ईरान-अमेरिका तनाव : तनाव कहां जाएगा?

Last Updated 08 Jan 2020 06:09:48 AM IST

जिसकी आशंका थी वह छोटे स्तर पर ही सही दिखने लगा है। अमेरिका द्वारा कासिम सुलेमानी को मारे जाने के अगले दिन इराक की राजधानी बगदाद में अमेरिकी दूतावास और बलाद एयर बेस पर देर रात अमेरिकी ठिकानों पर रॉकेट और मोर्टार हमले हुए।


ईरान-अमेरिका तनाव : तनाव कहां जाएगा?

माना जा रहा है कि ईरान समर्थक मिलिशिया ने हमले किए। इराक के कतइब हिज्बुल्ला ने देश के सुरक्षा बलों को चेतावनी दी है कि अमेरिकी ठिकानों से 1000 मीटर दूर चले जाएं।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रॉकेट हमले के बाद चेतावनी दी कि अमेरिकी लोगों और ठिकानों पर हमला करने वालों या इसका इरादा रखने वालों को ढूंढकर उनका खात्मा किया जाएगा। मैं ईरान को चेताना चाहता हूं कि उसने किसी अमेरिकी या अमेरिकी ठिकाने पर हमला किया तो हमने ईरान के 52 लक्ष्यों की पहचान की है (ईरान द्वारा बंधक बनाए गए 52 अमेरिकी बंदियों की याद में)। ट्रंप ने कहा कि इन 52 ईरानी ठिकानों में कई उच्च स्तर के हैं। अमेरिका ने यह भी ऐलान किया कि सुलेमानी को मारने का आदेश सीधे ट्रंप ने ही दिया था। इससे अमेरिका की राष्ट्रवादी भावनाओं को जोड़ने की रणनीति ट्रंप प्रशासन ने अपनाया है। अगले वर्ष राष्ट्रपति चुनाव को देखते हुए इसका महत्त्व है। हालांकि ईरानी सेना के वरिष्ठ कमांडर बिग्रेडियर जनरल अबूल फैजल का बयान आया है कि हम अमेरिकी कार्रवाई पर जोरदार पलटवार करेंगे। यह ईरान का अधिकृत रु ख है लेकिन यह मिलिशिया पर लागू नहीं होता। ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खमनेई द्वारा घोषणा-उनका देश सुलेमानी की हत्या का बदला लेगा-के बाद कोम में मस्जिद-ए-जमकरान पर लाल झंडा फहरा दिया गया है, जो युद्ध का प्रतीक माना जाता है।

ईरानी रक्षा मंत्री आमिर हतामी ने कहा कि ईरान मेजर जनरल सुलेमानी की हत्या का मुकम्मल बदला लेगा। सुलेमानी की बेटी के साथ राष्ट्रपति हसन रु हानी की बातचीत का जो वीडियो सामने आया है, उसमें वो पूछ रही है कि मेरे पिता की हत्या का बदला अब कौन लेगा? रुहानी कहते हैं कि लिया जाएगा। वास्तव में अमेरिका भले सुलेमानी को आतंकवादी कहकर उनकी हत्या को सही ठहराए लेकिन ईरान और उसके समर्थक इसे स्वीकार नहीं कर सकते। अमेरिका का कहना है कि सुलेमानी लगातार अमेरिकी राजनयिकों और सेना पर हमले की योजना बना रहे थे। सुलेमानी को अमेरिका में शीर्ष स्तर पर दूसरे स्थान पर माना जाता था। ईरान की इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी सेना की ताकतवर विंग कुद्स फोर्स, जो विदेश विभाग देखता है, के मुखिया थे। यह विंग पश्चिम एशिया में कार्रवाई को अंजाम देता है। बगदाद को इस्लामिक स्टेट के आतंक से बचाने के लिए उनके ही नेतृत्व में इराक में ईरान समर्थक फोर्स का गठन हुआ था, जिसका नाम पॉप्युलर मोबिलाइजेशन फोर्स था। इराक और सीरिया में इस्लामिक स्टेट के मुकाबले उन्होंने कुर्द लड़ाकों और शिया मिलिशिया को एकजुट करने का काम किया था। यमन, इराक, सीरिया और लेबनॉन में ईरानी और शिया समुदाय के हितों से जुड़े सभी अभियानों में उनकी अग्रणी भूमिका थी। इस कारण वे पूरे पश्चिम एशिया में महत्त्वपूर्ण हस्ती बन गए थे। अमेरिका की नजर में कुद्स फोर्स आतंकवादी संगठन है। उसने 2007 से ही इसे प्रतिबंधित किया हुआ है।
लेबनॉन के हथियारबंद संगठन हिज्बुल्लाह और फिलीस्तीन में आतंकवादी संगठन हमास को सुलेमानी का समर्थन प्राप्त था। 2011 में जब सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल-असद के शासन के खिलाफ विद्रोह शुरू हुआ तो सबसे पहले उन्हें सुलेमानी का ही साथ मिला था। सुलेमानी इराक और सीरिया में अमेरिकी दखल के खिलाफ थे। प्रश्न है कि उनकी हत्या के बाद होगा क्या? ट्रंप ने यह भी कहा है कि सुलेमानी की हत्या ईरान के साथ विवाद बढ़ाने के लिए नहीं की गई है। यह कार्रवाई एक युद्ध को खत्म करने के लिए की है ना कि एक युद्ध शुरू करने के लिए..। किंतु साथ ही यह भी कहा है कि इस्लामिक देश ने कोई जवाबी कार्रवाई की तो अमेरिका इससे निपटने के लिए तैयार है। तत्काल औपचारिक रूप से ईरान बिना तैयारी के कोई कार्रवाई नहीं करेगा। सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों में भी हमला हो सकता है। फलस्तीनी क्षेत्र से इजरायल पर हमले बढ़ सकते हैं। ईरान के सामने कई विकल्प हैं। मसलन, बगदाद में अमेरिकी दूतावास पर हमला कर उसे कब्जे में लेने की कोशिश, इराक के अमेरिकी ठिकाने पर हमले और देश भर में अमेरिकी सैनिकों से भिड़ना, यमन की सीमा के नजदीक सऊदी अरब के दक्षिण में हालिया तैनात अमेरिकी टुकड़ियों पर रॉकेट से हमले तथा सुलेमानी के समकक्ष किसी अमेरिकी अधिकारी की हत्या आदि। इराक में कताइब हिज्बुल्लाह बदले की तैयारी में है। इराक में यह संगठन अमेरिकी सैन्य ठिकानों को निशाना बनाता रहा है।
2009 में अमेरिका ने कताइब हिज्बुल्लाह को आतंकवादी संगठन तथा अबु महदी और अल अल मुहांदिस को वैश्विक आंतकवादी घोषित किया था। अमेरिकी का यह कहना भी सही है कि कताइब हिज्बुल्लाह का संबंध ईरान के इस्लामिक रिवॉल्युशन गार्ड कोर यानी कुद्स फोर्स से है। अभी अमेरिका और इराक के संबंध नाजुक मुहाने पर हैं। इराक के शिया चरमपंथी समूहों से ईरान के सीधे संबंध हैं। इसी कारण इराक में एक बड़ा तबका अमेरिका का घोर विरोधी है। एक समय ईरान एवं इराक के संबंध भले खराब थे लेकिन सद्दाम हुसैन के जाने के बाद शिया बहुल सरकार आते ही स्थिति बदल गई। आज इराक की शिया सरकार के ईरान से अत्यंत नजदीकी रिश्ते हैं। इराक में विभिन्न मुद्दों को लेकर महीनों से प्रदशर्न हो रहे हैं। प्रधानमंत्री आदिल अब्दुल महदी को सामान्य स्थिति में इस्तीफा नहीं देना पड़ा है। हो सकता है कि वहां की संसद ही अब अमेरिका के चले जाने का प्रस्ताव पारित कर दे। इनका असर भारत पर क्या पड़ेगा? इस बारे में निश्चित भविष्यवाणी कठिन है। सब कुछ परिस्थितियां पर निर्भर करेगा।
सुन्नी बहुल सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात के साथ बेहतरीन रिश्ते मोदी ने बनाए तो ईरान, कतर और बहरीन के साथ भी रिश्ते मजबूत हुए हैं। सऊदी और संयुक्त अरब जैसे देश अमेरिका के साथ हैं, तो ईरान के साथ कतर आदि अमेरिका के विरोध में हैं। कतर सऊदी के भी खिलाफ है। भारत के अमेरिका से भी संबंध गहरे हैं। खाड़ी देश हमारे सबसे बड़े तेल आपूर्तिकर्ता हैं। जिस तरह सुलेमानी की हत्या के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के दामों में हल्का इजाफा हुआ है, वह इस बात का संकेत है कि तनाव बढ़ा तो यह और ऊपर जा सकता है। इसका हमारी अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा।  समय के अनुसार भारत अपना रुख तय करेगा किंतु कहना मुश्किल है कि इसका कोई असर नहीं होगा। हालांकि यह स्थिति अकेले भारत के साथ तो होगी नहीं।

अवधेश कुमार


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