कुपोषण : संजीदगी दिखानी होगी
हाल ही में कैम्ब्रिज और हॉर्वड विश्वविद्यालय की टीमों ने भारत में जिला स्तर पर कुपोषण की स्थिति पर अध्ययन किया है।
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शोधकर्ताओं ने नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 के आंकड़ों का अध्ययन कर बताया कि भारत में कुपोषण की दर में कमी आई है। वहीं, शोधकर्ताओं ने आगाह किया कि घटने की इस दर की गति बेहद धीमी है। शोधकर्ताओं ने बच्चों में कुपोषण की दर में कमी का श्रेय भारत सरकार के राष्ट्रीय पोषण मिशन को दिया है। दूसरी ओर, नीति आयोग की हालिया रिपोर्ट का दावा है कि भारत के केवल सात राज्य ही सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। वहीं, पिछले साल जारी वैश्विक भुखमरी सूचकांक में दुनिया के 117 देशों में भारत 102वें पायदान पर रहा। रिपोर्ट की मानें तो भारत में भूख की स्थिति भयावह है। कुल मिलाकर बात यह है कि भारत को कुपोषण से निजात पाने के लिए अभी और लंबी लड़ाई लड़ने की जरूरत है।
दरअसल, भारत में भुखमरी के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं। मसलन, पोषण कार्यक्रमों का उचित क्रियान्वयन न होना, हमारी सरकारों द्वारा गरीबी और बेरोजगारी की उपेक्षा करना, मनरेगा जैसे सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों में भ्रष्टाचार इत्यादि। इसके अलावा, गोदामों में रखा पांच करोड़ टन अनाज हर साल बिना गरीबों तक पहुंचे सड़ जाता है, लेकिन जरूरतमंदों को नसीब नहीं हो पाता। कहने की जरूरत नहीं कि कुपोषण की समस्या कोई नई नहीं है, और लंबे समय से देश के बच्चे पोषणयुक्त भोजन से वंचित रहे हैं। इसका कारण सीधे तौर पर इनकी गरीबी से जुड़ता है, क्योंकि देश के कई राज्यों की प्रति व्यक्ति आय निम्न है। लेकिन इन सबसे भी ज्यादा अहम यह है कि भारत में भुखमरी भोजन की कमी की वजह से नहीं, बल्कि फल, सब्जियों और भोजन की बर्बादी की वजह से है।
पिछले सात दशकों में कृषि उत्पादन में 6 गुना इजाफा हुआ है। लेकिन 40 फीसदी फल एवं सब्जियों और 30 फीसदी अनाज की बर्बादी से करोड़ों लोग भूखे रह जाते हैं। फिर बड़े शहरों में पके हुए खाने की बर्बादी भी आम बात है। एक रिपोर्ट का दावा है कि भारत में रोजाना 244 करोड़ रु पये का खाना बर्बाद हो जाता है, और लगभग उन्नीस करोड़ लोग भूखे पेट सोते हैं।
ऐसे में सवाल है कि क्या कुछ किए जाने की जरूरत है? सबसे पहले तो सरकार को जरूरतमंदों के प्रति निष्क्रिय होने के बजाय प्रक्रियाओं को सुलभ बनाना होगा ताकि गरीबों तक अनाज आसानी से पहुंच सके। गरीबों तक अनाज न पहुंचा कर गोदामों में रख कर सड़ाना यकीनन चिंताजनक है। फलों और अनाजों को बर्बाद होने से बचाना होगा। इसके लिए खेतों के नजदीक ही विक्रय सेंटर खोलने होंगे। समझना होगा कि लंबी दूरी तक परिवहन के कारण ही फल और सब्जियों की बर्बादी होती है। उनका बेहतर तरीके से रखरखाव नहीं हो पाता। फिर खाने की बर्बादी को रोकने के लिए हर छोटे-बड़े शहर में ‘रोटी बैंक’ स्थापित करने की जरूरत है ताकि जरूरतमंदों तक बचे भोजन को पहुंचाया जा सके। आईसीडीएस (पोषण), पीडीएस (आहार), मनरेगा (रोजगार) आदि योजनाओं के उचित क्रियान्वयन की आवश्यकता है। समझना होगा कि कुपोषण जटिल समस्या है, और इसका सीधा संबंध कुपोषित बच्चों के परिवारों की आजीविका से भी है। जब तक गरीब परिवारों के पास आजीविका का कोई साधन नहीं है तब तक कुपोषण मिटाना नामुमकिन है। लिहाजा, कुपोषण की पहचान वाले परिवारों को जन-वितरण प्रणाली एवं मनरेगा के तहत सामाजिक सुरक्षा मुहैया कराने की जरूरत है।
पोषण पुनर्वास केंद्रों एवं स्वास्थ्य केंद्रों में उपयुक्त उपकरण एवं पर्याप्त संख्या में बेड का प्रबंध करना जरूरी है ताकि कोटा के अस्पताल में बच्चों की दुखद मृत्यु की हालिया घटना की पुनरावृत्ति न हो सके। इससे इतर, दुनिया के दूसरे देशों के तरीकों को भी अपनाया जा सकता है। इथोपिया गंभीर कुपोषण वाला देश होने के बावजूद ‘काम के बदले भोजन’ कार्यक्रम के तहत कुपोषण को काफी हद तक कम करने में कामयाब हुआ है। पड़ोसी देश बांग्लादेश में मूंगफली, चने और केले से तैयार किए गए आहार की सहायता से कुपोषण को कम करने की मुहिम जारी है। इस आहार से आंतों में रहने वाले लाभदायक जीवाणुओं की हालत में सुधार होता है, जिससे बच्चों की हड्डियों, दिमाग और पूरे शरीर के विकास में मदद मिलती है। बहरहाल, भुखमरी को खत्म करने के लिए हमारी सरकारों को भी संजीदा होना होगा अन्यथा इन मासूमों की पुकार सरकार के खोखले दावों और नारों में दबकर रह जाएगी।
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