समुद्र : धरती लीलने को रौद्र रूप
वर्ष 2050 आते-आते तीन करोड़ साठ लाख भारतीय अपना घर खो देंगे। उनकी जमीन को समुद्र लील लेगा।
समुद्र : धरती लीलने को रौद्र रूप |
यह अध्ययन अमेरिकी अनुसंधान समूह क्लाईमेट सेंट्रल ने किया है। इसके अनुसार भारत में गुजरात का सूरत, पश्चिम बंगाल का कोलकाता, महाराष्ट्र का मुंबई, ओडिशा का पूरा समुद्रतटीय क्षेत्र, केरल के अलाप्पुझा और कोट्टायम जिला और तमिलनाडु का चेन्नई शहर समुद्र में डूबने के कगार पर हैं। यह सब मौसम परिवर्तन का असर है। पृथ्वी के तापक्रम में हो रही वृद्धि जल पल्रय की ओर संकेत कर रही है। पिछले मॉडल के अनुसार अनुमान लगाया जा रहा था कि 50 लाख लोग बेघरबार होंगे लेकिन ताजा सर्वेक्षण ने चौंकाने वाले आंकड़े दिए हैं। इसके अनुसार 2100 तक ऊंची-ऊंची समुद्री लहरों के आने से तटीय भूमि रहने लायक नहीं रहेगी। रिपोर्ट कहती है कि चीन और बांग्लादेश के बाद तीसरा देश भारत भी प्रभावित होगा।
यह सर्वेक्षण हमें सोचने को बाध्य करता है कि हम कैसे उपायों को ढूंढें जिनमें मौसम चक्र के बढ़ते तापक्रम के परिवर्तन को रोक सकें। हमारी बढ़ती जनसंख्या की आपूर्ति के लिए खेती, कल कारखानों को विधिवत संचालित करने के लिए ऊर्जा की जरूरत है। इसके उत्पादन के विकल्प अभी हमारे पास पर्याप्त नहीं हैं। खनिज तेल हमें चाहिए। बगैर उसके हमारा गुजारा नहीं हो सकता। इससे हमें वाहन चलाने हैं, जो सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ढोते हैं। माल वाहक वाहन देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। यह काम रेलवे अकेले नहीं कर सकता। अचानक किसी समय देश में ट्रक माल पहुंचाना बंद कर दें तो लोगों को कई कठिनाइयों से गुजरना पड़ सकता है। उन्हीं ट्रकों को राष्ट्रीय राजमार्ग पर चलाने के लिए डीजल की जरूरत है। हालांकि सीएनजी विकल्प है, पर पर्याप्त नहीं है। खनिज तेल से हम खेतों को खाद द्वारा हरा-भरा करते हैं। ट्रैक्टर चलाते हैं जिससे खेतों को अन्न उपजाने के काबिल करते हैं। ऐसी स्थिति हमारे सामने है, फिर हम किसी भी रूप में कार्बन उर्त्सजन को रोक नहीं पाएंगे। हमारे जिंदा रहने की जरूरत कार्बन से नियंत्रित है। दूसरी ओर कार्बन उर्त्सजन में कोयला है। यह भी हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा है। बड़े-बड़े थर्मल पावरहाउसों को चलाने में कोयले का उपयोग होता है। प्रकृति ने हमें वह भी पर्याप्त मात्रा में दिया है। इसका उपयोग हम नहीं करेंगे तो वह भी बुद्धिमता का काम नहीं होगा। जब तक हमारे पास कोयला है, उसे हमें प्रयोग करना ही चाहिए। नहीं करेंगे तो हमारी अर्थव्यवस्था डगमगा जाएगी। हमारे पास या तो कोयले के उपयोग को न करने के कोई ठोस विकल्प हों तब ही सोचा जा सकता है, या कोयला जहां है, वहीं खानों में पड़ा रहे। ऊर्जा प्राप्त करने के हमारे पास चार और विकल्प हैं। एक तो परमाणु ऊर्जा का उत्पादन खूब करें पर उसके संयंत्र हमारे पास सीमित हैं। साथ ही यह महंगी भी मानी जाती है। पवन ऊर्जा भी एक विकल्प है, लेकिन उसका बड़ी मात्रा में उत्पादन अभी हम नहीं कर सकते हैं। संसाधनों और स्थान जहां से उसे प्राप्त किया जा सकता है, वे स्थान हमारे पास उतने नहीं हैं, जितनी हमें जरूरत है। एक और विकल्प हमारे पास सौर ऊर्जा के रूप में है। सूर्य भगवान हमारी धरती पर खूब चमकते हैं, उन्हीं के सहारे हम अपनी सौर ऊर्जा की जरूरत पूरी कर सकते हैं। मौसम चक्र में निरंतर बदलाव को सीमित करने में यही चारा है कि हम अपनी जरूरतों को सीमित करें। वायु प्रदूषण से पृथ्वी का तापक्रम बड़ी तेजी से बढ़ रहा है। तापक्रम बढ़ाने में सहायक हमारी वातानुकूलित प्रणाली भी है। भले ही वह हमें कमरों के भीतर ठंडक प्रदान करती है, पर बाहर उसी एसी की गैस क्लोरोफ्लोरो कार्बन पृथ्वी की ओजोन पर्त को भेद कर सूर्य की तेज रोशनी को पृथ्वी पर पहुंचाने में सहायक है। हम आज बेतहाशा एसी का उपयोग तो कर ही रहे हैं; साथ ही बड़े-बड़े रेफ्रिजिरेटर भी कार्बन उत्पादन करने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
वनों की होती कमी पृथ्वी के तापक्रम को बढाने में सहायक है। समुद्रों का जलस्तर बढ़ना इसी का परिणाम है। हिमालय की बर्फ लगातार पिघल रही है, लेकिन जहां से पिघल कर नदियों के माध्यम से समुद्र की ओर जा रही बर्फ पानी की धारा को निरंतर बनाए रखने में कुछ समय बाद सहायक नहीं हो सकती। उसका कारण है कि संचित ग्लेशियर समाप्त होने की स्थिति में हैं। अंटार्टिका में मीलों ग्लेशियर के ढेर समुद्र में पिघल कर जल के स्तर को बढ़ा रहे हैं। फिर ऐसी अवस्था में आपके पास कोई विकल्प नहीं बचता। आप धरती के तटों को धीरे-धीरे समुद्री जल को अंदर जाने से नहीं रोक सकते।
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