लेजर शो : यह भी है बड़ा खतरा

Last Updated 01 Nov 2019 05:55:24 AM IST

दिवाली से पहले और बाद तक प्रदूषण की चर्चा तो हो रही है मगर कइयों को पता नहीं कि लेजर शो से भी प्रदूषण होता है।


लेजर शो : यह भी है बड़ा खतरा

लेजर शो का आयोजन दिल्ली सरकार की ओर से प्रकाशोत्सव मनाने के लिए किया गया था। यदि आपने इसका सावधानी से उपयोग नहीं किया तो आपकी आंखों की रोशनी प्रभावित हो सकती है। यह सीधी रेखा में जाने वाली रोशनी होती है। साधारण प्रकाश तो जिस बिंदु से उत्सर्जित होता है, वह आगे जाते हुए चारों ओर फैलते हुए निकलता है, इससे नुकसान होने का डर कम रहता है, जबकि लेजर की बीमें यानी किरणों सीधी चलती हैं, जिस बिंदु से उसे छोड़ा जाता है।

यदि यही किरणों मनुष्य के आंख से होते हुए जाए तो वह आपके रेटिना को प्रभावित कर सकती हैं। इसके कारण आपकी दृष्टि प्रभावित हो सकती है। इसलिए लेजर शो का खेल भी आपको दर्द दे सकता है।  इसी प्रसंग में हम यदि लेजर किरणों पर एक दृष्टि डालें तो उसकी संरचना से पता चल जाएगा कि वह है क्या? और कैसे वह आपकी आंखों से लेकर त्वचा को प्रभावित कर सकती हैं। चिकित्सा के क्षेत्र में इसकी बहुत बड़ी उपलब्धियां हैं, पर वहां डाक्टरी जानकारों के माध्यम से प्रयोग में लाई जाती हैं। यहां तक कि रडार से लेकर दूरियां मापने में इसका प्रयोग होता है। लेजर का मतलब है-लाइट एम्पलिफिकेशन बाई स्टिमुलेटेड इमिशन आफ रेडिएशन यानी विकिरण के उत्सर्जन से प्रेरित प्रकाश प्रवर्धन। लेजर तब पैदा होता है, जब परमाणु के इलेक्ट्रॉन विशेष कांच, क्रिस्टल या गैसों से बिजली की तरंगों की ऊर्जा को सोखती हैं और दूसरा लेजर प्रेरित होता है। इससे प्रेरित इलेक्ट्रॉन निम्न ऊर्जा वृत्त से ऊंचे वृत्त में परमाणु की नाभि के चारों ओर जाता है। जब वह वापस अपनी सामान्य अवस्था में आता है, तब इलेक्ट्रोन फोटोन ( प्रकाश के कणों) का उत्सर्जन करते हैं।

यह फोटोन एक ही तरंगों के लंबाई के होते हैं, जिन्हें लेजर की किरणों कहते हैं; जबकि सामान्य प्रकाश की तरंगे भिन्न होती हैं। लेजर की किरणों एक ही वेवलेंथ की होने से अधिक प्रभावी होती हैं। इसीलिए सामान्य प्रकाश और लेजर किरणों भिन्न होती हैं। यह लेजर किरणों आगे जाकर बिखरती नहीं हैं। इसलिए जहां से छोड़ी जाती हैं और जिस स्थान पर उनको भेजना हो वहां तक उसी तरह से पहुंचती हैं। चांद की सतह तक लेजर किरणों उसी रूप में पहुंच जाती हैं, जैसे वे पृथ्वी से प्रेषित की जाती हैं। लेजर किरणों के शरीर में सोखने से तापक्रम बढ़ जाता है, जो हानिकारक है। लेजर बीम की तरंगे कितनी तीव्र हैं, उसके कारण त्वचा के ऊतकों पर जलने का गहरा असर हो सकता है, यह सब किरणों की वेवलेंथ पर निर्भर करता है। लेजर बीम के कारण फोटोकैमिकल असर होता है, क्योंकि फोटोन ऊतकों के कोशिकाओं से मिलने पर प्रभाव डालते हैं।  लेजर की किरणों का मानव शरीर पर तुरंत असर होता है, क्योंकि शरीर इन किरणों के लिए अति संवेदनशील है। इसलिए कभी भी किसी के मुख पर लेजर की किरणों को नहीं चमकाना चाहिए। ऐसा करने से आंखें खराब हो जाती हैं।  बीम का असर इस तरह से होता है, जैसे सूर्य के प्रकाश को लेंस से होकर गुजारते हैं तो सूर्य की किरणों एक स्थान पर एकत्र हो कर उस स्थान को जला देती है। उसी तरह से यदि आपने आंख पर लेजर की किरणों को चमकाया तो वे मनुष्य के आंख के लेंस से गुजर कर एक जगह पर एकत्र हो कर रेटिना को जला देती हैं।
लेजर बीम की ऊर्जा को आंख अपने लेंस से अपने आप फोकस करने की क्रिया से एक लाख बार तेज ऊर्जा पैदा हो जाती है। यह स्थिति बड़ी खतरनाक हो सकती है। यदि एक वाट लेजर बीम को एक छोटे स्थान पर फोकस किया जाए तो उससे उस स्थान का ताप सूर्य की सतह से अधिक हो जाता है। इस तरह से यदि कम शक्ति की लेजर जो मिलीवॉट क्षमता की है, उसे यदि आंख पर चमकाया जाए तो वह भी रेटिना को जला सकती है। इस तरह से लेजर बीम के साथ खिलवाड़ करने से आप अपने को तुरंत अंधा बना सकते हैं।  इसी तरह से तेज शक्ति की लेजर बीम एक या एक से अधिक वॉट की, त्वचा को जला देती है। ऐसी जली हुई त्वचा को ठीक होने में वर्षो लग सकते हैं।  आज के माहौल से लगता है कि आने वाला समय लेजर का है। अनजाने में हम इसका उपयोग कर रहे हैं, इसके उपयोग में सावधानियां भी हैं, जिन्हें लोगों को प्रशिक्षित करने की जरूरत है। पर इससे अंधाधुंध खेलेंगे तो आने वाले समय में इसके प्रभाव को झेलना मुश्किल हो जाएगा। आवयकता इस बात की है कि इसके इस्तेमाल में सावधानियां बरती जाए।

भगवती प्रसाद डोभाल


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