मीडिया : उनकी जासूसी और मेरी अमरता

Last Updated 03 Nov 2019 12:06:52 AM IST

एंकर आधे मन से रोए जा रहा है कि हाय! हाय! बिना हमसे पूछे हम पर निगरानी रखी जा रही है। कोई हमारे व्हाट्सऐप का डाटा चुरा रहा है।


मीडिया : उनकी जासूसी और मेरी अमरता

दो ‘एक्टिविस्ट’ जिनके डाटा चुराए गए हैं, कह रहे हैं कि हमारे पास एक ‘मिस कॉल’ आया था। हमने आए फोन पर पलट कर बात की तो उसने भी माना कि हम निगरानी में हैं। एंकर किसी पुलिस वाले की तरह पूछता है : आपको किसी पर शक है?
एक्टिविस्ट कहता है : सब प्रभु जी की माया! और कौन करा सकता है? यों भी डाटाचोरी की सॉफ्टवेयर ‘पेगासस’ बनाने वाले इस्रइली हैं, और इस्रइल से किसकी घनिष्ठता है, ये आप जानते हैं।
एंकर : आप एफआईआर करा सकते थे। 
डाटा चोरी का शिकार एक्टिविस्ट : मेरा न सरकार पर भरोसा है न पुलिस पर! किसलिए एफआईआर कराता?

एंकर हकबकाता है : जब इतना कुछ हो गया तो एफआईआर तो करनी ही थी!
डाटा चोरी का मारा दूसरा बोला कि मैं पैंतीस बरस से पत्रकारिता में हूं। पहली बार ऐसा हुआ है। फोन आया था और उसके बाद मेरी चोरी होने लगी।
एंकर : आपने पुलिस में एफआईआर लिखाई?
पीडित पत्रकार : मुझे पुलिस का भरोसा नहीं।
एंकर : आप मंत्रालय को लिखते। संसद को लिखते। राष्ट्रपति को लिखते। अदालत को लिखते। कुछ तो करते..।
इस चरचा से निराश होकर एंकर चैनल के दशर्कों को समझाने लगा कि ये जानें कि पेगासस सॉफ्टवेयर/ऐप किस तरह डाटा चोरी करता है। उदाहरण के लिए, एक मिस कॉल आता है। आप बात करें न करें, वह डाटा चोर सॉफ्टवेयर आपके स्मार्टफोन में चुपके से बैठ जाता और अब आपकी हर बात, हर चित्र को चुपके से रिकॉर्ड करने लगता है। आपकी ‘प्राइवेसी’! आपकी सूचनाएं किसी के अन्य के लिए उपलब्ध होने लगती हैं। आपकी निगरानी होने लगती है।
एक चर्चक : लेकिन इस्रइल की कंपनी एनएसओ बताती है कि सॉफ्टवेयर बहुत महंगा है, और उसे सिर्फ  सरकारों को बेचते हैं।
इस बीच एक भक्त सभी को अभयदान देता हुआ कहने लगता है कि भारत के नागरिकों की प्राइवेसी की गांरटी करना सरकार का काम है। मंत्रालय ने व्हाट्सऐप से चार दिन में जवाब मांगा है कि उसकी क्या भूमिका है? शाम तक ‘भीमा कोरे गांव  कांड’ की हिंसा में आरोपित कई चेहरे चैनलों में कहने लगते हैं कि यह निरंकुशता है। कई विपक्षी नेता इसे ‘पुलिस स्टेट’ बताने लगते हैं। एक कहता है कि पता नहीं किस-किस का फोन टैप हो रहा हो। सत्ता अपनी असफलताओं से बढ़ते जन-असंतोष को दबाने के लिए ‘पुलिस स्टेट’ की तरह काम कर रही है। आखिर में एक साइबर कानून एक्सपर्ट से पूछा जाता है कि इस मामले में कानूनन क्या कुछ किया जा सकता है। एक्सपर्ट कहता है कि देश में जो साइबर कानून हैं, वो ऐसे मामलों में एकदम अपर्याप्त और नखदंत विहीन हैं। एक याद दिलाता है कि व्हाट्सऐप का मालिक फेसबुक है, और वो  डाटा बेचने के लिए कुख्यात है। पहले भी ‘एनालिटिका कांड’ हो चुका है। आजकल ‘डाटा’ सबसे बड़ा बिजनेस हैं। बहुत-सी संस्थाएं और व्यक्ति हैं, जो डाटा की चोरी करके सरकारों को बेचती हैं। चुनावों में जनमत को प्रभावित करती हैं। अब इसी डाटाचोरी की टाइमिंग को ही देख लीजिए। यह सब दो हजार उन्नीस के चुनावों के कुछ पहले ही तो हुआ है।
एंकर : क्या मतलब? आप कहना चाहते हैं कि हमारे गत चुनावों का इससे कोई संबंध है..?
डाटा चोरी की ऐसी खबरें हमें आदी बनाती चलती हैं  कि धीरे-धीरे हम एक ‘सर्वेलेंस स्टेट’ में जीने के तैयार होते रहें। पहले आचुका ‘एनालिटिका कांड’ कई दिन चरचा में रहा। कुछ दिन बाद करोड़ों आधार कार्डधारकों के डाटा के ‘खरीदे और बेचे जाने’ की खबरें चरचा में रहीं। फिर ‘ट्रंप के चुनाव’ में भी इसी तरह की डाटा की चोरी की भूमिका की चरचाएं गरम रहीं। अब इस्रयली कंपनी ‘एनएसओ’ और ‘पेगासस’ सॉफ्टवेयर चरचा में है, जिसने 1500 सिविल सोसाइटी एक्टिविस्टों के फोनों की जासूसी की है जिनमें कुल ‘दो दर्जन’ भारत के ‘सिविल सोसाइटी एक्टिविस्ट’ हैं। इस संख्या को सुनकर यह टिप्पणीकार खासा निराश हुआ। कुल चौबीस बंदे और उनकी भी जासूसी! लेकिन कैसे हिम्मती कि इनमें से एक भी व्यक्ति ‘आतंकित’ या ‘चिंतित’ नहीं दिखा बल्कि एकदम स्वस्थ और आत्म-विस्त ही दिखा! मन हुमसने लगा कि काश! अपनी भी जासूसी करता और हमें भी पंद्रह मिनट की अमरता नसीब होती।

सुधीश पचौरी


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