भ्रष्टाचार : दिखाना होगा जीरो टॉलरेंस

Last Updated 09 Dec 2019 05:53:11 AM IST

दिसम्बर 9 को पूरी दुनिया में भ्रष्टाचार निरोध दिवस है। हम भारत की ओर देखें तो पाते हैं कि देश के करोड़ों लोगों की खुशहाली, अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाने तथा विकास के ऊंचे सपने को साकार करने के लिए भ्रष्टाचार पर नियंत्रण की डगर पर अभी मीलों चलना है।


भ्रष्टाचार : दिखाना होगा जीरो टॉलरेंस

सरकार के कई प्रयासों के बाद भी भ्रष्टाचार और रितखोरी देश की बड़ी आर्थिक-सामाजिक बुराई बनी हुई है। हाल ही में 26 नवम्बर को ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा वर्ष 2019 की दुनिया के 180 देशों की भ्रष्टाचार के मामले में प्रकाशित की गई सूची में भारत को 78वें स्थान पर रखा गया है। पिछले वर्ष भारत 81वें क्रम पर था। 
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट 2019 के तहत कई महत्त्वपूर्ण बातें प्रस्तुत हुई हैं। पिछले वर्ष 2018 में 56 फीसद नागरिकों ने कहा था कि उन्होंने रित दी है, जबकि इस वर्ष 2019 में ऐसे लोगों की संख्या घटकर 51 फीसद रह गई है। खासतौर से देश में पासपोर्ट और रेल टिकट जैसी विभिन्न आम आदमी से जुड़ी सुविधाओं में डिजिटलीकरण और कम्प्यूटरीकरण किए जाने से रित और भ्रष्टाचार में कमी आई है। पर सरकारी दफ्तरों में अभी भी बड़े पैमाने पर रितखोरी है। देश में भ्रष्टाचार की जानकारी देने वाले इस सर्वेक्षण में कहा गया है कि केंद्र सरकार के कार्यालयों के साथ-साथ राज्य सरकारों के कार्यों में भी भ्रष्टाचार बढ़ा हुआ है। परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में लोग रित को एक सुविधा शुल्क के रूप में मान्य करने लगे हैं। ऐसे लोगों की संख्या 2018 में 22 फीसद थी। वर्ष 2019 में ऐसा मानने वाले लोगों की संख्या बढ़कर 26 फीसद हो गई है। सर्वेक्षण में 26 फीसद लोगों ने यह भी माना कि प्रॉपर्टी रजिस्ट्रेशन और जमीन से जुड़े मामलों में उन्हें रित देनी पड़ी है। इसी तरह 19 फीसद लोगों ने माना कि उन्हें पुलिस विभाग में रित देनी पड़ी। यह भी बताया गया कि भ्रष्टाचार और रित के मामले में दिल्ली, हरियाणा, गुजरात, पश्चिम बंगाल, केरल और ओडिशा कम भ्रष्ट राज्य हैं जबकि राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, झारखंड और पंजाब सबसे भ्रष्ट हैं।

दुनिया की ख्यातिप्राप्त शोध अध्ययन संस्था टॉलबर्ग के अनुसार 97 फीसद भारतीय मानते हैं कि आधार कार्ड की वजह से सरकारी राशन, सरकार के द्वारा किसानों को दी जाने वाली सहायता राशि और मनरेगा जैसे भुगतान काफी हद तक भ्रष्टाचार शून्य हो गए हैं और दो तिहाई से अधिक लोग यह मानते हैं कि आधार कार्ड सरकार की एक अच्छी कोशिश है। भारत में भ्रष्टाचार विरोधी कई प्रयासों से भी भ्रष्टाचार में कुछ कमी आई है। ऐसे प्रयासों में सूचना का अधिकार, लोक सेवा कानून अधिकार, लोकायुक्त की नियुक्ति, व्हिसल ब्लोअर्स प्रोटेक्शन एक्ट, भ्रष्टाचार विरोधी विभिन्न संगठन, भ्रष्टाचार निरोधक पुलिस एवं अदालतें लाभप्रद रही हैं। कर सुधारों से भी भ्रष्टाचार कम हुआ है। इसमें कोई दोमत नहीं है कि देश में नवम्बर, 2016 में नोटबंदी के बाद काला धन जमा करने वाले लोगों में घबराहट बढ़ी है और नोटबंदी के दौरान और उसके बाद भी बड़ी संख्या में लोगों ने काले धन का खुलासा करके काला धन प्रगटीकरण योजना का लाभ भी लिया है।
स्विस नेशनल बैंक द्वारा प्रकाशित नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार स्विट्जरलैंड के बैंकों में भारतीयों लोगों और उपक्रमों का जमा धन 2018 में करीब छह प्रतिशत घटकर 95.5 करोड़ स्विस फ्रैंक यानी 6,757 करोड़ रु पये रह गया है। यह दो दशक में इसका दूसरा निचला स्तर है। इसमें कोई दोमत नहीं है कि केंद्र तथा राज्य सरकारों की सेवाओं में भ्रष्टाचार को समाप्त करना बहुत बड़ी जरूरत बनी हुई है। इस परिप्रेक्ष्य में सरकार ने भ्रष्टाचार और अवैध गतिविधियों में संलिप्त अधिकारियों को बाहर का रास्ता दिखाने का जो अभियान चलाया है, उसे विस्तृत रूप दिए जाने की जरूरत है। हाल ही में 5 दिसम्बर 2019 को संसद में सरकार ने बताया कि पिछले पांच वर्षो में केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने केंद्र सरकार के 222 भ्रष्ट कर्मचारियों की सेवा नियमावली के नियम 56 (जे) के तहत जनहित में भ्रष्टाचार के आरोपों में अनिवार्य सेवानिवृत्ति पर भेज दिया है। यहां यह भी महत्त्वपूर्ण है कि देश में नौकरशाही को रित और भ्रष्टाचार से बचाने तथा नौकरशाही की जवाबदेही के लिए केंद्र सरकार को अधिक प्रयास करना होंगे। निसंदेह केंद्र सरकार देश के आईएएस अधिकारियों को उनकी अचल संपत्ति घोषित कराने की डगर पर आगे बढ़ी है। देश में 5205 आईएएस में से जिन 444 ने अपनी अचल संपत्ति संबंधी जानकारी अब तक नहीं दी है। यदि वे 31 जनवरी, 2020 तक ऐसी जानकारी न दें तो उन पर कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए।

जयंतीलाल भंडारी


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