प्रकाशोत्सव : धुएं में उड़े सारे दावे

Last Updated 30 Oct 2019 04:07:16 AM IST

दीपावली के जश्न के बाद जो होना था वही हुआ। रात का किया धरा सुबह सबकी आंखों के सामने था, साक्षात और आंकड़ों में भी।


प्रकाशोत्सव : धुएं में उड़े सारे दावे

देश के राजधानी में तमाम प्रयासों के बावजूद वायु प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए निर्धारित सुरक्षित सीमा से 16 गुना बदतर हो गया। यहां हवा की गुणवत्ता मापने वाले 37 स्टेशनों में से 29 स्टेशनों पर वायु प्रदूषण स्तर ‘बहुत खराब’ वाली श्रेणी था। पास ही गाजियाबाद में वायु गुणवत्ता सूचकांक 397, ग्रेटर नोएडा में 315 और नोएडा में 357 तो फरीदाबाद में यह 318 पर पहुंचा। तब जबकि दावा किया गया कि यह स्थिति विगत पांच बरसों में सबसे बेहतर है।
पिछले साल दिवाली के बाद दिल्ली में हवा की गुणवत्ता का स्तर 600 पार था, यह सुरक्षित स्तर का 12 गुना था। इस बार दिवाली की अगली सुबह दिल्ली में हवा की गुणवत्ता का स्तर 10 पीएम 476 पर था जो खासा गंभीर माना जाता है। यह तो औसत है, सुबह 4 बजे 999 तक पहुंचे थे आंकड़े। बहुत से इलाकों में यह 306 से 350 तक अटका हुआ है यह भी कम घातक नहीं है। एक्यूआई यानी एयर क्वालिटी इंडेक्स 301-400 हो तो ‘बहुत खराब’ और 401-500 ‘गंभीर’ श्रेणी का माना जाता है। एक्यूआई अगर 500 से ऊपर पहुंच जाता है, तो उसे आपातकालीन’ श्रेणी का माना जाता है। अगर हवा का स्तर इसके करीब है तो कमी वाली कामयाबी का क्या मतलब। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली की वायु गुणवत्ता पास के गाजियाबाद (375), ग्रेटर नोएडा (356), गुड़गांव (352) और नोएडा (375) से बेहतर रही। पर इस खुशी का सियासी मतलब ही निकाला जा सकता है सामाजिक या अपर्यावरणीय नहीं। निस्संदेह आंकड़े ये बताते हैं कि कोई हवा कितनी मारक और घातक है लेकिन उसके बरअक्स यह भी देखना होता है कि जो उसके संपर्क में आ रहा है वह उसकी कितनी मात्रा ग्रहण कर रहा है और उसकी शारीरिक सामथ्र्य, क्षमता क्या है?

सरकार लाख छिड़काव और बचाव के दूसरे उपाय करे; इससे नुकसान पर बस आंशिक तौर पर ही काबू पाया जा सकता है। जरूरी यह है कि प्रदूषण को पहले ही रोका जाए ताकि इस तरह कि कवायदों का अवसर ही न आए। तकरीबन दशक भर से यह माना जा रहा है कि 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर के बीच दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की इस कदर खतरनाक हो जाती है कि यहां रहने का मतलब अपने जीवन को खतरे में डालना है। इस बार के आंकड़े इस मान्यता को बदलते नहीं दिखे। यह ठीक है कि दिल्ली में हवा की गुणवत्ता 15 अक्तूबर से जो बिगड़ती है उसमें दीवाली के अलावा हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब के इलाकों में पराली जलाना भी है। पर इससे इस बात पर पर्दा नहीं डाला जा सकता कि दिल्ली में सिर्फ  ग्रीन पटाखे जलाने की अनुमति थी, जिनके बारे में दावा है कि 40 फीसद कम प्रदूषण फैलाते हैं। पर इस पाबंदी के बावजूद लोगों ने पुराने पटाखों का जबरदस्त इस्तेमाल किया।
सुप्रीम कोर्ट ने पटाखे चलाने के लिए दो घंटे की समय-सीमा तय कर रखी थी। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में तो इसे कौन मानता, दिल्ली के तकरीबन सभी हिस्सों में इसका घनघोर उल्लंघन हुआ। खैर, यह समस्या 15 नवम्बर तक निबटती नहीं लगती। हर साल की तरह अब की भी समूची सर्दियों भर  गैस चेंबर बनी दिल्ली की रहेगा। इतनी दूषित वायु में सांस लेने का मतलब है तरह-तरह की बीमारियों को ग्रहण करना। दिल, दिमाग, फेफड़े, चमड़ी, आंखों का प्रभावित होना। डायबिटीज, दमा और हृदयाघात की आशंका और इनके हजारों नये रोगियों का बढ़ना। अब जब वातावरण में गर्मी आएगी, तेज हवा चलेगी तब ही इससे निजात मिलेगी। यह सब जनवरी के बाद ही संभव लगता है। जो पहले से सांस की समस्याओं जैसे ब्रॉन्कियल अस्थमा, क्रोनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिस्ऑर्डर, इंटरस्टीशियल लंग डीजीज (फेफड़ों का रोग), सिस्टिक फाइब्रोसिस, फेफड़ों के कैंसर से पीड़ित हैं। उनके और इसके अलावा बुजुगरे और कम प्रतिरक्षी क्षमता वाले लोगों पर भी इसका बुरा असर अभी से पड़ने लगा है। इन समस्याओं से ग्रस्त मरीजों के इस साल के आंकड़े आने अभी शेष हैं पर विगत वर्षो के आंकड़े इसकी तस्दीक करते हैं। दिवाली के पहले ही वायु गुणवत्ता सूचकांक के तमाम स्टेशन यह संकेत दे रहे थे कि वायु प्रदूषण में 6 गुणा से ज्यादा की बढ़ोतरी की आशंका है और यह भी कि कुछ दिनों तक यह स्तर बना रहेगा।
हम ऐसी सूचनाओं को पढ़ते जानते, देखते, सुनते रहेंगे। हवा खराब होने की खबरें आती रहेंगी, मगर हमको हवा तक न लगेगी। हम विश्व स्वास्थ्य संगठन के साफ और सुरक्षित हवा के मानक से 20 से 30 गुना खराब हवा में जीते हैं। देश में सांस लेने लायक साफ हवा वह है, जिसका पीएम 2.5 का स्तर 60 क्यूबिक मिलीग्राम तक और पीएम 10 का स्तर 100 क्यूबिक मिलीग्राम तक है। इससे ऊपर जाते ही हवा खराब होने लगती है। पीएम 2.5 का मतलब कि हवा में 2.5 माइक्रोमीटर से भी छोटे कण घुले हुए और पीएम 10 का मतलब कि हवा में 10 माइक्रोमीटर से कम के लेकिन 2.5 से बड़े कण मिले हुए हैं। इनका सूचकांक 201 से 301 तक बहुत खराब और 301 से 400 तक अत्यधिक नुकसानदेह और 401 से ऊपर का मतलब है घातक। इस लिहाज से दिल्ली और उसके आसपास रहना घातक है लेकिन कोई शहर छोड़ कर तो नहीं जा सकता। हां सरकारी प्रयासों से इतर भी अपने परिवेश को सांस लेने और जीने लायक बनने की कोशिश कर सकता है।
इस दिशा में कोई बहुत सकारात्मक पहल या हमारी हवा सुधारने के लिए सरकार और सुप्रीम कोर्ट हस्तक्षेप करे इससे पहले जिम्मेदार नागरिक के तौर पर जो करना चाहिए वह नहीं दिख रहा। जबकि कुछ लोग कानून कायदे और पर्यावरणीय चेतना को धता बताने में गर्व महसूस कर रहे हैं। प्राचीन काल से चले आ रहे पर्व और पर्यावरण के परस्पर संबंधों में पलीता लगा कर प्रसन्न हो रहे हैं। सच तो यह है कि यह कहानी महज दिल्ली और उनके लगायत क्षेत्रों की ही नहीं, तकरीबन समूचे उत्तर भारत की है। सरकार को वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए पूरे साल काम करने की जरूरत है। पर नागरिकों को भी अपने परिवेश, पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता बढ़ानी होगी। बिना सामाजिक सहयोग के सरकार के प्रयास अर्थहीन ही साबित होते रहेंगे।

संजय श्रीवास्तव


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