बतंगड़ बेतुक : झल्लन की बात में दम है

Last Updated 15 Dec 2019 02:20:25 AM IST

झल्लन ने हमें आते हुए देख हांक लगाई, ‘ददाजू, इधर आइए, मिठाई तो नहीं है, लीजिए शगुन की यह टॉफी खाइए।’ हमने कहा, ‘पहले ये बता किस खुशी में तू हमें टॉफी खिला रहा है?’




बतंगड़ बेतुक : झल्लन की बात में दम है

वह बोला,‘सारे विपक्ष को फेल कर बिल पास हो गया। अब देखिए लोग कैसी खुशी मना रहे हैं! इसी खुशी में हम आपको टॉफी खिला रहे हैं।’
हमने कहा, ‘बिल पास हुआ तो हुआ, लेकिन यह देख संसद का कितना दुरुपयोग हुआ और उन विपक्षियों की सोच जो इस बिल पर मातम मना रहे हैं और इसके पास होने के दिन को इतिहास का काला दिन बता रहे हैं, इसे संविधान का अपमान बता रहे हैं, मुसलमान विरोधी ठहरा रहे हैं।’ झल्लन बोला,‘ददाजू,सरकार कोई भी काम करे सारे चिरकुट बिना सोचे-समझे उसे संविधान विरोधी बता डालते हैं और भले जो मुसलमानों के हित में हो उसे मुसलमान विरोधी बना डालते हैं।’ हमने कहा, ‘झल्लन, तुझे किसी को चिरकुट नहीं कहना चाहिए, यह असंवैधानिक शब्द है, इससे बचना चाहिए।’ झल्लन बोला, ‘क्या ददाजू, सरकार अच्छा करे तो यह लोग चिरकुटियाई करें, बुरा करे तो चिरकुटियाई करें, खुद कभी कुछ कर नहीं पाये कोई और करे तो उस पर भी चिरकुटियाई करें, ऐसे लोगों को चिरकुट न कहें तो क्या कहें? पर ददाजू, हम संविधान का नहीं आपका मान रखते हैं; इसलिए आपकी आपत्ति का संज्ञान लेते हुए अपने कहे चिरकुट शब्द को वापस लेते हैं।’ हमने कहा, ‘झल्लन,ये तेरी धूर्ततापूर्ण नीति है,अपने कहे को अनकहा बताना तेरी कुटिल रीति है।’ झल्लन बोला,‘अच्छा ददाजू, बताएं कि जिन मुस्लिम देशों ने हिंदू, सिख, ईसाई, पारसी जैसे अल्पसंख्यकों को अपने यहां से भागने पर विवश कर दिया वे कहां जाएंगे, सीधे हिंदुस्तान ही तो आएंगे। ऐसे सताये,डराये,भगाये लोगों को भारत अपना नागरिक बना लेता है तो इसमें मुसलमानों का क्या ले लेता है?’

हमने कहा, ‘देख झल्लन, तू सरकारी भाषा बोल रहा है, सच को सियासत के पैमाने पर तौल रहा है। भारत धर्मनिरपेक्ष देश है, यहां सबको समान दृष्टि से देखा जाता है। हिंदू हो या मुसलमान, सिख हो या ईसाई सबको समान अधिकार दिया जाता है। जो मुसलमान भारत आये हैं नागरिक बनने का हक उनका भी बनता है, उन्हें नागरिकता देने में सरकार का क्या बिगड़ता है? सरकार भेदभाव कर रही है यही उसकी जड़ता है।’झल्लन बोला,‘इस्लामी देशों से जो मुसलमान आते हैं, वे शरणार्थी नहीं घुसपैठिये होते हैं, उनके इरादे कभी नेक नहीं होते, वे भारत में रहकर भी भारत के नहीं होते। समझे ददाजू! शरणार्थी और घुसपैठिये में फर्क है इसलिए आप जो कह रहे हैं कि वह तर्क नहीं, कुतर्क है।’हमने कहा,‘झल्लन, तेरी यह सोच बहुत ही संकुचित और इंसानियत विरोधी है। इंसानियत का तकाजा होता है कि हिंदू-मुसलमान न किया जाये और जो भी मुसीबत में हो उसकी सहायता की जाये, उसे सहायता दी जाये।’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, यही बात तो हम कह रहे हैं कि जो मुसीबत में हैं उनकी मदद करिए और जो मुसीबत बन रहे हैं उनकी मदद मत करिए, जितनी जल्दी हो सके उन्हें देश से बाहर करिए।’ हमने कहा, ‘झल्लन, धर्मनिरपेक्ष देश में ऐसा नहीं होता, यहां धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं होता। न हम बांग्लादेश, अफगानिस्तान हैं, न पाकिस्तान है, हम हिंदुस्तान हैं। वहां अल्पसंख्यकों के साथ कितना भी अन्याय हो, हम अल्पसंख्यकों के साथ अन्याय नहीं कर सकते, उन्हें समानता के अधिकार से दूर नहीं रख सकते।’ झल्लन झल्लाकर बोला,‘ददाजू, आप क्यों नहीं समझते हो कि यहां अल्पसंख्यकों से कोई उनके अधिकार नहीं ले रहा है बल्कि जिन अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित कर उनके अधिकार छीन लिये गये हैं, उन्हें अधिकार दे रहा है।’ हमने कहा,‘देख झल्लन, इसका अर्थ यह नहीं कि पड़ोसी जो कर रहा हो, वह हम भी करने लगें और अगर पड़ोसी मजहबी नफरत की आग में जल रहा हो तो हम भी उसी आग में जलने लगें।’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, जब पड़ोस में आग लगी होती है तो आंच आपके घर तक आती है और अपना घर बचाने के लिए पड़ोसी की आग बुझानी ही होती है, इसलिए आप जैसे धर्मनिरपेक्षतावादियों को चाहिए कि पड़ोसियों को धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढ़ाएं, अल्पसंख्यकों के साथ कैसा बर्ताव किया जाये यह उन्हें सिखाएं।’ हमने कहा, ‘वे अलग देश हैं, न हम उन्हें पढ़ा सकते हैं न सिखा सकते हैं।’
झल्लन व्यंग्य से बोला,‘ददाजू, ये अलग देश जिन्होंने बनाए हैं, उन्हें समझाइए कि नकली सीमाएं हटाएं और समूचे भू-भाग पर धर्मनिरपेक्षता की गंगा बहाएं।’ हमने कहा,‘लेकिन झल्लन बात यहां के मुसलमानों की है।’ झल्लन बोला, ‘यहां का मुसलमान धर्मनिरपेक्षता की नहीं मुसलमानों की लड़ाई लड़ता है और जब कभी हिंदू-मुसलमान का मुद्दा उठता है तो धर्मनिरपेक्षता को कवच बना लेता है। याद रखिए ददाजू, मुसलमान सिर्फ  मुसलमान रहेंगे तो हिंदू भी सिर्फ हिंदू रहने के लिए भड़कते रहेंगे और जब तक पड़ोस में मुस्लिम राष्ट्र रहेंगे यहां के हिंदू, हिंदू राष्ट्र के लिए ललकते रहेंगे।’ झल्लन की बातों से थोड़ी सच्चाई भी झांक रही थी और हमारे मन में डरावनी आशंका कांप रही थी।

विभांशु दिव्याल


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