यूरोपीय सांसदों का कश्मीर दौरा : हुआ उल्टा ही असर
बुधवार यानी 30 अक्टूबर को राजधानी दिल्ली से निकलने वाले राष्ट्रीय स्तर के ज्यादातर अखबारों ने अपने पहले पन्ने पर यूरोपीय सांसदों के कश्मीर दौरे से संबंधित जो तस्वीरें प्रकाशित की थीं, उनमें वे श्रीनगर की मशहूर डल झील में नौका विहार का आनंद लेते दिखाए गए हैं।
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कश्मीर का विशेष दरजा खत्म होने के बाद पहली बार कोई विदेशी प्रतिनिधिमंडल घाटी की जमीनी हकीकत जानने के लिए श्रीनगर गया था। इस दौरे की खबरों से यह आभास होता है कि सरकार अपने फैसले और वहां के माहौल के बारे में आश्वस्त है और शेष विश्व को भी इसे दिखाने के लिए हर तैयार है। वे चाहें तो आएं और खुद अपनी आंखों से देख लें कि यहां मानवाधिकारों का हनन नहीं हो रहा है और उसके प्रबंधन में पूरी तरह से पारदर्शिता है। दुर्भाग्य से जिस दिन यह प्रतिनिधिमंडल घाटी की स्थिति का जायजा ले रहा था, उसी दिन आतंकवादियों ने वहां बंगाल से गए पांच मजदूरों की गोली मार कर हत्या कर दी। इस विदेशी प्रतिनिधिमंडल में कुल 23 सदस्य थे। ये सभी सदस्य यूरोपीयन यूनियन की संसद के मेंबर हैं। कश्मीर की स्थिति का जायजा लेने के लिए ये सभी भारत के दौरे पर आए थे। लेकिन इनमें से ज्यादातर सदस्य शरणार्थी विरोधी उग्र दक्षिणपंथी पार्टयिों से संबद्ध हैं, जैसे जर्मनी की एएफडी, ब्रिटेन की ब्रेक्जिट पार्टी, इटली की फोर्टा इटालिया, फ्रांस की नेशनल रैली पार्टी और पोलैंड की लॉ एंड जस्टिस पार्टी। इस दौरे का न्योता पा चुके एक सांसद डेविस बताते हैं कि प्रतिनिधिमंडल के सभी सदस्य मुसलमानों के प्रति वैमनस्यता रखते हैं।
आरंभ में इस कश्मीर दौरे के लिए इयू के 27 सदस्यों को आना था। बाद में भारतीय समाचारों में यह देखने को मिला कि उनमें से चार सदस्य बिना कोई कारण बताए वापस लौट गए। लेकिन उन्हीं अनुपस्थित हुए चारों सदस्यों में से एक सांसद क्रिस डेविस ने बताया है कि उन्हें मना कर दिया गया। डेविस लिबरल डेमोक्रेट हैं और यूरोपीयन यूनियन के ब्रिटिश सांसद हैं। डेविस बताते हैं कि इस दौरे पर आने के लिए पहले उन्हें भी निमंत्रण दिया गया था। जब उन्हें प्रतिनिधि मंडल के बाकी सदस्यों के बारे में जानकारी मिली, तो आश्चर्य हुआ कि उन्हें यह न्योता क्यों दिया गया, जबकि टीम के बाकी सदस्य घोषित रूप से मुस्लिम विरोधी हैं। फिर भी उन्होंने यह आमंत्रण स्वीकार कर लिया, लेकिन यह शर्त रखी कि उन्हें सुरक्षाकर्मिंयों से अलग हो कर कुछ इलाकों में जाने और कश्मीर के लोगों से बातचीत करने का मौका दिया जाएगा। डेविस बताते हैं कि उनकी यह शर्त नहीं मानी गई और कुछ समय बाद आयोजकों ने वह आमंत्रण वापस ले लिया। डेविस कहते हैं कि मैंने आयोजकों से यह भी स्पष्ट किया था कि मुझे पत्रकार लोगों के साथ जाने में कोई एतराज नहीं है, लेकिन मैं अधिकारियों और सुरक्षाकर्मिंयों से अलग रह कर ही कश्मीरियों से बात करना चाहूंगा। आयोजकों ने अपने जवाब में लिखा कि सुरक्षा की दृष्टि से ऐसा कर पाना संभव नहीं हो सकेगा। प्रतिनिधियों का जो 23 सदस्यीय दल कश्मीर गया, उसे श्रीनगर हवाई अड्डे से बुलेट प्रूफ गाड़ियों में होटल पहुंचाया गया।
उनका काफिला उन चार जगहों से होकर गुजरा, जहां पूर्व मुख्यमंत्री और प्रमुख नेता नजरबंद रखे गए हैं। दिन में इयू सांसदों का यह दल ललित ग्रैंड पैलेस होटल में घाटी के 15 प्रतिनिधिमंडलों से मिला, जिनमें व्यापारी, ग्राम सरपंच, छात्र और महिलाएं शामिल थीं और उनसे बातचीत की। डल झील की सैर के अलावा वे राज्य के मुख्य सचिव, पुलिस प्रमुख और कुछ सैन्य अधिकारियों से भी मिले। ये सारी जगहें कड़ी सुरक्षा निगरानी में थीं। लेकिन जिस दिन वे कश्मीर में थे, उस दिन की शुरु आत ही घाटी में बंद, प्रदर्शन, पत्थरबाजी और सुरक्षाबलों के साथ झड़पों से हुई, जिनमें कुछ लोग घायल भी हुए। श्रीनगर शहर में कई जगह सड़कें ब्लॉक रहीं। दिन में पुलवामा में आतंकियों ने सीआरपीएफ के एक गश्ती दल पर हमला कर दिया। और शाम तक कुलगाम से पांच मजदूरों की हत्या की खबर आई, जिसे कश्मीर के विशेष दरजा हटने के बाद के सबसे बड़े आतंकी हमले के रूप में देखा जा रहा है। यूरोपीयन यूनियन के इन प्रतिनिधियों को भारत सरकार ने नहीं बुलाया था। उन्हें कश्मीर का जायजा लेने के लिए यूरोपीय यूनियन ने भी नहीं भेजा था, न ही वे वहां अपने देश की ओर से गए थे, जहां से वे इयू संसद के प्रतिनिधि हैं। लेकिन उनका यह दौरा पूरी तरह से प्रायोजित था। उनके आने, जाने और ठहरने का पूरा खर्च एक ऐसे एनजीओ ने उठाया, जिसके बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है। निश्चित रूप से यह खर्च मामूली नहीं रहा होगा और कोई गैर सरकारी अनाम एनजीओ बिना किसी सरकारी समर्थन के इस तरह का आयोजन नहीं कर सकता।
इन सांसदों को वेस्ट (वीमन इकोनॉमिक एंड सोशल थिंक टैंक) नामक एनजीओ की ओर से कश्मीर दौरे के लिए आमंत्रित किया गया था, जिसकी मुखिया ब्रुसेल्स में रहने वाली भारतीय मूल की एक ब्रिटिश महिला मादी शर्मा हैं। इनके या इस एनजीओ के बारे में जो भी जानकारी है, वह सिर्फ इनके वेबसाइट और ट्विटर हैंडल पर ही उपलब्ध है। सांसदों को भेजे गए निमंत्रण में मादी शर्मा ने दावा किया था कि प्रतिनिधियों के कश्मीर दौरे का पूरा खर्च दिल्ली स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर नन एलायंड स्टडीज (आइआइएनएस) नामक संस्था उठाएगी। दिल्ली के कुछ दैनिक अखबार यह दावा करते हैं कि इस आयोजन के उद्देश्यों के बारे में जानकारी लेने के लिए मादी शर्मा, उनके एनजीओ और सफदरजंग स्थित आइआइएनएस से संपर्क करने पर उन्हें कहीं से कोई जवाब नहीं मिला। आश्चर्य इस बात का है कि सोमवार को विदेश मंत्रालय ने भी स्पष्ट कर दिया था कि भारत सरकार का इस आयोजन से कोई संबंध नहीं है। मादी शर्मा ने यूरोपीयन यूनियन के इन सदस्यों को जो निमंत्रण भेजा था, उसमें यह लिखा था कि सदस्यों को न सिर्फ कश्मीर का दौरा कराया जाएगा, बल्कि उनकी मुलाकात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भी कराई जाएगी।
भारत आने के बाद यह प्रतिनिधिमंडल न सिर्फ श्रीनगर जाकर वहां के नागरिकों और सर्वोच्च अधिकारियों से मिला, बल्कि दिल्ली आकर प्रधानमंत्री और उप राष्ट्रपति से भी मिला। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के कार्यालय और विदेश मंत्रालय ने उनके आतिथ्य की व्यवस्था की। खर्च, संस्थाओं की विश्वसनीयता और आयोजन के उद्देश्य के अलावा अब सवाल यह उठाया जा रहा है कि बिना सरकार की इजाजत के मादी शर्मा ने उन्हें प्रधानमंत्री से मिलने का वादा किस आधार पर और किस हैसियत से किया होगा? ऐसा लगता है कि इयू सांसदों के इस कश्मीर दौरे ने अच्छी छवि बनाने की जगह, विवादों का ही पिटारा खोल दिया।
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