वैश्विकी : नया बनेगा ब्रिटेन !

Last Updated 15 Dec 2019 03:07:54 AM IST

ब्रिटेन के चुनाव में वैसे तो सबसे बड़ा मुद्दा यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के अलग होने (ब्रेक्जिट) का था। लेकिन कुछ विश्लेषकों ने इस पर भारतीय राजनीति की छाया देखते हुए इसे ‘कश्मीर चुनाव’ की संज्ञा दी है।




वैश्विकी : नया बनेगा ब्रिटेन !

इसका कारण यह है कि कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने और भारतीय संसद में नागरिक संशोधन विधेयक पारित होने की गूंज ब्रिटेन में भी सुनाई दी। ब्रिटेन में भारतीय उपमहाद्वीप के देशों भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के लोगों की काफी संख्या है। मोदी सरकार द्वारा कश्मीर पर उठाए गए कदमों का ब्रिटिश मुस्लिम समुदाय ने व्यापक विरोध किया। पाक प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपनी एजेंसियों के जरिए वहां भारत विरोधी भावनाएं भड़काई। पहले से सक्रिय कश्मीरी अलगाववादी और खालिस्तानी तत्वों ने भारतीय उच्चायोग पर विरोध प्रदर्शन किया जिसमें हिंसा और तोड़फोड़ भी हुई। भारतीय उपमहाद्वीप की राजनीति का असर दिखाई दिया। उस घटनाक्रम ने इस क्षेत्र के साथ अन्य मतदाताओं पर भी असर डाला।

ब्रिटेन के भारतीय मतदाता आम तौर पर वामपंथी रुझान वाली लेबर पार्टी के समर्थक माने जाते हैं, लेकिन कश्मीर संबंधी घटनाक्रम के कारण इन मतदाताओं का झुकाव कंजरवेटिव पार्टी की ओर हो गया। अनेक सीटों पर इंडियन वोटर्स की भूमिका निर्णायक सिद्ध हुई और इसका फायदा बोरिस जॉनसन को हुआ। कश्मीर मुद्दे ने ब्रिटेन में मुस्लिम समुदाय के बारे में व्याप्त विरोध की भावना को भी और मजबूत किया। बोरिस जॉनसन मुस्लिम समुदाय और उनकी तहजीब पर पहले ही आपत्तिजनक टिप्पणियां कर चुके हैं। उन्होंने बुर्काधारी मुस्लिम महिलाओं को लेटरबॉक्स की संज्ञा देकर उपहास उड़ाया था। वास्तव में ब्रिटेन में यह धारणा मजबूत हो रही है कि वहां रहने वाला मुस्लिम समुदाय राष्ट्रीय मुख्यधारा में शामिल होने की बजाय अपना पृथक अस्तित्व और पहचान बनाए हुए है। मुस्लिम धार्मिक नेताओं का रूढ़िवादी मजहबी नेतृत्व ब्रिटेन में शरियत कानून बनाने लगा है।

देश में कई नगर और आवासीय इलाके  ऐसे हैं, जहां लाहौर और ढाका जैसा नजारा देखने को मिलता है। हाल के वर्षों में ब्रिटेन में कोई बड़ी आतंकी वारदात नहीं हुई है, लेकिन छिटपुट जेहादी वारदात हुई हैं। इसके बावजूद जनता का एक बड़ा वर्ग आगामी दशकों में होने वाले धार्मिक-सांस्कृतिक बदलावों को लेकर चिंतित है। मुस्लिम समुदाय के बारे में इस खराब छवि का असर चुनाव परिणामों पर भी पड़ा। वोट के पूर्व जॉनसन ने ‘हिंदू कार्ड’खेला और अपनी जीवन साथी कैरी साइमंड्स के साथ मंदिरों में गए। उनका संदेश था कि जिस तरह हिंदू समुदाय मजहबी असहिष्णुता व उत्पीड़न का शिकार बना है,वैसा ही ब्रिटेन के लोगों के साथ हो सकता है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप भी जॉनसन की तरह इस्लामोफोबिया की बात करते हैं। लिहाजा, कुछ बुद्धिजीवियों ने बोरिस की जीत को मजहबी अल्पसंख्यकों के लिए काला दिन बताया है।

जॉनसन की जीत का तात्कालिक परिणाम यह होगा कि ब्रिटेन करीब पचास वर्षों से चले आ रहे यूरोपीय संघ से संबंध तोड़ लेगा। ब्रेक्जिट के बाद ब्रिटेन में यूरोपीय देशों से आने-जाने वाले लोगों पर नजर रखी जाएगी। और उन्हें नियंत्रित किया जाएगा। इसका सबसे बड़ा असर मुस्लिम समुदाय के लोगों पर होगा। आने वाले दिनों में हो सकता है कि सरकार मुस्लिम धार्मिक एवं शैक्षणिक संस्थाओं के बारे में नये नियम बनाए तथा कट्टरवादी मजहबी नेताओं के पल्राप को रोकने के लिए नये नियम बनाए। इस बदलाव का एक असर देश की एकता पर भी पड़ेगा। संयुक्त ब्रिटेन की एक इकाई स्कॉटलैंड में पृथक देश की मांग काफी वर्षों से चल रही है। मुख्यधारा की राजनीति के मजबूत होने के कारण इस पृथकतावाद पर रोक लगी हुई थी। अब यह रोक उतनी प्रभावशाली नहीं होगी। स्कॉटलैंड में राष्ट्रवादी स्कॉटिश नेशनलिस्ट पार्टी को जबरदस्त सफलता मिली है। यह हो सकता है कि यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के अलग होने के साथ ही स्कॉटलैंड  संयुक्त ब्रिटेन से अलग हो जाए।

ब्रिटेन का संविधान अलिखित है, और वहां  प्रधानमंत्री को असाधारण अधिकार हासिल हैं। अमेरिका और अन्य यूरोपीय देशों की तरह वहां प्रधानमंत्री और सत्ताधारी दल को काबू में रखने के लिए पर्याप्त नियंत्रणकारी व्यवस्था नहीं है। बोरिस अनुमान से परे ऐसे बहुत से कदम उठा सकते हैं। यही कारण है कि बहुत से समीक्षक उनकी जीत को ब्रिटेन में अधिनायकवाद की शुरुआत बता रहे हैं।

डॉ. दिलीप चौबे


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment