सरोकार : पाबंदियों से जूझतीं महिलाएं
वैटिकन में पिछले हफ्ते एक बड़ा ऐतिहासिक फैसला लिया गया। बिशप्स ने अपने समिट में 128 वोटों के साथ एक हजार साल पुराने एक बैन हटाया।
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यह बैन शादीशुदा मदरे को पादरी बनाने पर लगा था। अब अमेजन के कुछ हिस्सों में शादीशुदा मर्द चर्च के पादरी बन सकते हैं। मास तो नहीं करा सकते, लेकिन शादी और बापतिज्म करवा सकते हैं। यों पोप फ्रांसिस को तय करना है कि इस फैसले को मंजूर किया जाए या नहीं। कैथोलिक चर्च कई बड़ी समस्याओं से जूझ रहे हैं। इनमें एक है कि लोग पादरी बनने के इच्छुक नहीं। बिशप्स को इसका एक ही हल नजर आया-यह कि शादीशुदा मदरे को पादरी बनने दिया जाए। हां, इस पूरी प्रक्रिया के दौरान उन्हें महिलाओं को पादरी बनाने का ख्याल कतई नहीं आया। यह परंपरा विरु द्ध बात है।
लेकिन शादीशुदा मदरे को पादरी बनाने की अनुमति देना भी कई परंपराओं को तोड़ता है। कैथोलिक चर्च के लिए पवित्रता बड़ी बात है। यह परंपरावादी सोच है कि सेक्सुअल एक्टिविटी में शामिल कोई व्यक्ति मास जैसे पवित्र अनुष्ठान के लायक नहीं। बिशप्स ने शादीशुदा पादरियों के पक्ष में वोट दिया और इस बात के भी खिलाफ गए कि पादरियों के बीवी-बच्चे होंगे तो हितों के टकराव की गुंजाइश बन सकती है, परिवार आपके चर्च के कामकाज को प्रभावित कर सकता है। इन सबके बावजूद शादीशुदा मदरे को पादरी बनाने पर लगी पाबंदी हट सकती है। हां, महिलाओं पर लगी पाबंदी, कब हटेगी-मालूम नहीं।
महिलाओं पर कहां पाबंदी नहीं है। हर धर्मानुयायी यही कोशिश करता है कि औरतों को मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर से दूर ही रखा जाए। पादरी और पुजारी बनने की बात तो छोड़ ही दी जाए। वहां घुसना भी औरतों के लिए मुश्किल है। हाल में भारत में सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई है जिसमें मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश पर रोक को अवैध घोषित करने की मांग की गई। सबरीमाला में न्यायालय के आदेश के बावजूद औरतें प्रवेश नहीं कर पा रहीं। असम के कामाख्या मंदिर में तो स्त्री योनि की मूर्ति होने के बावजूद अंबुबाची मेले के दौरान औरतों को वहां घुसने नहीं दिया जाता जबकि मान्यता के अनुसार देवी कामाख्या के रजस्वला होने पर ही चार दिनों तक यह मेला उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस विविख्यात मंदिर का एक सच और भी है-यहां पीरियड्स के दौरान महिलाओं को प्रवेश करने की इजाजत नहीं है। विजयवाड़ा में भवानी दीक्षा मंडपम मंदिर में भी महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। चौंकाने वाली बात यह है कि इस मंदिर की मुख्य पुजारी जयंती विमला हैं। पिता की मृत्यु के बाद आंध्र सरकार ने उन्हें मुख्य पुजारी बनाया लेकिन इसके बावजूद औरतें वहां नहीं जा सकतीं।
बैन भेदभाव का ही दूसरा रूप है। औरतें और लड़कियां इस बैन का हर दूसरे दिन शिकार होती हैं। बैन है इसलिए देर रात तक बाहर मत रहो। बैन है इसलिए चुस्त कपड़े मत पहनो। बैन है इसलिए स्कूल के बाद घर पर बैठ जाओ। बैन के बीच उनकी जिंदगी किसी तरह खिसट जाती है। बैन घर परिवार से होता हुआ ही मंदिरों-मस्जिदों-गिरिजाघरों में पहुंचता है। घरों से ही समाज बनता है। समाज जिस चश्मे से देखता है, घर भी उसी इमेज को अपने कमरों में फिट करता है। वैटिकन कब महिलाओं को पादरी बनाने को मंजूरी देगा, पता नहीं। फिलहाल, बिशप्स के समिट में औरतों को किसी फैसले पर वोट देने का हक भी नहीं है।
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