दी थी, जिसमें महानगरों में बेहतर पुलिस व्यवस्था के लिए पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करने की संस्तुति की थी। तब यह लागू नहीं की जा सकी थी। अभी भी देश में कुछ राज्य ऐसे हैं, जहां पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू नहीं जा सकी है। इसके तहत पुलिस को ही मजिस्ट्रेट का अधिकार दिया जाता है, जो कानून-व्यवस्था के हित में है। कई बार  जानमाल की हानि रोकने के लिए मौके पर त्वरित निर्णय लेने की जरूरत होती है। लेकिन पर्याप्त शक्तियों के अभाव में कानून-व्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। फिर पुलिस व मजिस्ट्रेट के बीच तालमेल बैठाना एक दुरुह कार्य होता है।

अलबत्ता, पुलिस की जवाबदेही तय करने के साथ ही शक्तियां प्रदान की जानी चाहिए। पुलिस की कार्यप्रणाली मुख्यत: निरोधात्मक होनी चाहिए, जिसमें अपराधों को घटित होने से रोका जा सके। 151 सीआरपीसी के तहत कार्रवाई 107/116/116(3) सीआरपीसी के तहत निरुद्ध करने की कार्रवाई,144 का लगाया जाना, 109/110/गुंडा एक्ट के तहत नेकचलनी के लिए पाबंद करना, गैंगस्टर एक्ट के तहत अपराधियों पर कार्रवाई/रासुका में निरुद्ध करना आवश्यक होता है।

अभी तक ये अधिकार मजिस्ट्रेट को थे, जो अब पुलिस को दे दिए गए हैं। इस व्यवस्था के दूरगामी परिणाम होंगे व कानून-व्यवस्था, अपराध नियंत्रण में अत्यंत सहायक सिद्ध होंगे। कानून-व्यवस्था की स्थितियों में ये कार्रवाई पुलिस ही करती थी परंतु उसको मजिस्ट्रेट के आदेश की प्रतीक्षा रहती थी तथा तभी बल प्रयोग वैधानिक होता था। लाठीचार्ज, टीयर गैस का छोड़ा जाना, रबड़ बुलेट का प्रयोग, फायरिंग के आदेश प्राप्त होने पर ही पुलिस से अपेक्षा होती थी कि पुलिस कार्रवाई करेगी। मजिस्ट्रेट के अन्य कार्यों में व्यस्त रहने या अवकाश पर रहने की स्थिति में इनमें अनावश्यक विलंब होता था जो कभी-कभी घातक सिद्ध होता था।

यूरोप, अमेरिका इत्यादि देशों में पुलिस खुद अपने विवेक से निर्णय लेती है व उसके लिए उत्तरदायी होती है। कमिश्नर प्रणाली में जुलूसों की अनुमति/जुलूस के मार्ग का निर्धारण/जनसभाओं व सांस्कृतिक कार्यक्रमों की अनुमति अब सीधे पुलिस देगी। इसके लिए मजिस्ट्रेट के आदेश की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी। पब्लिक को भी एक कार्यालय से दूसरे कार्यालय भटकना नहीं पड़ेगा तथा अब व्यवस्था सुगम कर दी गई है। मजिस्ट्रेट अब अपना कार्य समय से संपन्न कर सकेंगे। राजस्व विवादों/भूमि विवादों का निस्तारण उनकी प्राथमिकता होगा तथा इसका लाभ भी पुलिस को कानून-व्यवस्था बनाए रखने में मिलेगा। थाना दिवस, तहसील दिवस में अधिकांशत: प्रकरण भूमि विवाद के ही आते हैं, जिनसे फौजदारी मामले दर्ज होते हैं। मजिस्ट्रेट अब तहसीलों के कार्य में रुचि ले सकेंगे, जिससे जनता को सीधा लाभ मिलेगा व अब उनकी उपलब्धता अपने कार्यालयों/न्यायालयों में बढ़ जाएगी।

वर्तमान व्यवस्था में दोनों नगरों में बड़ी संख्या में आईपीएस अधिकारी अपनी सेवा देंगे, जबकि पूर्व व्यवस्था में मात्र वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ही आईपीएस होते थे। पब्लिक सिविल पुलिस से ही पहचान करती है व नई प्रणाली के तहत करीब दर्जन भर अधिकारी एक-एक महानगर को देखेंगे। इसके लिए प्रदेश की राजधानी लखनऊ व आर्थिक राजधानी नोएडा का चयन सर्वथा उपयुक्त है। यह एक संदेश दे रहा है। बड़ी संख्या में अधिकारी जो विभिन्न शाखाओं में कार्य के अभाव में कुंठित रहते थे, अब अपराध नियंत्रण में अपना योगदान देंगे व उनकी सेवाओं का लाभ लोगों को मिल सकेगा।

महिला अपराधों की रोकथाम की दिशा में भी बहुत ही सकारात्मक पहल की गई है तथा डीसीपी स्तर की महिला अधिकारी व एडिशनल डीसीपी स्तर की भी अधिकारी इससे निपटेंगी। यह समय की मांग थी। निर्भया फंड का सदुपयोग कर सीसीटीवी लगेंगे, जो महिलाओं/बच्चियों को सुरक्षित रखने में कारगर होंगे। दोनों महानगरों में आर्थिक निवेश को बल मिलेगा तथा पुलिस कर्मचारियों की संख्या भी बढ़ाई जाएगी। नोएडा में बड़ी संख्या में उद्यमी आकर निवेश करना चाहते हैं। पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू होने से वहां इसके लिए उचित वातावरण बनेगा, आमजन में सुरक्षा की भावना सृदृढ़ होगी और भारी निवेश होगा।

कमिश्नर प्रणाली के रिव्यू के बाद यह उम्मीद की जाती है कि इसे प्रदेश के बाकी बड़े महानगरों में लागू किया जाएगा ताकि राज्य की बड़ी संख्या में लोग स्मार्ट पुलिसिंग की परिधि में आएं और उनको पुलिस द्वारा प्रदत्त सेवाएं तत्काल एवं समयानुसार उपलब्ध हों। उत्तर प्रदेश में निवेशकों की संख्या में इजाफा हो और रोजगार के रास्ते भी खुलें। जाहिर है, उत्तर प्रदेश पुलिस के सामने अब इन दो महानगरों में बड़ी चुनौती होगी। अपराध नियंत्रण की दिशा में ईमानदारी व नेकनीयत के साथ कठोर कदम उठाने होंगे। इसमें सफलता मिलती है तो शीघ्र ही कमिश्नर प्रणाली वाराणसी, आगरा, गाजियाबाद, कानपुर और गोरखपुर में भी लागू की जाएगी।

ए.के. जैन
उप्र के पूर्व डीजीपी


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment