ब्रिटेन : लैंगिक विभेद से परेशान महिला सांसद

Last Updated 07 Nov 2019 12:26:51 AM IST

अंतरराष्ट्रीय अखबारों की खबर के अनुसार ब्रिटेन की 18 महिला सांसदों ने होने वाले आम चुनाव में भाग न लेने का फैसला किया है।


ब्रिटेन : लैंगिक विभेद से परेशान महिला सांसद

इन सासदों ने अपने क्षेत्र के मतदाताओं को चिट्ठी लिख कर अपनी सीट छोड़ने का फैसला सुनाया है। द न्यूयार्क टाइम्स ने लिखा, इनका आरोप है कि लंबे समय से चले आ रहे दुर्व्यवहार और धमकियों की वजह से उन्होंने यह फैसला किया। सांसद पाउला शेरिफ ने कुछ ही समय पहले सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग का आरोप लगाया था। इस पर जॉनसन ने चिल्लाकर कहा-मैंने ऐसी बकवास नहीं सुनी। सांसद हीदी एलन कहती हैं-दुर्व्यवहार पूरी तरह अमानवीय बन चुका है। मैं निजता में दखल और धमकियों से तंग हो चुकी हूं। धमकियों, डरावने ई-मेल, अपशब्द का सामना काम के बदले नहीं करना चाहिए। सीएनएन के अनुसार, 6 महिला सांसदों ने निजी कारणों और धमकियों के चलते सोमवार को इस्तीफा तक दे दिया। कल्चरल सेक्रेटरी निकी माग्रेन ने परिवार पर पड़ने वाले सीधे असर और अपशब्दों के चलते बुधवार को इस्तीफा दिया। निकी ने कहा, ताजा राजनैतिक स्थिति को लोग किस तरह लेते हैं, यह साफ है।
कैरोलीन स्पेलमैन ने अपने ओपिनियन कॉलम में लिखा-महिला सांसदों के साथ दुर्व्यवहार में लिंगभेदी बातें की जाती हैं। हमें दुष्कर्म की धमकियां मिलती हैं। 2017 के चुनावों के दरम्यान महिला सांसदों को 25 हजार 688 भद्दे  ट्वीट किए गए थे। पहले भी 72 महिला सांसद मेगन मर्केल को इन बातों पर चिट्ठी लिखी चुकी हैं। जिन विकसित देशों को अक्सर हम अपना आइडियल मान बैठते हैं, वहां भी लैंगिक विभेदों की जड़ें बेहद गहरी हैं। अेत सांसदों को अनर्गल पल्राप झेलने होते हैं, खासकर जब वे स्त्री हों।

औरतें संसद तक यूं ही बमुश्किल पहुंच पाती हैं। उस पर उन इस तरह के आघात उन्हें चेतावनी देते हैं। हालंकि वहां ब्रेक्जिट को लेकर मचे घमासान का खमियाजा मौजूदा सांसदों को चुकाना पड़ रहा है। मगर हकीकत में सबसे ज्यादा निशाने पर महिला सांसद ही हैं। यह सिर्फ लैंगिक विभेद के कारण है। बीबीसी को एंड्रिया जेंकिन्स ने बताया, ई-मेल के मार्फत बलात्कार की धमकियां ही नहीं मिलती, बल्कि बुरी मां कहने से भी विरोधी नहीं चूकते। हांलांकि वह अपनी पुरानी सीट से पुन: चुनाव लड़ने को राजी हैं पर उनके भीतर भी यह डर बुरी तरह घर कर चुका है। एंड्रिया ने कहा- मैं यहां काम करने के लिए हूं। अपने इलाके का प्रतिनिधित्व प्रेम से करती हूं। मैं बहुतेरे स्थानीय मामलों को अपने खुद से सुलटाती हूं जिनमें बच्चों के शोषण के मामले भी शामिल होते हैं। यदि मैं यह सब छोड़ दूं तो मैं विरोधियों को विजयी हो जाने दूंगी।
 कुछ अन्य सांसदों की भी यही दलील है। वे स्वीकर रही हैं कि जो उन्हें संसद में नहीं देखना चाहते, उनके इरादों को नेस्तनाबूद करना जरूरी है। तमाम छींटाकशीं, गाली-गलौच और चरित्र-हनन भरे शब्दों के बावजूद वे प्रतिरोध को तैयार हैं। मुस्तैदी से मैदान में अडिग रहने को राजी हैं। विचारणीय है कि ये कम हिम्मतवर स्त्रियां नहीं हो सकतीं। इनमें से अमूमन प्रोफेशनल हैं। उन्होंने अपने बेहतरीन कॅरियर के बाद राजनीति में हस्तक्षेप किया है। यह कहना गलत नहीं है कि भारत की तरह जाति या आरक्षित सीट पर चुनाव लड़ने वाली सामान्य घरेलू स्त्री नहीं हैं ये। इनकी अपनी विचारधारा होती है, और ये बढ़-चढ़ कर चर्चाओं में भाग लेती हैं।
हकीकतन औरतों का संसद तक पहुंचना अभी भी टेढ़ी खीर है। बात सिर्फ भारतीय संसद की हो या हम पर हुकूमत कर चुके ब्रिटेन की जिसे दुनिया भर में कमजोर देशों को अपना गुलाम बनाने में महारथ हासिल थी। उस ब्रितानी व्यवस्था में वही लैंगिक विभेद व्याप्त है, जिसका रोना हम यहां रोया करते हैं। अपने यहां आम चुनावों के दरम्यान महिला प्रत्याशियों पर पुरुषों द्वारा सार्वजनिक मंचों से की गई अभद्र टिप्पणियां कोई भूला नहीं है। रैलियों के दौरान चुनाव  लड़ने वाली औरतों के साथ होने वाली अश्लील हरकतें यदा-कदा ही खबरें बनती हैं। भक्तों की तो जाने ही दें, आम जनता भी लैंगिक तल्खियां करने से बाज नहीं आती। अखरने वाली बात इतनी सी है कि हमारी चुनी हुई सांसदों में लैंगिक विभेद के प्रति बैठी उदासीनता उतरने का नाम ही नहीं लेती। वे सामूहिक रूप से सार्वजनिक तौर पर स्त्री के साथ हो रहे अभद्र बर्ताव की र्भत्सना तक करने से सकुचाती हैं। छींटाकशी, अश्लील टिप्पणियों और लैंगिक भद्दी बातों पर मौन रहने को वे अपनी सहजता मान बैठी हैं। इस तरह का प्रतिरोध करने की प्रतिज्ञा उन्हें भी लेनी चाहिए।

मनीषा


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment