बतंगड़ बेतुक : कचदौड़ भी एक संदेश है बेवकूफ

Last Updated 20 Oct 2019 05:58:36 AM IST

झल्लन हमें देखते ही बोला, ‘अब तो दिखावे की हद हो गयी ददाजू।’ हमने किंचित मुस्कुराते हुए पूछा, ‘किसने ऐसा क्या दिखावा कर दिया है, जिसने तुझे इतनी कोफ्त से भर दिया है?’


विभांशु दिव्याल

वह बोला, अब हमारे पास तो कुछ ऐसा है नहीं कि दिखावा करें, अपने दिखावे को मीडिया में दिखाएं और देखने वालों को बेवकूफ बनाएं! यह काम तो वही कर सकता है जिसके आगे-पीछे अमला चलता हो, मीडिया जिसके टुकड़ों पर पलता हो।’
हमने अपनी हंसी को दबाया और उत्सुकता को आगे बढ़ाया,‘तो बता तो सही, किसके दिखावे पर तू परेशान है, किसकी करनी पर हैरान है?’ झल्लन ने अपने बोल निकाले, हमारी तरफ उछाले, ‘और कौन, अपने छप्पन इंची सीना वाले। अगर आपने बगलदेश के मुखिया को बातचीत के लिए न्यौता था तो अपना ध्यान सीधी-सुथरी बातचीत पर लगाते, क्या जरूरत थी कि संमदर किनारे जाएं और दौड़ते-दौड़ते कचरा उठाएं?’ हमने कहा, ‘तो क्या हुआ, अगले ने कचरा ही तो उठाया, न कहीं कचरा फैलाया, न किसी पर गिराया। फिर तुझे कचरा उठाने पर एतराज क्यों है, तू इतना नाराज क्यों है?’ वह बोला, ‘क्या ददाजू,, यह अच्छा लगता है कि देश का प्रधान सेवक कचरा उठाता फिरे और मीडिया उसे हो-हो कर दिखाते फिरे। अरे, आपको तो जनता ने गरीबी हटाने और रोजगार देने के लिए चुना है सो वो करो, ये क्या कि असली काम न करके कचरा उठाते फिरो। अगर कचरा इतना ही परेशान कर रहा था तो किसी कचरा सफाई वाले को बुलाते, उसे दस-बीस रुपये थमाते और कचरा उठाने के काम पर लगाते।’

झल्लन वही जुबान बोल रहा था जो निंदक बोलते रहते हैं और हमारा प्रधान सेवक कुछ भी करे उसे अपनी तिरछी नजर पर तौलते रहते हैं। उसने बुरा किया सो तो बुरा किया ही और अगर गलती से कहीं कुछ अच्छा कर दिया तो वह भी बुरा किया। हमें झल्लन पर थोड़ा गुस्सा आया फिर उसे समझाया, ‘देख झल्लन, तूने भी अपने दिमाग में कचरा भर लिया है इसलिए अपनी समझ को एकांगी कर लिया है। भई, बड़े लोगों के कुछ काम प्रतीकात्मक होते हैं जो दूसरों को भी वैसा ही करने की प्रेरणा देते हैं। प्रधान सेवक ने स्वयं कचरा उठाकर सफाई का संदेश दे दिया तो क्या बुरा किया?’ वह बोला, ‘ददाजू, आप पक्के भक्त हो गये हो या सोच में अशक्त हो गये हो, तभी ऐसी बात कर रहे हो। इस कचरा उठाई में अगर कुछ था तो स्वयं का स्थापन था, आत्म-विज्ञापन था।’ हमने कहा, ‘एक सीधी बात क्यों नहीं समझता कि जब कोई संदेश जनता तक पहुंचाया जाता है तो उसे इसी तरह विज्ञापन बनाया जाता है। जब बच्चन जैसा अभिनेता कच्छा-बनियान का गुणगान करता है तो क्या अपना विज्ञापन करता है? वह अपनी प्रसिद्धि के बल पर कच्छा-बनियान का प्रचार करता है।’
झल्लन बोला, ‘मगर ददाजू, हम तो विरोधी हैं, विपक्षी हैं..’ हमने कहा, ‘हमारा राजनीतिक विरोध हो सकता है, मुद्दों पर गहरा मतभेद हो सकता है, मगर हमें अपने दिमाग के कपाट बंद नहीं करने चाहिए, दुश्मन के भी अच्छे काम को स्वीकार करने के लिए उन्हें थोड़ा खुला रखना चाहिए।’ झल्लन निरुत्तर सा दिखाई दिया और हमने इसका पूरा मजा लिया।
झल्लन बोला, ‘अच्छा ददाजू, एक बात बताइए जब प्रधान सेवक ने कचरा उठाया था तो समझदार लोगों ने इसे प्लॉगिंग बताया था, पर इसका मतलब अपुन की समझ में नहीं आया था।’ हमने उसे बताया, ‘प्लॉगिंग अंग्रेजी के दो शब्दों को गड्डमड्ड करके बनाया गया है। एक है ‘पिक’ दूसरा है ‘जोगिंग’। पिक का ‘पि’ ले लिया और जोगिंग का ‘गिंग’ ले लिया, शब्द सौंदर्य की खातिर उसमें ‘एल’ और मिला दिया और इस तरह नया शब्द ‘प्लॉगिंग’ बना दिया। इसका अर्थ हुआ जोगिंग करते-करते यानी दौड़ते-दौड़ते रुक-रुक कर कचरा उठाना, उसे ठिकाने लगाना और समुद्र तट को स्वच्छ बनाना।’ झल्लन ने अपने तरीके से अपना सर खुजाया और अपना अगला सवाल आगे बढ़ाया, ‘ददाजू, आपने अर्थ समझाया सो समझाया पर कुछ मजा नहीं आया। थोड़ा अपना दिमाग लगाइए और प्लॉगिंग की हिंदी बताइए।’ हमने कहा, ‘काहे मगजपच्ची कर रहा है, इस शब्द को ज्यों का त्यों उठा ले, हिंदी समझकर अपना बना ले।’ झल्लन झल्लाया, ‘ददाजू, आपके शब्द मातृ भाषा द्रोह दशर्ते हैं, आप बनाएं न बनाएं मगर हम हिंदी बनाते हैं। पूरी प्रक्रिया में दो शब्द प्रमुख हैं-कचरा और दौड़। इसमें कचरा में से ‘रा’ हटा दीजिए और ‘दौड़’ को जस का तस उठा लीजिए, बस प्लॉगिंग की हिंदी ‘कचदौड़’ बना दीजिए।’
हमने हंसते हुए कहा,‘चल, तूने शब्द तो बना दिया, ये सबको लुभाएगा पर देशप्रेमी हिंदी प्रेमियों को कचदौड़ कौन सिखाएगा?’ झल्लन बोला,‘ददाजू, सच्ची कहें तो मन हो रहा है कि हम सचमुच कचदौड़ लगाएं और देशवासियों तक अपना संदेश पहुंचाएं।’ हमने कहा,‘तेरा विचार तो नेक है पर यह बता तू कचदौड़ कहां लगाएगा, मतलब कि कचदौड़ लगाने के लिए कहां-कहां जाएगा, देश का हर नगर-महानगर, गांव-कसबा कचरे से अटा पड़ा है, इतना कचरा अकेले कैसे उठाएगा?’ वह बोला,‘सही कहते हो ददाजू,‘कचरा तो तभी उठेगा जब हर व्यक्ति कचरा उठाएगा, नहीं तो यह देश कचरे में दबकर मर जाएगा।’



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