सरोकार : औरतों के हालात कमोबेश एक जैसे

Last Updated 15 Dec 2019 02:14:28 AM IST

हॉलीवुड की फिल्मों में महिलाओं ने काफी धाक जमाई है, लेकिन हमेशा की तरह इस बार भी अधिकतर ऑस्कर की रेस से गायब हैं।


सरोकार : औरतों के हालात कमोबेश एक जैसे

2019 की मशहूर फिल्में ग्रेटा गारविग की ‘लिटिल वीमैन’ और लुलू वांग की ‘द फेयरवेल’ गोल्डन ग्लोब नॉमिनेशन से बाहर हो गई हैं। 2017 में हैशटैग मीटू के बाद से हॉलीवुड में महिलाओं ने लंबा सफर तय किया है। 2019 की टॉप 100 हॉलीवुड फिल्मों में महिला निर्देशकों की फिल्में दर्जन भर से ज्यादा फिल्में हैं। पिछले कई वर्षों के मुकाबले इनमें इजाफा हुआ है पर फिल्मों में महिलाओं की मौजूदगी पर जरूर असर पड़ा है। इस साल की लोकप्रिय फिल्म ‘आयरिशमैन’ को ही लीजिए। साढ़े तीन घंटे की इस फिल्म में महिला भूमिकाएं सिर्फ  सिगरेट पीने और ऐक्टर्स के साथ फ्रेम में खड़े होने तक सीमित हैं। अन्ना पैक्विन जैसी ऐक्ट्रेस को फिल्म में सिर्फ  सात डायलॉग मिले हैं। तिस पर रॉबर्ट डी नीरो का कहना है कि वह बहुत पॉवरफुल हैं। सो, फिल्मों में महिलाओं की स्थिति के बारे में कोई क्या कह सकता है।

दक्षिणी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में जेंडर बॉयस इन मीडिया पढ़ने वाले डॉ. स्टेसी एल स्मिथ ने इस पर एक पेपर लिखा है। उनका कहना है कि ग्लोडन ग्लोब नॉमिनेशंस में लीडरशिप बॉयस साफ दिखाई देता है। औरतों पर हम इसलिए विचार नहीं करते क्योंकि लीडर या निर्देशक के रूप में आदमियों को ही देखा जाता है। कहानियां भी पौरु ष से भरी होती हैं। औरतों का इसमें क्या काम..यही माना जाता है। वे सिर्फ  हेयर और मेकअप के लिए होती हैं। लेकिन कई बार इस रेस में भी पुरुष बाजी मार ले जाते हैं। ‘बॉम्बशेल’ में काजू हीरो को बेस्ट मेकअप के लिए नॉमिनेट किया जाता है। वैसे भी ऑस्कर के वोटिंग पूल में 68 फीसद पुरुष हैं, और 84 फीसद श्वेत।

अपने यहां नॉमिनेशन तो नहीं, पर कमाई के लिहाज से नायिका प्रधान फिल्में औंधे मुंह ही गिरती हैं। बॉलीवुड की टॉप 10 कमाऊ फिल्मों में 14 हीरो प्रधान हैं-सिर्फ एक में हीरोइन की बराबर की भूमिका है पर वह भी हीरोइन ओरिएंटेड फिल्म नहीं कही जा सकती। यह फिल्म ‘बाजीराव मस्तानी’ है। यह लिस्ट इस तरह है-  ‘पीके’,‘बाहुबली’,‘बजरंगी भाईजान’,‘सुल्तान’, ‘धूम 3’, ‘प्रेम रतन धन पायो’, ‘चेन्नई एक्सप्रेस’, ‘थ्री इडियट्स’, ‘बाजीराव मस्तानी’। कई बार हमारी हीरोइनें भी हीरो के आगे हथियार डाल देती हैं। अनुष्का शर्मा का उदाहरण लिया जा सकता है। अपनी प्रोडक्शन फिल्म ‘एनएच 10’ में वह अकेली ही दर्जनों गुंडों से भिड़ती रहीं लेकिन ‘सुल्तान’ में सलमान से पटखनी खा गई।

फिल्म में खुद पहलवानी करने के बावजूद ‘सुल्तान’ की सुशील बीवी बनकर खुश हो लीं। बच्चे को जन्म देने के बाद यह कहकर तसल्ली करती दिखाई दीं कि यह बच्चा भी किसी तमगे से कम नहीं। तभी किसी ने साक्षी मलिक के ओलंपिक में मेडल जीतने के बाद ट्वीट किया कि कोई लड़की साक्षी मलिक तब बनती है, जब वह किसी सुल्तान से शादी नहीं करती। इसीलिए सिनेमा को नायकवादी आग्रहों से मुक्त होना है, तो कुछ लोक प्रचलित मान्यताओं से लड़ना होगा। यह कि हीरो में स्टार पावर होता है, कि हीरोइनें टाइम पास करने के लिए और शोभा बढ़ाने के लिए फिल्मों में रखी जाती हैं, कि उनके अफेयर भले ही छत्तीसों हों, उन्हें शादी नहीं करनी चाहिए। और ऐसी ही अन्य मान्यताएं। साथ ही औरतों को फिल्म दर्शकों का एक बड़ा समूह बनना होगा। तभी हीरोइन प्रधान फिल्मों के हिट होने की उम्मीद की जा सकती है।

माशा


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment