भूख सूचकांक : दूसरे पहलू भी देखिए

Last Updated 21 Oct 2019 12:23:22 AM IST

वैश्विक भूख सूचकांक (जीएचआई) रिपोर्ट को पूरी रह बिना पढ़े, उसके आधार को बिन समझे और कुछ दूसरी रिपोर्ट से तुलना किए बगैर झटपट कोई निष्कर्ष निकाल लेना उचित नहीं।


भूख सूचकांक : दूसरे पहलू भी देखिए

दूसरे, दुनिया की कोई भी संस्था रिपोर्ट देती है तो हमें अपने आसपास झांकते हुए यह विचार करना चाहिए कि क्या उनके द्वारा दिए गए आंकड़े जो हम देख रहे हैं उनसे मेल खाता है? तो किसी रिपोर्ट को परखने की मूल कसौटी यही होगी कि पहले हम उसे गहराई से समझें और फिर अपने दिनानुदिन के अनुभवों की कसौटियों पर कसें।
भूख सूचकांक की 117 देशों की सूची में भारत का स्थान 102 है। इस रिपोर्ट के अनुसार हमसे बेहतर स्थिति में पाकिस्तान (94वें), बांग्लादेश (88वें), नेपाल (73वें) और श्रीलंका (66वें) जैसे देश हैं। जीएचआई की 2014 में जारी रिपोर्ट में भारत 76 देशों में 55वें और 2017 में 119 में से 100वें नंबर पर था। पिछले वर्ष भारत 119 देशों की सूची में 103 वें स्थान पर था। रिपोर्ट में बेलारूस, बोस्निया एंड हरजेगोविना और बुल्गारिया क्रमश: पहले, दूसरे और तीसरे नंबर पर हैं। इसे स्वीकार कर लिया जाए तो निष्कर्ष यही आता है कि हर पेट को समुचित भोजन के मामले में भारत की स्थिति सुधरी नहीं है। यानी भुखमरी अभी भी है। लेकिन क्या इसे वाकई स्वीकार किया जा सकता है? अंतिम निष्कर्ष देने के पहले याद रखना जरु री है कि यह संयुक्त राष्ट्रसंघ या ऐसी मान्य विश्व संस्था की रिपोर्ट नहीं है।

यह पीयर-रिव्यूड वार्षिक रिपोर्ट है, जिसे आयरलैंड की कन्सर्न र्वल्डवाइड और जर्मनी की वेल्थुंगरहिल्फे ने संयुक्त रूप से प्रकाशित किया है। इन दोनों संस्थाओं की वि, राजनीतिक व्यवस्था और राजनीतिक नेताओं के बारे में अपना नजरिया है। ये जो रिपोर्ट जारी करते हैं उन पर बुद्धिजीवियों, एक्टिविस्टों, एनजीओ के लोग बहस करते हैं, मगर सरकारों पर इसका असर नहीं होता। इनके आधार को न समझने से भी गलतफहमी पैदा होती है। इन्होंने आकलन के लिए चार आधार तय किए हैं-कम पोषण, पांच साल से कम उम्र के बच्चे, जिनका वजन उम्र के लिहाज से कम है (चाइल्ड वेस्टिंग), पांच साल से कम उम्र के बच्चे, जिनकी ऊंचाई उम्र के लिहाज़ से कम है (चाइल्ड स्टंटिंग) और पांच साल से कम आयु में शिशु मृत्यु दर। दोनों संस्थाएं अपने पैमानों पर आकलन के बाद सभी देशों को 0 से 100 तक अंक देती हैं। रिपोर्ट में भारत को 30.3 अंक मिले, जो भूखमरी की गंभीर स्थिति का द्योतक है। हमारे देश में बड़ी आबादी के भोजन में पोषक तत्वों की कमी की समस्या है। कुपोषण से कोई इनकार नहीं कर सकता। बच्चों और महिलाओं का कुपोषण के कारण बीमार पड़ना या काल कवलित हो जाना भयावह सच है। इससे संबंधित अलग-अलग संस्थाओं के अलग-अलग आंकड़े हैं। इसलिए आंकड़ों में जाए बगैर जो कुछ आंखों के सामने है, उनको मानने में समस्या नहीं हैं। यूनिसेफ की रिपोर्ट ही बताती है कि दुनिया में 5 साल से कम उम्र के करीब 70 करोड़ बच्चों में एक तिहाई या तो कुपोषित हैं या मोटापे से जूझ रहे हैं।
स्टेट ऑफ द वल्र्ड्स चिल्ड्रन नामक रिपोर्ट के मुताबिक इससे आजीवन बच्चों के बीमारियों से ग्रस्त होने का खतरा है। इन सबके बावजूद यह स्वीकार करना मुश्किल है कि भारत में भुखमरी की समस्या भयावह है। पिछले कई वर्षो में भूख से मरने वालों की संख्या न के बराबर है। यह एक अपवाद के रूप में हमारे सामने आता है। भारत की स्थिति पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश से बदतर है यह किसी विवेकशील भारतीय के गले नहीं उतर सकता। सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर इतने कार्यक्रम चल रहे हैं, जिनसे वही वंचित हो सकता है जो ऐसी जगह अकेला और अशक्त हो जहां उसकी कोई मदद करने वाला नहीं है। खाद्य सुरक्षा कानून पूरे देश में लागू है। सस्ते अनाज लोग आसानी से खरीद रहे हैं। दूसरे, जिन वृद्धों की आय नहीं है उनके लिए वृद्धावस्था पेंशन है। इससे वे इतना अनाज तो खरीद ही सकते हैं। बच्चों के लिए विद्यालयों में मध्याह्म भोजन की व्यवस्था है। गर्भवती महिलाओं और माताओं के लिए पोषण योजना है। मनरेगा है। इसके अलावा कई रोजगार कार्यक्रम हैं। किसान सम्मान निधि भी खाते में जा रही है। गांव-गांव, शहर-शहर घूमिए गरीबी दिखाई देगी, सुविधाओं से वंचित मिल जाएंगे..लेकिन भूख से मरने वालों की जानकारी नहीं मिलेगी। हां, ऐसे कुछ वृद्ध मिलते हैं जिन तक सरकारी योजनाएं नहीं पहुंची हैं और इस पर सामाजिक संस्थाओं को ज्यादा फोकस करना होगा। भारत के संदर्भ में कुछ दूसरी रिपोर्ट देखिए। विश्व भर में गरीबी का आंकड़ा देने वाली मान्य संस्था ‘र्वल्ड डाटा लैब’ के अनुसार 2030 तक भारत में केवल 30 लाख लोग ही अति गरीब की श्रेणी में होंगे। ब्रुकिंग्स के फ्यूचर डेवलपमेंट ब्लॉग में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक हर मिनट 44 भारतीय अत्यंत गरीबी की श्रेणी से बाहर निकल रहा है।
संयुक्त राष्ट्रसंघ ने भी इसे स्वीकार किया है। र्वल्ड डाटा लैब ने कहा है कि 2018 में भारत में ग्रामीण क्षेत्र में 4.3 प्रतिशत और शहरी क्षेत्र में 3.8 प्रतिशत आबादी को गरीब माना जाएगा। ब्रुक्रिंग्स कहता है कि 2022 तक भारत में अत्यंत गरीब जनसंख्या केवल तीन प्रतिशत होगी। इसका भी मानना हे कि वर्ष 2030 तक भारत से अत्यंत गरीबी की परिधि में आने वाली आबादी खत्म हो जाएगी। र्वल्ड डेटा लैब की मानें तो हो सकता है कि अब भारत में करीब 5 करोड़ लोग ऐसे हों जो 1.90 डॉलर प्रतिदिन पर गुजारा करते हैं।
जब इतनी तेजी से गरीबी घट रही है तो भूख सूचकांक में हमारा स्थान इतना नीचे कैसे हो सकता है? जिन मान्य संस्थाओं ने गरीबी कम होने पर अध्ययन किया है उनने कारण भी बताए हैं। उसमें भी रोजगार कार्यक्रम, डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांस्फर, आधारभूत संरचनाओं का विकास, पोषण योजनाएं, स्वास्थ्य सुविधाओं में धीरे-धीरे होता सुधार, शौचालय निर्माण, पक्के मकान, बेहतर सड़कें आदि को शामिल किया है। अगर हमारे यहां भुखमरी है तो गरीबी घटने का आंकड़ा ऐसा नहीं आना चाहिए। भारत के बारे में और भी कई रिपोर्ट हैं, जिनमें सामाजिक-आर्थिक प्रगति के मान्य तथ्य दिए गए हैं। आम आदमी की  समस्याएं और परेशानियां सबके सामने हैं। किंतु भारत में भूख का ऐसा भयावह चेहरा नहीं है जैसा सूचकांक में बताया गया है।

अवधेश कुमार


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