वैश्विकी : कश्मीर पर चुप रहीं मर्केल
जम्मू-कश्मीर में हाल में आए संवैधानिक बदलाव की पश्चिमी मीडिया और कुछ राजनीतिक हलकों में हो रही आलोचना के बीच जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल भारत यात्रा पर आई।
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भारत और जर्मनी के बीच हर दो साल पर अंतर-सरकार विचार विमर्श होता है। प्रधानमंत्री मोदी के साथ मर्केल ने तीसरी बार ऐसी वार्ता में हिस्सा लिया।
एंजेला मर्केल यूरोप में आव्रजन और आतंकवाद के बारे में उदारवादी रवैया अपनाती हैं। इस मायने में वह अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन से एकदम अलग राय रखती हैं। कश्मीर में आए बदलाव का विरोध करने वाले वगरे में इस बात की आशा थी कि मर्केल अपनी भारत यात्रा के दौरान जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकारों के कथित उल्लंघन और सामान्य लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बहाली का मसला उठाएंगी। यूरोपीय संसद में कई बार कश्मीर के हालात को लेकर मोदी सरकार की आलोचना होती रही है। मर्केल ने अपने नई दिल्ली प्रवास के दौरान कश्मीर के बारे में सार्वजनिक रूप से कोई बयान नहीं दिया।
लेकिन मीडिया में मर्केल का यह कथन प्रचारित किया जा रहा है, जो उन्होंने भारत आते समय विमान में पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा था। मर्केल का कहना था कि जम्मू-कश्मीर के मौजूदा हालात को लंबे समय तक जारी नहीं रखा जा सकता। हालात निश्चित रूप से सुधरने चाहिए। मर्केल के इस कथन को इस रूप में प्रचारित किया जा रहा है कि उन्होंने यह बयान मोदी के साथ द्विपक्षीय बातचीत में दिया। मर्केल की यात्रा के दो दिन पहले यूरोपीय संसद का एक प्रतिनिधिमंडल भारत आया था। इस दल में यूरोप के विभिन्न देशों के करीब तेइस सांसद शामिल थे। इनमें जर्मनी से चुने गए तीन सांसद भी थे। ये सांसद जर्मनी में आव्रजन और इस्लामी आतंकवाद का विरोध करते रहे हैं। इस दल ने जम्मू-कश्मीर के हालात के बारे में एक सकारात्मक तस्वीर पेश की और आतंकवाद के खिलाफ मोदी सरकार की ओर से उठाए गए कदमों का आम तौर पर समर्थन किया।
आज के अंतरराष्ट्रीय माहौल में किसी भी देश की सरकार के लिए यह आसान नहीं है कि वह जम्मू-कश्मीर के बारे में मोदी सरकार की खुलकर आलोचना करे। पाकिस्तान के अलावा केवल तुर्की और मलयेशिया ही ऐसे देश हैं जिन्होंने कश्मीर के संबंध में भारत सरकार की ओर से उठाए गए कदमों का विरोध किया है। पश्चिमी देशों खासकर यूरोप में गैर-सरकारी स्तर पर अलबत्ता कश्मीर में मानवाधिकारों के हनन की दुहाई दी जा रही है। इस विचार को निष्प्रभावी बनाने के लिए भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने पिछले दिनों अमेरिका में सघन कूटनीतिक अभियान चलाया था। उन्होंने करीब एक दर्जन थिंक टैंक कार्यक्रमों में भाग लिया और बुद्धिजीवी तबके के सामने भारत का पक्ष रखा। जयशंकर की यात्रा के तुरंत बाद अमेरिकी कांग्रेस में कश्मीर मामले में सुनवाई आयोजित हुई जिसमें पाकिस्तानी लॉबी ने भारत को कठघरे में पेश करने का प्रयास किया।
प्रधानमंत्री मोदी ने जर्मनी की चांसलर को जम्मू-कश्मीर के संबंध में भारत के रोडमैप से निश्चित रूप से अवगत कराया होगा। यह भी संभव है कि उन्होंने मर्केल से कहा हो कि राज्य में आर्थिक गतिविधियां बढ़ाने के लिए जर्मनी से सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर निवेश किया जाए। मर्केल की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच अंतरिक्ष, चिकित्सा, शिक्षा, कृषि, आयुव्रेद और योग समेत अन्य क्षेत्रों में सत्रह समझौते हुए हैं। भारतीय कूटनीति की दृष्टि से अच्छी बात यह रही कि मोदी और मर्केल ने आतंकवाद के खिलाफ एक दूसरे का सहयोग करने की बात कही। जर्मनी की चांसलर मर्केल ने इस समझौते पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि जर्मनी और भारत के बीच समझौते पर हस्ताक्षर इस बात के सबूत हैं कि नई और उन्नत प्रौद्योगिकी की दिशा में दोनों देशों के रिश्ते आगे बढ़ रहे हैं।
एंजेला मर्केल की भारत यात्रा से जाहिर हुआ कि जम्मू-कश्मीर के बारे में मोदी सरकार पर किसी तरह का अंतरराष्ट्रीय दबाव नहीं है। यदि कोई विश्व नेता ऐसा प्रयास करता भी है, तो सरकार उसे स्वीकार नहीं करेगी। अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का तकाजा है कि हर देश अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता दे। जर्मनी के हित में भी यही है कि वह भारत के साथ मजबूत हो रहे आर्थिक और रणनीतिक हितों को तवज्जो दे।
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